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'इंडियन रीडरशिप सर्वे' को लेकर ये बड़ी बाधा हुई दूर

लंबे समय से अटके भारतीय रीडरशिप सर्वे (IRS) को लेकर दोबारा से शुरू करने का रास्ता साफ हो गया है।

समाचार4मीडिया ब्यूरो 1 month ago

कंचन श्रीवास्तव, सीनियर एडिटर व ग्रुप एडिटोरियल इवैन्जिलिस्ट, एक्सचेंज4मीडिया ग्रुप ।।

लंबे समय से अटके भारतीय रीडरशिप सर्वे (IRS) को लेकर दोबारा से शुरू करने का रास्ता साफ हो गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल (MRUC) के तहत अखबार मालिकों की कॉस्ट-शेयरिंग फॉर्मूले पर सहमति बन गई है, जिससे मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल इंडिया (MRUC इंडिया) में लंबे समय से चल रहा गतिरोध प्रभावी रूप से समाप्त हो गया है। अब माना जा रहा है कि यह सर्वे अब जल्द ही शुरू हो सकता है।

2019 के फॉर्मूले पर बनी सहमति

MRUC के पूर्व चेयरमैन पद्म भूषण होर्मुस्जी एन. कामा ने एक्सचेंज4मीडिया को बताया, "मीडिया मालिकों ने आगामी IRS के लिए उसी कॉस्ट-शेयरिंग फॉर्मूले को लागू करने पर सहमति व्यक्त की है, जिसका उपयोग 2019 के सर्वे में किया गया था।" 2019 में कॉस्ट-शेयरिंग करने का निर्णय प्रिंट सर्कुलेशन के आधार पर किया गया था।

होर्मुस्जी एन. कामा 'मुंबई समाचार' के चेयरमैन व मैनेजिंग डायरेक्टर भी हैं, उन्होंने यह भी बताया कि सर्वे को पूरा होने में अभी एक साल का वक्त लगेगा। MRUC ने मीडिया मालिकों के लिए अपना योगदान जमा करने की समयसीमा अभी तय नहीं की है। फंड जमा होने के बाद सर्वे कराने के लिए एक एजेंसी का चयन किया जाएगा, जिसके चयन को लेकर एक टेंडर निकाला जाएगा और इसे पूरा होने में 6-9 महीने और लगेंगे।

खर्च बढ़ने की संभावना  

2019 में सर्वे का खर्च लगभग 20 करोड़ रुपये था, लेकिन इस बार खर्च और बढ़ने की संभावना है। अंतिम लागत तब तय होगी जब एजेंसियों से निविदाएं मंगाई जाएंगी।

हालांकि एक्सचेंज4मीडिया ने पहले ही यह जानकारी दी थी कि काउंसिल की टेक्निकल कमेटी ने 12 अगस्त की बैठक के दौरान कई कार्यप्रणालियों का प्रस्ताव रखा था। कॉस्ट-शेयरिंग के लिए चर्चा किए गए मापदंडों में टर्नओवर, रेवेन्यू और सर्कुलेशन शामिल थे। आम सहमति की कमी के कारण, बोर्ड ने भारत के शीर्ष 25-30 प्रकाशकों से परामर्श करने का निर्णय लिया था।

MRUC अब तक कॉस्ट-शेयरिंग फॉर्मूले पर आम सहमति बनाने के लिए संघर्ष कर रहा था, जिसमें सर्कुलेशन के आंकड़ों को निर्धारण कारक के रूप में उपयोग करने पर असहमति थी। हाल के वर्षों में कई समाचार पत्रों के सर्कुलेशन के आंकड़ों में कमी आई है क्योंकि पाठक तेजी से ऑनलाइन न्यूज स्रोतों की ओर रुख कर रहे हैं।

पांच साल से अटका हुआ है IRS

आखिरी बार इंडियन रीडरशिप सर्वे 2019 में आयोजित किया गया था। सर्वे को 2020 में निलंबित कर दिया गया था और शुरू में महामारी के कारण और बाद में कॉस्ट संबंधी चिंताओं और हितधारकों की घटती रुचि के कारण इसे फिर से शुरू नहीं किया जा सका। कई समाचार पत्र, विशेष रूप से अंग्रेजी दैनिक सर्कुलेशन और रेवेन्यू दोनों में महामारी के पूर्व स्तर तक पहुंचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। MRUC इंडिया और रीडरशिप स्टडीज काउंसिल ऑफ इंडिया (RSCI) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित IRS को कभी दुनिया का सबसे बड़ा सतत अध्ययन माना जाता था, जिसमें वार्षिक सैंपल साइज 2.56 लाख उत्तरदाताओं से अधिक था।

IRS का महत्व 

IRS डेटा विज्ञापनदाताओं के लिए बेहद अहम है, क्योंकि यह उन्हें यह निर्णय लेने में मदद करता है कि किन प्रिंट प्रकाशनों में विज्ञापन देना फायदेमंद रहेगा। इस सर्वे के माध्यम से भारत में प्रिंट मीडिया की पहुंच, जनसांख्यिकी, उत्पाद स्वामित्व और उपयोग के बारे में जानकारी मिलती है, जो सर्वे किए गए घरों में 100 से अधिक उत्पाद श्रेणियों को कवर करता है।

डिजिटल युग में प्रिंट मीडिया की चुनौतियां  

डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के बढ़ते प्रभाव के चलते प्रिंट मीडिया घराने बहुत दबाव में है। इंडस्ट्री के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि कई समाचार पत्रों ने अपने सर्कुलेशन को 15-20 प्रतिशत तक कम कर दिया है। कई अखबारों ने अपने घाटे में चल रहे संस्करणों को बंद कर दिया है।

हाल के दिनों में प्रिंट विज्ञापन से होने वाली आय में कुछ बढ़ोतरी देखी गई है, लेकिन यह विज्ञापन दरों में गिरावट के कारण है, न कि ब्रैंड्स के कुल विज्ञापन खर्च में बढ़ोतरी के कारण।

आज के समय में प्रिंट मीडिया भारत के विज्ञापन बाजार का केवल 20% हिस्सा रखता है, जबकि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का हिस्सा 44% और टेलीविजन का 32% है। 

विश्वसनीय डेटा की जरूरत 

इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स का मानना है कि अपडेट और क्रेडिबल रीडरशिप डेटा मिलने से विज्ञापनदाताओं को प्रिंट मीडिया में ज्यादा बजट आवंटित करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। 


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