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फिल्मों के नायक-नायिका नकली होते हैं, सत्यार्थी जी ने असली नायकों को बनाया है: अनुपम खेर

नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी (Kailash Satyarthi) की नई किताब ‘तुम पहले क्यों नहीं आए’ का विमोचन सात दिसंबर को दिल्ली स्थित कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में किया गया।

समाचार4मीडिया ब्यूरो 1 year ago

नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी (Kailash Satyarthi) की नई किताब ‘तुम पहले क्यों नहीं आए’ का विमोचन सात दिसंबर को दिल्ली स्थित कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में किया गया। ‘राजकमल प्रकाशन’ एवं ‘इंडिया फॉर चिल्ड्रेन’ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में जाने-माने अभिनेता अनुपम खेर, कैलाश सत्यार्थी, श्रीमती सुमेधा कैलाश, राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक माहेश्वरी और इस पुस्तक के नायकों यानी बच्चों ने सामूहिक रूप से इस किताब का विमोचन किया। किताब के विमोचन से ठीक पहले बच्चों के 'हम निकल पड़े हैं' समूह गान और नारों ने वातावरण को उल्लास से भर दिया। इस दौरान बच्चों ने ‘हर बच्चे का है अधिकार, रोटी खेल पढ़ाई प्यार’ का नारा भी लगाया।

बता दें कि कैलाश सत्यार्थी की यह सातवीं किताब है। इस किताब का प्रकाशन ‘राजकमल प्रकाशन’ ने किया है। इस किताब में दासता और उत्पीड़न की कैद से प्रताड़ित बच्चों की 12 सच्ची कहानियां संकलित हैं।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि अनुपम खेर का कहना था कि फिल्मों के नायक भले ही लार्जर देन लाइफ हों, लेकिन सत्यार्थी जी ने असली नायकों को बनाया है। वह खुद में एक प्रोडक्शन हाउस हैं। इसके साथ ही अनुपम खेर ने अपने जीवन के शुरुआती संघर्ष और बच्चों के लिए काम करने वाले अपने फाउंडेशन के बारे में भी बताया। अनुपम खेर का कहना था, ‘फिल्मों में जो नायक-नायिका होती हैं, वे नकली होते हैं, असली नायक-नायिका तो इस किताब के बच्चे हैं, जिन्हें कैलाश सत्यार्थी जी ने बनाया है़। ये आपकी ही नहीं, देश की भी पूंजी हैं। मैं लेखक के साथ राजकमल प्रकाशन को भी बधाई देता हूं कि उन्होंने ऐसी किताब प्रकाशित की है़।’ इसके बाद उन्होंने किताब की भूमिका के कुछ अंश भी पढ़कर सुनाए। उन्होंने मंच से ही कैलाश सत्यार्थी से उनके काम के बारे में अनौपचारिक बातें की और उनके अनुभव साझा किए।

किताब के लेखक कैलाश सत्यार्थी का कहना था, ‘इस किताब की हर कहानी अंधेरों पर रोशनी की, निराशा पर आशा की, अन्याय पर न्याय की और हैवानियत पर इंसानियत की जीत का भरोसा दिलाती है। यह कुछ ऐसे चुनिंदा बच्चों की जिंदगी का दस्तावेज है, जिनकी पीड़ा की तपन से लाखों बच्चों की गुलामी की जंजीरें पिघलकर टूटी थीं।’ इसके साथ ही कैलाश सत्यार्थी का यह भी कहना था कि इन कहानियों को पढ़कर अगर आपकी आंखों में आंसू आते हैं तो वह आपकी इंसानियत का सबूत है। उन्होंने बताया कि इस किताब में जिन बच्‍चों की कहानियां कही गई हैं, उनमें से कई को संयुक्‍त राष्‍ट्र जैसे वैश्विक मंच पर वैश्विक स्तर के नेताओं से मुखातिब होने और बच्‍चों के अधिकार की मांग उठाने के मौके भी मिले। इसके बाद बेहतर बचपन को सुनिश्चित करने के लिए कई राष्‍ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय कानून भी बने। कैलाश सत्यार्थी का कहना था कि बच्चों से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। हमारे लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम खुद भी अपने भीतर के बच्चे को पहचानें।

कैलाश सत्यार्थी के अनुसार, ‘इस किताब को कागज पर लिखने में भले ही मुझे 12-13 साल लगे हों लेकिन इसमें जो कहानियां दर्ज हैं उन्हें मेरे हृदय पटल पर अंकित होने में 40 वर्षों से भी अधिक समय लगा है। मैं साहित्यकार तो नहीं हूं,पर एक ऐसी कृति बनाने की कोशिश की है जिसमें सत्य के साथ साहित्य का तत्व भी समृद्ध रहे। ये कहानियां जिनकी हैं, मैं उनका सहयात्री रहा हूं, इसलिए जिम्मेदारी बढ़ जाती है। स्मरण के आधार पर कहानियां लिखीं, फिर उन पात्रों को सुनाया जिनकी ये कहानियां हैं। इस तरह सत्य घटनाओं का साहित्य की विधा के साथ समन्वय बनाना था। मैंने पूरी ईमानदारी से एक कोशिश की है। साहित्य की दृष्टि से कितना खरा उतर पाया हूं ये तो साहित्यकारों और पाठकों की प्रतिक्रिया के बाद ही कह सकूंगा।’

इस दौरान कैलाश सत्यार्थी ने यह भी बताया कि वह अपनी आत्मकथा लिखने जा रहे हैं, जो जल्द ही प्रकाशित होगी। इस पर अनुपम खेर ने उनसे इस आत्मकथा पर फिल्म (बायोपिक) बनाने और मजाक-मजाक में खुद को इस फिल्म में कैलाश सत्यार्थी की भूमिका निभाने की पेशकश भी कर दी।  

लोकार्पण के मौके पर ‘राजकमल प्रकाशन’ समूह के प्रबंध निदेशक अशोक माहेश्वरी का कहना था, ‘यह हमारे लिए विशेष खुशी का अवसर है। इसका कारण केवल यह नहीं है कि आज हमारे द्वारा प्रकाशित ऐसी एक किताब का विमोचन होने जा रहा है, जिसके लेखक नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी जी हैं और जिनके हाथों विमोचन हो रहा है, वह विख्यात अभिनेता अनुपम खेर हैं। इन विभूतियों के साथ-साथ आप सबके साहचर्य की खुशी बेशक हमें है। पर सबसे बड़ी खुशी इस बात की है कि 'तुम पहले क्यों नहीं आये' के जरिये हमें उन बच्चों के बारे में जानने का मौका मिला जो अकल्पनीय, अमानवीय परिस्थितियों से होकर गुजरने के बावजूद अन्य संकटग्रस्त  बच्चों की मुक्ति के लिए प्रयत्नशील रहे।”

अशोक माहेश्वरी का यह भी कहना था, ‘मैं दोहराना चाहता हूं कि इस पुस्तक को प्रकाशित करना हमारे लिए विशेष रहा है। कारण कि यह बच्चों के बारे है, वह भी उन बच्चों के बारे में जिन्हें समाज की विसंगतियों का शिकार होना पड़ा, जिन्हें हर तरह के अभाव और अपमान से गुजरना पड़ा। कैलाश सत्यार्थी और उनके ‘बचपन बचाओ अभियान’ के चलते वे उन अमानवीय हालात से मुक्त होकर आज हमारे बीच हैं, नए जीवन के सपने देख रहे हैं। यह किताब हमें यह भी याद दिलाती है कि अनेक बच्चे आज भी ऐसी ही परिस्थितियों में जीवन बिता रहे होंगे, उनके लिए हमें लगातार काम करते रहना होगा। सिर्फ संगठन के स्तर पर नहीं, निजी तौर पर भी एक जागरूकता पैदा करनी होगी, ताकि समाज खुद भी उन बच्चों के प्रति संवेदनशील बनें और ऐसे हालत ही न बनने दें कि भविष्य के ये नागरिक इस तरह नष्ट हों। बचपन अगर सुरक्षित नहीं है तो दुनिया का भविष्य सुरक्षित नहीं हो सकता। कैलाश जी किताब इस सचाई को रेखांकित करती है और बचपन को हर प्रकार के शोषण से मुक्त रखने में छोटे से छोटे प्रयास की आवश्यकता व उसकी सार्थकता को स्पष्ट करती है।’

लोकार्पण कार्यक्रम से पहले 'कैलाश सत्यार्थी से मुलाकात' के दौरान आमंत्रित अतिथियों और मीडियाकर्मियों ने उनसे आंदोलन के विषय में सवाल किए। इस दौरान कैलाश सत्यार्थी ने उन्हें अपने आंदोलन के सरोकारों और प्रक्रिया से अवगत कराया। इस अवसर पर पुस्तक के नायक बच्चों पर केंद्रित एक लघु फ़िल्म का प्रदर्शन किया गया। बच्चों ने उपस्थित जनों को संबोधित भी किया और आज वे किन जिम्मेदारियों का निर्वाह कर रहे हैं, उनके बारे में भी बताया।


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