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तार्किक निष्कर्ष निकालने के लिए इतिहास के पन्ने पलटना जरूरी: रुबिका लियाकत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में 22 जनवरी को अयोध्या के भव्य राम मंदिर में रामलला की नई मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गई। प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर को एक नए युग के आगमन का प्रतीक करार दिया।

समाचार4मीडिया ब्यूरो 9 months ago

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में सोमवार (22 जनवरी) को अयोध्या के भव्य राम मंदिर में रामलला की नई मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गई। प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर को एक नए युग के आगमन का प्रतीक करार दिया। उन्होंने लोगों से मंदिर निर्माण से आगे बढ़कर अगले 1,000 वर्षों के मजबूत, भव्य और दिव्य भारत की नींव बनाने का आह्वान किया।

इस शुभ अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार रुबिका लियाकत ने अपने 'एक्स' हैंडल से एक पोस्ट की और अपनी ख़ुशी को साझा किया। इस दौरान उन्होंने अपनी मां के नाम का ब्रेसलेट भी पहना था। उन्होंने लिखा, 'आज माँ को भी इस अद्वितीय मौक़े पर साथ ले गई थी। राम मंदिर, भारतीयों के सब्र का प्रतीक है, 22 जनवरी न्याय की प्रतीक्षा का प्रतीक है। जब आप भारत की खुशी में शरीक होंगे।

भारत की आस्था को सम्मान देंगे तो एक-एक भारतीय आपको सर-आँखों पर बैठा देगा। राजनीति तो चाहेगी कि आप इस दिव्य राम मंदिर को धार्मिक चश्मे से तौलें, लेकिन ईमानदारी से इसे ऐतिहासिक, न्यायिक तराज़ू पर तौलेंगे तो पाएँगे कि इस ज़मीन का हक, इसी जमीन पैदा हुए राम जी का है। समझ लगाएंगे तो पाएंगे कि ये धार्मिक लड़ाई हो ही नहीं सकती।

ये जन्मभूमि प्रभु राम की है। कश्मकश तब होती जब हमारे नबी कि या उनके अहल-ओ-अयाल की पैदाइश इसी ज़मीन पर होती। बाहर से आए आक्रांता इस्लाम को मानते ज़रूर थे लेकिन वो यहाँ धर्म के लिए नहीं अपने वर्चस्व के लिए आए थे और धर्म का उस वर्चस्व की लड़ाई में हथियार की तरह इस्तेमाल किया। वरना किस हक़ से किसी और के आराध्य की सबसे पाक ज़मीन पर वो अपनी पहचान थोप सकते है? ये तो असल इस्लाम नहीं सिखाता।

आज का दिन गड़े मुर्दे उखाड़ने का नहीं है लेकिन तार्किक निष्कर्ष निकालने के लिए इतिहास के पन्ने पलटना जरूरी होता है। आपसे कोई नमाज का हक नहीं छीन रहा, न ही ये आपके साथ अन्याय है। नजरिया ठीक कीजिए और दिल बड़ा करके देखिए। ये हमारे मुल्क की जीत है, उसके खोए हुए स्वर्णिम अध्याय की वापसी है। हम भारत के हैं और भारत राम का है। बस इतनी सी बात है। सियावर रामचंद्र की जय।'

 


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