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दिलचस्प अंदाज में फिर गुदगुदाने को तैयार हैं वरिष्ठ टीवी पत्रकार पीयूष पांडे

हाल में उन्होंने फेसबुक और यूट्यूब पर अपना व्यंग्य आधारित शो ‘सिट डाउन शो विद पीयूष पांडे’ भी लॉन्च किया है

समाचार4मीडिया ब्यूरो 4 years ago

वरिष्ठ टीवी पत्रकार और व्यंग्यकार पीयूष पांडे अपना नया व्यंग्य संग्रह लेकर फिर हाजिर हो रहे हैं। उनके व्यंग्य संग्रह का नाम बेहद दिलचस्प है-‘कबीरा बैठा डिबेट में’। व्यंग्य संग्रह का कवर पेज दर्शाता है कि कबीरदास जी एक टेलिविजन डिबेट में पहुंच गए हैं, जहां उन्हें एंकर और मेहमानों ने घेर लिया है। पीयूष इस नाम के विषय में कहते हैं, ‘ये नाम किताब के एक व्यंग्य पर आधारित है, जिसमें कबीरदास जी को जबरदस्ती एक डिबेट में हिस्सा लेना पड़ता है। खरी-खरी कहने वाले कबीर अगर टीवी बहस में खरी-खरी बोलेंगे तो उनका क्या हश्र होगा, यही व्यंग्य का विषय है। आप पढ़ेंगे तो आनंद भी आएगा और आप सोचेंगे भी कि कबीर अगर वास्तव में आज होते तो शायद वो सब नहीं कह पाते, जो 500 साल पहले कह गए।‘

तो क्या इस व्यंग्य संग्रह में मीडिया केंद्रित व्यंग्य ही हैं या कुछ और भी है? इस पर पीयूष कहते है, ‘इस व्यंग्य संग्रह में 65 व्यंग्य हैं, जो अलग-अलग विषयों पर हैं। टिकटॉक चिंतन भी है, जिसमें टिकटॉक के जरिए समाजवाद लाने की परिकल्पना है तो जंगल में हुए चुनाव के दौरान शेर का इंटरव्यू किस तरह जंगल के पत्रकार करते हैं, उसका रोचक वर्णन भी है। जनता के मन की वो बातें भी हैं, जो कभी सुनी नहीं जातीं।‘

पीयूष का व्यंग्य संग्रह ‘कबीरा बैठा डिबेट में’ प्रभात प्रकाशन प्रकाशित कर रहा है, जो 4 से 12 जनवरी तक चलने वाले पुस्तक मेले में उपलब्ध होगा। इससे पूर्व पीयूष के दो व्यंग्य संग्रह आ चुके हैं। 2012 मे ‘छिछोरेबाजी का रिजोल्यूशन’, जिसे राजकमल ने प्रकाशित किया था, और 2017 में ‘धंधे मातरम्’ जिसे प्रभात प्रकाशन ने प्रकाशित किया था।

पीयूष पांडे देश के उन युवा व्यंग्यकारों में एक हैं, जो लगभग सभी समाचार पत्रों में नियमित व्यंग्य लिखते दिखते हैं। ‘नई दुनिया’ से लेकर ‘दैनिक जागरण’ और ‘प्रभात खबर’ से लेकर ‘दैनिक ट्रिब्यून’ में उनके व्यंग्य लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। हाल में उन्होंने फेसबुक और यूट्यूब पर अपना व्यंग्य आधारित शो ‘सिट डाउन शो विद पीयूष पांडे’ भी लॉन्च किया है।

पीयूष के व्यंग्य की अपनी अलग शैली है। वो कई बार व्यंग्य के जरिए गुदगुदाते हैं तो अंत में एक करारी चोट करते दिखते हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में व्यंग्य की स्थिति के विषय में पूछे जाने पर पीयूष कहते हैं,’मैं स्वयं व्यंग्य का विद्यार्थी हूं, इसलिए ये टिप्पणी करना अनुचित होगा कि वर्तमान संदर्भ में व्यंग्य में क्या अच्छा, क्या बुरा हो रहा है। लेकिन मुझे लगता है कि व्यंग्य के नाम पर ज्यादातर जो कुछ छप रहा है,वो व्यंग्य कतई नहीं लगता है। व्यंग्य के लिए यह मुश्किल दौर है,क्योंकि राजनीतिक विषयों पर सीधा और करारा व्यंग्य ज्यादातर समाचार पत्र छापने की स्थिति में नहीं हैं। फिर सोशल मीडिया पर इतनी तेजी से वनलाइनर्स के रुप में व्यंग्य आता है कि आप जब किसी पत्र-पत्रिका के लिए लिखते हैं तो उसमें नयापन लाना चुनौती होता है।‘

पीयूष पांडे ‘आजतक’,’ एबीपी न्यूज’,‘जी न्यूज’, ‘आईबीएन7’ और ‘सहारा समय’ जैसे चैनलों में वरिष्ठ पदों पर रहे हैं, लेकिन उनका व्यंग्य लेखन का शौक पुराना है। पीयूष का सबसे पहला व्यंग्य ‘दैनिक जागरण’ आगरा में वर्ष 2001 में प्रकाशित हुआ था। हाल के दिनों में पीयूष ने एक कॉमेडी सीरियल के लिए भी लिखा है। उस अनुभव के विषय में पीयूष कहते हैं, ‘टीवी सीरियल के लिए लिखना अखबारों के लिए व्यंग्य लिखने से बिलकुल अलग है। आपको दी गई परिस्थिति के हिसाब से लिखना होता है। मैंने जिस सीरियल ‘महाराज की जय’ के लिए लिखा है, उसमें मुझे कुछ एपिसोड का स्क्रीनप्ले लिखना था। वैसे,लेखक को लिखने में आनंद आता है तो मुझे उसे लिखकर बहुत मजा आया और पैसे भी अच्छे मिले।‘

पीयूष पांडे पिछले 20 वर्षों से मीडिया में हैं। उन्होंने ‘अमर उजाला’ आगरा से अपना करियर आरंभ किया था और वर्ष 2001 में ‘नवभारत टाइम्स’ ऑनलाइन की संस्थापक टीम में रहे। 2003 में उन्होंने ‘आजतक’ जॉइन किया और तब से वो मूलत: इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में ही हैं। सोशल मीडिया पर उनकी पकड़ की वजह से उन्हें सोशल मीडिया एक्सपर्ट भी माना जाता है। वह कई बड़े अखबारों में सोशल मीडिया पर अरसे तक स्तंभ लेखन करते रहे हैं। फिलहाल, वो एक फिल्म पटकथा पर काम कर रहे हैं और ‘कबीरा बैठा डिबेट में’ बाजार में आने का इंतजार भी।

'कबीरा बैठा डिबेट में' शामिल कुछ व्यंग्य की पंचलाइन आप यहां पढ़ सकते हैं।

-भागने के खेल में अपना मजा है। बहुत साऱे राजनेता ताउम्र एक पार्टी से दूसरी पार्टी में भागते रहते हैं। उनके एक दल से दूसऱे दल में भागते हुए उनकी विचारधारा भी भागती है। कभी-कभी इस भागदौड़ में विचारधारा चित हो जाती है। फिर राजनेता बिना विचारधारा के ही भागता है। और जो भागत है, सो पावत है-सत्ता। मलाई। पैसा। ठेका।

-वर्तमान समय में जुआ खेलना बहुत जरूरी है। जिस दौर में बैंक में रखा पैसा ही डूब रहा हो, बिल्डर लाखों रुपए डकार कर घर नहीं दे रहे और ग्राहक बिना घर के ही ईएमआई पर ईएमआई भरने को विवश हो, उस दौर में बंदे का हार्ट मजबूत होना जरूरी है।

-कई बार बंदे का हनीट्रैप होने के बाद सीडी कांड भी हो जाता है। सीडी कांड की परिभाषा किसी ग्रंथ में नहीं है, लेकिन सामान्य परिभाषा के मुताबिक, ये वो कांड होता है, जिसमें फिल्म बनते हुए का नायक फिल्म रिलीज होते ही खलनायक में तब्दील हो जाता है।

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