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मैगजींस ने नई तकनीक के बदलते ट्रेंड्स को अपनाया है: मनोज शर्मा
इंडिया टुडे के चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर मनोज शर्मा न केवल मैगजीन इंडस्ट्री के निरंतर अस्तित्व में रहने, बल्कि इसकी सफलता को लेकर भी आश्वस्त हैं।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 6 months ago
इंडिया टुडे के चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर मनोज शर्मा न केवल मैगजीन इंडस्ट्री के निरंतर अस्तित्व में रहने, बल्कि इसकी सफलता को लेकर भी आश्वस्त हैं। आगामी 3 मई को मुंबई के ताज सांताक्रूज में आयोजित होने वाले 'इंडिया मैगजीन कांग्रेस 2024' कार्यक्रम में शर्मा एक पैनल का हिस्सा भी होंगे, जिसका विषय होगा- ''The shift from media planning to audience solutions: How can magazines make themselves relevant in the evolving paradigm?”
मनोज शर्मा का मानना है कि ग्रे का कोई शेड नहीं है और जब मैगजींस द्वारा पेश किए जाने वाले आकर्षक कंलर्स और कंटेंट की बात आती है, तो सब कुछ ब्लैक एंड व्हाइट होता है। “किसी मैगजीन को केवल प्रिंट/प्रियोडिक-ओन्ली प्रॉडक्ट के रूप में सोचना बंद कर देना चाहिए। अधिकांश प्रतिष्ठित मैगजींस पहले से ही बेहतर तरीके से रीच, इंगेजमेंट और एडवोकेसी प्रदान करने की क्षमताओं के साथ एक ओमनी-चैनल कंटेंट पावरहाउस के रूप में स्थापित हैं।
उनके अनुसार, मैगजींस देशी/ब्रैंडेड कंटेंट के लिए सबसे अनुकूल और विश्वसनीय मंच हैं, क्योंकि मैगजीन कंटेंट टीम्स (चाहे वह प्रिंट में हो या डिजिटल प्रारूप में) प्रकाशित किए जाने वाले कंटेंट की गहराई से व अच्छी तरह से शोध करती है और वह भी अद्वितीय जुड़ाव पैदा करते हुए व पाठकों में विश्वास की कमी के कारक को खत्म करते हुए। उन्होंने कहा कि इसके अलावा आपको पुराने ऑडियंस (spillover audience) के लिए भारी भुगतान नहीं करना पड़ता है।
कथित तौर पर समाप्त हो चुके पारंपरिक मीडिया स्रोतों को लेकर शर्मा बताते हैं कि दुनिया भर में मैगजींस ने नई तकनीक के बदलते ट्रेंड्स को कायम रखा है और उन्हें अपनाया है। 2000 के दशक की शुरुआत में टीवी से लेकर 2012 में डिजिटल तक, मेरी राय में, नई तकनीक का आगमन, मैगजींस के पाठकों और ऐडवर्टाइजर्स दोनों के लिए लंबे समय तक फायदेमंद साबित होगा। ऐसा इसलिए है, क्योंकि शर्मा के अनुसार, यह सब कम्युनिटी निर्माण और आदतों में शुमार करने को लेकर है। “मौजूदा मैगजींस का प्रारूप प्रिंट, डिजिटल एडिशन, वेबसाइट (पीपीपी या सबस्क्रिप्शन मॉडल), मैगजींस के सोशल हैंडल, वीकली न्यूजलेटर इत्यादि से है। इन सभी के जरिए ही कंज्युमर्स के साथ हर समय (24X7) जुड़ाव सुनिश्चित हो पाता है। एक धारणा है कि मैगजींस कंटेंट के मोर्चे पर अपना सार नहीं खोती है और सार्थक और विश्लेषण संचालित कंटेंट प्रदान करती रहती है, जिसकी कंज्युमर्स मैगजींस पब्लिशर्स से अपेक्षा करते हैं।
उन्होंने आगे कहा, "एक अत्यंत वैयक्तिकृत मैगजीन आपको एक विशेष महीने, सप्ताह या एक दिन के लिए पाठक की आवश्यकता के अनुसार पहले से तैयार और अनुकूलित कंटेंट के मिश्रण के साथ डिस्स्ट्रीब्यूट की जा रही है।"
शर्मा को ब्रैंडेड कंटेंट स्पेस और नए IP को लेकर इंडिया मैगजीन कांग्रेस के सेशंस का भी उत्सुकता से इंतजार है। चूंकि ये दोनों मीडिया प्लेटफॉर्म्स, विशेष रूप से मैगजींस के लिए विकास के प्रेरक होंगे।जबकि ब्रैंडेड कंटेंट और ऐडवर्टाजिंग की कैटेगरी में इसकी बढ़ती पैठ इस बात का प्रमाण है कि कंटेंट ही किंग है। मैगजींस के प्रभाव को बढ़ाने के लिए मैकेनिज्म के तौर पर ओटीटी एक दिलचस्प स्पेस होगा।
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