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इस ‘बड़ी गलती’ पर दैनिक भास्कर ने जताया खेद, पेश की सफाई
खुद को ‘सबसे आगे’ करार देने की कोशिश में कई बार ऐसी गलतियां हो जाती हैं, जो ताउम्र सालती रहती हैं।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 4 years ago
खुद को ‘सबसे आगे’ करार देने की कोशिश में कई बार ऐसी गलतियां हो जाती हैं, जो ताउम्र सालती रहती हैं। ‘दैनिक भास्कर’ के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। फिनलैंड की प्रधानमंत्री सना मरीन के फर्जी इंटरव्यू को लेकर उसकी हर तरफ आलोचना हो रही है। इस बीच, अखबार ने पूरे मामले पर सफाई पेश की है। उसने इस घटनाक्रम के लिए अमेरिका में रहने वाले अपने फ्रीलांसर सिद्धार्थ राजहंस को कुसूरवार ठहराया है।
न्यूज पोर्टल ‘द वायर’ (The Wire) ने दैनिक भास्कर की सफाई को प्रकाशित किया है। दरअसल, पूरे मामले पर दैनिक भास्कर का पक्ष जानने के लिए ‘द वायर’ ने दैनिक भास्कर के नेशनल न्यूज रूम डेस्क के संपादक अरुण चौहान को सवालों की एक सूची ईमेल की थी, जिसका उन्होंने विस्तार से जवाब दिया है।
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वेबसाइट के मुताबिक, दैनिक भास्कर का कहना है कि वह अपने फ्रीलांसर के धोखे का शिकार हुआ है और सिद्धार्थ राजहंस के खिलाफ कानूनी कदम उठाये जा रहे हैं। इसके अलावा, अखबार की तरफ से फिनलैंड के प्रधानमंत्री कार्यालय और दूतावास को माफीनामा भी भेजा जा रहा है। अखबार ने अपने जवाब में कहा है कि सिद्धार्थ की गलत रिपोर्टिंग के कारण हमारे द्वारा प्रकाशित फिनलैंड की प्रधानमंत्री सना मरीन के इंटरव्यू को लेकर हम प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया से खेद प्रकट करते हैं और आगे से इस तरह की कोई गलती न हो, इसके दिए हम सभी जरूरी कदम उठा रहे हैं।
‘द वायर’ में प्रकाशित सफाई के अनुसार, अखबार ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर विश्व की सबसे युवा महिला प्रधानमंत्री सना मरीन का इंटरव्यू करने की योजना बनाई थी। इसके लिए मूल रूप से मध्यप्रदेश के इंदौर निवासी और अमेरिकी टेक्नोक्रेट सिद्धार्थ राजहंस से संपर्क किया गया, जिन्होंने खुद को संयुक्त राष्ट्र से जुड़ा हुआ बताते हुए साक्षात्कार लाने का विश्वास दिलाया। इसके लिए उन्होंने कंपनी से करीब साढ़े तीन लाख रुपए की राशि भी स्वीकृत कराई, जिसमें करीब 35 हजार रुपए उनका मेहनताना था।
अखबार का कहना है कि सिद्धार्थ राजहंस ने इंटरव्यू स्वीकृत कराने के लिए फिनलैंड के प्रधानमंत्री कार्यालय को दो ईमेल भेजे थे और उनका जवाब भी आया था। इस ईमेल में अखबार के शीर्ष अधिकारियों को टैग किया गया था। मामला सामने आने के बाद अखबार ने फिनलैंड दूतावास से संपर्क किया, जिसमें 18 मार्च को दैनिक भास्कर को भेजे गए जवाब में बताया गया कि प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से उन्हें आए दोनों ईमेल फर्जी थे। आलोचनाओं के बीच दैनिक भास्कर की तरफ से सफाई भले आ गई हो, लेकिन यह सवाल फिर भी कायम रहेगा कि आखिर समूह के जिम्मेदार अधिकारियों ने आंख मूंदकर राजहंस की बात पर विश्वास कैसे कर लिया? क्यों यह जानने का प्रयास नहीं किया गया कि ऐसा कोई इंटरव्यू हुआ भी है या नहीं?
‘द वायर’ की पूरी स्टोरी आप यहां क्लिक कर पढ़ सकते हैं:
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