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कोरोना के कोहराम ने प्रिंट मीडिया के लिए यूं बजाई 'खतरे की घंटी'

कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए कई राज्यों में सरकार ने लॉकडाउन कर दिया है।

समाचार4मीडिया ब्यूरो 4 years ago

कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए कई राज्यों में सरकार ने लॉकडाउन कर दिया है। यही नहीं, लॉकडाउन का पालन न करने पर कर्फ्यू तक की घोषणा की गई है। ऐसे में सोमवार को देश के कई अखबारों ने सोमवार को अपने एडिशन नहीं छापे।

इंडस्ट्री से जुड़े एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस स्थिति का सीधा असर विज्ञापन बिलों पर पड़ेगा और इस सेक्टर को काफी नुकसान उठाना पड़ेगा। माना जा रहा है कि कुछ दिनों में सर्कुलेशन फिर शुरू हो जाएगा, लेकिन यह ट्रेंड यदि लगातार जारी रहा तो इस तिमाही में अखबारों को काफी नुकसान होगा।  

इस स्थिति के बारे में एक मीडिया विश्लेषक का कहना है, ‘अखबारों की बात करें तो उनका रेवेन्यू सर्कुलेशन, एडवर्टाइजिंग, सबस्क्रिप्शन और इंटरनेट व मोबाइल एप्स से आता है। इनमें से सबसे ज्यादा रेवेन्यू (75 प्रतिशत से अधिक) एडवर्टाइमेंट से आता है। एक दिन का नुकसान विज्ञापन बिलों को काफी प्रभावित कर सकता है, जब तक कि बाद के एडिशंस से इसे पूरा नहीं किया जाता। लॉकडाउन और मार्केट में मंदी के कारण अखबार पहले से ही नुकसान झेल रहे हैं।’

मीडिया संस्थान जैसे-टाइम्स ऑफ इंडिया, हिन्दुस्तान टाइम्स, मिड-डे और इंडियन एक्सप्रेस ने घोषणा की कि वे सोमवार को मुंबई में अपना अखबार नहीं बांटेंगे। सूत्रों का कहना है कि कई अन्य केंद्रों भी इसे फॉलो कर सकते हैं।

ऐसे समय में अखबार ऑनलाइन एडिशन निकाल रहे हैं, लेकिन उसमें विज्ञापन नहीं आ रहा है। इस बारे में ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ के रेजिडेंट एडिटर रह चुके वरिष्ठ पत्रकार सुदीप मुखिया का कहना है, ‘इस समय मार्केट की स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं है। यदि हम विज्ञापनों की बात करें तो ये ज्यादातर सरकारों द्वारा अथवा ब्रैंड्स द्वारा जारी किए जाते हैं जो कोरोना वायरस से लड़ने के लिए सैनिटाइजर्स, फ्लोर क्लीनर्स आदि को बढ़ावा दे रहे हैं। ऐसे में विज्ञापन पर्याप्त संख्या में नहीं मिल रहे हैं, वहीं अखबार न छपना विज्ञापन के बिलों के लिए बड़ा झटका है।’

अखबार में विज्ञापन की स्थिति के बारे में बतौर एक विश्लेषक ‘दैनिक जागरण’ के पूर्व मुख्य महाप्रबंधक निशिकांत ठाकुर का कहना है कि जब कोई कैंपेन चल रहा होता है अथवा कोई पहले से तय विज्ञापन होता है तो आमतौर पर उस विज्ञापन की बुकिंग अखबार में एक हफ्ते पहले ही हो जाती है। कई बार विज्ञापन अखबार छपने से कुछ समय पूर्व ही मिलता है। इस स्थिति में विज्ञापन के रेट ज्यादा होते हैं। सामान्य स्थिति में यदि अखबार में उस समय विज्ञापन नहीं लग पता है तो उसे अगले एडिशन में लगा लिया जाता है, लेकिन इस समय की स्थिति बिल्कुल अलग है। हाल के समय में कभी ऐसा नहीं हुआ कि इस तरह के कारणों से अखबार न छपे हों। ऐसे में विज्ञापन बिलों में नुकसान अप्रत्याशित है और इस तरह के नुकसान से तभी बचा जा सकता है कि अखबारों की प्रिंटिंग तुरंत प्रभाव से शुरू कर दी जाए। एक हफ्ते अखबार न छपने का मतलब है कि उसे काफी ज्यादा नुकसान हो सकता है।

‘इंडियन रीडरशिप सर्वे की तीसरी तिमाही’ (Q3 2019) के आंकड़ों पर नजर डालें तो दैनिक जागरण ने वित्तीय वर्ष 2018-19 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि न्यूजप्रिंट की कीमतों में बढ़ोतरी और विज्ञापन में कमी इंडस्ट्री के लिए नुकसानदायक साबित हो रही है और वित्तीय नतीजों में इसका असर दिख रहा है। इस दौरान इस ग्रुप का एडवर्टाइजिंग रेवेन्यू 1382.70 करोड़ रुपए दर्ज किया गया है। इनमें से 78 प्रतिशत रेवेन्यू प्रिंट से आता है, यह स्पष्ट रूप से एक अखबार के लिए विज्ञापनों के महत्व को दर्शाता है।

हालांकि, निराशा के इस दौर में सुदीप मुखिया ने कुछ उम्मीद जताते हुए कहा, ’यह एक असामान्य स्थिति है और एडवर्टाइजर्स अपने कदम वापस नहीं खींचेंगे। अखबारों के पास निष्ठावान कस्टमर्स हैं जो अपने ब्रैंड की कम्युनिकेशन वैल्यू के लिए फिर इस माध्यम में वापस आएंगे।’


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