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छंटने लगे प्रिंट इंडस्ट्री पर छाये 'काले बादल', सामने आई ये रिपोर्ट
तमाम सेक्टर्स की तरह पिछले कुछ महीनों के दौरान प्रिंट मीडिया को तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ा, लेकिन अब स्थिति में धीरे-धीरे मगर लगातार सुधार देखा जा रहा है
समाचार4मीडिया ब्यूरो 4 years ago
तमाम सेक्टर्स की तरह पिछले कुछ महीनों के दौरान प्रिंट मीडिया को तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ा, लेकिन अब स्थिति में धीरे-धीरे मगर लगातार सुधार देखा जा रहा है और एडवर्टाइजर्स वापस लौटने लगे हैं। कोविड-19 ने मीडिया में प्रिंट की भूमिका को नए सिरे से परिभाषित किया है। अपनी विश्वसनीयता के कारण पिछले एक महीने में प्रिंट पर धीरे-धीरे ही सही, विज्ञापनदाताओं की वापसी होने लगी है।
‘टैम एडेक्स’ (Tam AdEx) के डाटा के अनुसार, प्रिंट पर जो एडवर्टाइजर्स वापस लौट रहे हैं, उनमें 75 प्रतिशत हिंदी और अंग्रेजी भाषा के हैं। खास बात यह है कि कुछ बड़े प्लेयर्स के लिए नॉन मेट्रो शहरों से ज्यादा डिमांड आ रही है।
एडवर्टाइजर्स की वापसी
इस बारे में ‘डीबी कॉर्प’ (DB Corp) के चीफ कॉरपोरेट सेल्स और मार्केटिंग ऑफिसर सत्यजीत सेन गुप्ता का कहना है, ‘मार्केट में रिकवरी के स्पष्ट संकेत दिखाई दे रहे हैं। जैसी कि उम्मीद थी, मेट्रो सिटीज के मुकाबले टियर-दो और तीन शहरों में रिकवरी की रफ्तार अधिक है। ऑटोमोबाइल कैटेगरी हमारी सबसे बड़ी कैटेगरी है, जिसमें सबसे पहले रिकवरी देखी जा रही है। अधिकांश वाहनों की सेल्स में मजबूती देखी जा रही है। उन्होंने सबसे पहले मई के अंत में विज्ञापन देना शुरू कर दिया था। अन्य कैटेगरीज जैसे-एफएमसीजी, हेल्थकेयर, एजुकेशन और होम अप्लाइंसेज आदि ने जून से विज्ञापनों की फिर शुरुआत कर दी थी और अब उनके विज्ञापनों में तेजी आ गई है। लाइफस्टाइल, पर्सनल एसेसरीज और ज्वेलरी आदि कैटेगरीज ने भी जुलाई में विज्ञापन देने शुरू कर दिए हैं और अपना एड वॉल्यूम बढ़ा रहे हैं।’
एड वॉल्यूम में स्टेटवाइज शेयर की बात करें तो इस लिस्ट में उत्तर प्रदेश 17 प्रतिशत शेयर के साथ टॉप पर है। दूसरे नंबर पर 10 प्रतिशत शेयर के साथ महाराष्ट्र है। इसके बाद कर्नाटक और तमिलनाडु का नंबर है। इस बारे में ‘बेनेट कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेड’ (BCCL) की एग्जिक्यूटिव कमेटी के चेयरमैन शिवकुमार सुंदरम का कहना है कि तमाम रिसर्च से पता चला है कि यह समय ब्रैंड्स के लिए चुप रहने का नहीं है। टैम डाटा के अनुसार, अप्रैल से जून के दौरान 189 कैटेगरीज में 28000 से ज्यादा एडवर्टाइजर्स और 31300 से ज्यादा ब्रैंड्स ने खासतौर पर प्रिंट में विज्ञापन दिया है।
सुंदरम के अनुसार, ‘इन्वेंट्री में भी महीना दर महीना काफी इजाफा हो रहा है। आज यदि आप हमारे अखबार देखें तो विज्ञापन वापस आ रहे हैं। जैकेट विज्ञापनों की भी वापसी हुई है और हमने कई स्पेशल फीचर्स और सप्लीमेंट्स पब्लिश किए हैं। यानी रिकवरी का रास्ता पूरी तरह तैयार है। अखबारों के पेजों की बढ़ती संख्या भी सुधरती अर्थव्यवस्था का प्रतीक है और उसका उपभोक्ता की मानसिकता पर सीधा सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।’
पब्लिशर्स को भी जगी आस
त्योहारी मौसम को देखते हुए पब्लिशर्स को भी बेहतरी की उम्मीद है। इस बारे में ‘मलयाला मनोरमा’ (Malayala Manorama) के वाइस प्रेजिडेंट (मार्केटिंग, एडवर्टाइजिंग सेल्स) वर्गीस चांडी का कहना है, ‘कोविड के बाद महीना दर महीना बिजनेस बढ़ रहा है। हालांकि अभी यह उतना नहीं है, जितना कोविड से पहले था। ब्रैंड्स एक्टिव हैं और यदि हम खासतौर पर केरल को देखें तो ओणम निकट होने से यह क्लाइंट्स को एक्टिव होने के लिए प्रेरित करता है।’
दक्षिण के मार्केट में एडवर्टाइजर कैटेगरी में नई एंट्रीज भी हुई हैं, जिसकी इंडस्ट्री को बहुत जरूरत है। इस बारे में ‘मातृभूमि’ (Mathrubhumi) के मैनेजिंग डायरेक्टर एमवी श्रेयम्स कुमार का कहना है, ‘क्लीनिंग/वॉशिंग और हाईजीन ब्रैंड्स जो पहले प्रिंट में सक्रिय नहीं थे, वे भी अब रेगुलर एडवर्टाइजर्स बन गए हैं।’
ब्रैंड्स को क्या चाहिए
सुंदरम का मानना है कि एडवर्टाइजर्स शुरुआती तौर पर दो चीजें देख रहे हैं। सुंदरम के अनुसार, ‘सबसे पहले तो वह एक विश्वसनीय वातावरण देख रहे हैं, जहां पर उनके ब्रैंड्स को सही परिप्रेक्ष्य में और सकारात्मकता की भावना के साथ प्रदर्शित किया जा सकता है, जो अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता का विश्वास बढ़ाता है।’
इसके अलावा एडवर्टाइजर्स डिस्काउंट की ओर भी देख रहे हैं। सूत्रों के अनुसार एडवर्टाइजर्स ने लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में 50-60 प्रतिशत डिस्काउंट की मांग की है। हालांकि, अखबार अब क्लाइंट्स के लिए रियायती विज्ञापन दरों को प्रोत्साहित नहीं कर रहे हैं। हालांकि अधिकांश ने डिस्काउंट की संख्या में कमी की है, लेकिन कुछ इसे पूरी तरह समाप्त करने की ओर हैं। इस बारे में सेन गुप्ता का कहना है, ‘एडवर्टाइजर्स को उनके कंज्यूमर्स तक फिर से पहुंचाने और बिक्री बढ़ाने में मदद के लिए हमने जुलाई तक कुछ स्कीम भी पेश की हैं। हालांकि, अगस्त से हम इन स्कीम को खत्म कर रहे हैं।’
सुंदरम का कहना है, ‘वर्तमान समय में अधिकांश समाचार पत्रों का प्राथमिक ध्यान पाठक की रुचि और आपसी संबंध को बढ़ाना है। कोविड ने लोगों की अखबार से अपेक्षाओं को बदल दिया है। यह तथ्यों का सबसे भरोसेमंद स्रोत बन गया है। हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि हम उपयोगिता और पढ़ने के आनंद का संतुलन बनाए रखें।’
वहीं, सेन गुप्ता का कहना है, ‘हमारे सभी प्रयास एडवर्टाइजर्स को अपने कंज्यूमर्स तक पहुंचने में मदद के लिए हैं।’ हालांकि, एडवर्टाइजर्स की प्रिंट पर वापसी हो रही है, विशेषज्ञों को इस बात में संदेह है कि क्या यह सीजन पिछले साल के बिजनेस से मेल खा पाएगा।
इस बारे में पब्लिशेस ग्रुप के स्वामित्व वाली मीडिया एजेंसी ‘जेनिथ’ (Zenith) के सीओओ जय लाला का कहना है, ‘लॉकडाउन के दौरान, प्रिंट को सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ा । हालांकि उनका ई-पेपर दर्शकों का ध्यान खींच रहा था, लेकिन उनके कुल राजस्व में भारी गिरावट देखी गई। अब चीजें धीरे-धीरे आगे बढ़ रही हैं, जिससे लगता है कि त्योहारी सीजन से प्रिंट उद्योग में थोड़ी वृद्धि देखने में मदद मिल सकती है। लेकिन अभी तक हम यह अनुमान नहीं लगा सकते हैं कि जुलाई 2020 के दौरान बिजनेस पिछले साल यानी जुलाई 2019 के बराबर पहुंच पाएगा अथवा नहीं, क्योंकि इस उद्योग पर कोविड-19 का प्रभाव पिछले कुछ महीनों में सबसे ज्यादा रहा है।
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