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महज नौ महीने में ही इंडिया डेली लाइव का फूला ‘दम’, उठ रहे ये बड़े सवाल
हिंदी न्यूज चैनल ‘इंडिया डेली लाइव’ में लगता है कि इन दिनों सब कुछ सही नहीं चल रहा है। करीब नौ महीने पहले तमाम बड़े-बड़े दावों और वादों के साथ शुरू हुए इस चैनल का ‘दम’ अभी से ‘फूलता’ दिखाई दे रहा है।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 7 months ago
हिंदी न्यूज चैनल ‘इंडिया डेली लाइव’ (India Daily Live) में लगता है कि इन दिनों सब कुछ सही नहीं चल रहा है। करीब नौ महीने पहले तमाम बड़े-बड़े दावों और वादों के साथ शुरू हुए इस चैनल का ‘दम’ अभी से ‘फूलता’ दिखाई दे रहा है। यही नहीं, इसका असली ‘रंग’ भी नजर आने लगा है। यह हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि चैनल में इस समय जो माहौल है, उसे लेकर इंडस्ट्री में यही चर्चा है। ऐसे में इंडस्ट्री में इस चैनल के भविष्य को लेकर आशंकाओं के बादल गहराने लगे हैं। इसके साथ ही इन दिनों यहां जारी कवायद को लेकर तमाम बड़े सवाल भी उठ रहे हैं।
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दरअसल, चैनल के एडिटर-इन-चीफ शमशेर सिंह ने कुछ दिनों पहले ही इस्तीफा दे दिया है। अंदरखाने से जुड़े सूत्रों से पता चला कि मैनेजमेंट उन पर बड़े पैमाने पर छंटनी करने का दबाव बना रहा था, लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया और अपना इस्तीफा प्रबंधन को सौंप दिया।
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हालांकि, इसके बाद भी मैनेजमेंट ने पिछले एक महीने में ही यहां 40 से ज्यादा एंप्लॉयीज को बाहर का रास्ता दिखा दिया है। इनमें ज्यादातर डिजिटल टीम के एंप्लॉयीज हैं। खबर तो यहां तक है कि कॉस्ट कटिंग के नाम पर अभी तमाम एंप्लॉयीज को भी जाने को कहा जा सकता है। इनमें से तमाम पत्रकार तो ऐसे हैं, जो कुछ समय पहले ही करियर में बेहतरी की लालसा में अन्य चैनल्स में अपनी जमी-जमाई नौकरी छोड़कर आए थे। वहीं, मीडिया में नौकरी पाने आए कई युवा पत्रकार भी इससे जुड़े थे। ऐसे में उनके सामने आगे कुआं और पीछे खाई वाली स्थिति हो गई है और वे समझ नहीं पा रहे हैं कि अब क्या करें।
चैनल से जुड़े लोगों के अनुसार, लॉन्चिंग के बाद जब यहां विस्तार किया गया तो करीब 109 लोगों की टीम गठित कर दी गई, जिनमें से अब धीरे-धीरे कॉस्ट कटिंग के नाम पर तमाम लोगों को बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। अंदरखाने से जुड़े सूत्रों की मानें तो इस चैनल ने मुंबई, भोपाल, जयपुर, जम्मू, पटना, देहरादून और गुवाहाटी में अपने ब्यूरो बंद करने की तैयारी शुरू कर दी है। ऐसे में वहां से भी पत्रकारों को निकालने की तैयारी है, जिससे छंटनी पीड़ित पत्रकारों की संख्या और बढ़ सकती है।
विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, चैनल ने यह सब कवायद सरकारी विज्ञापन मिलना बंद होने के बाद कॉस्ट कटिंग के नाम पर की है। अंदरखाने से जुड़े इन सूत्रों की मानें तो चैनल को अभी तक पंजाब से सरकारी विज्ञापन मिल रहे थे, जो वहां कुछ राजनेताओं के यहां पड़े ईडी के छापे के बाद मिलने बंद हो गए। ऐसे में सरकारी विज्ञापनों के सहारे अपनी नैया पार लगाने की कोशिश में लगे चैनल को भारी झटका लगा। कुछ यही स्थिति झारखंड से भी रही। दरअसल, चैनल के लिए विज्ञापन का मुख्य स्रोत यही दो राज्य थे, लेकिन अब स्थिति विपरीत होने के बाद चैनल के खर्चे निकालना मुश्किल दिखाई देने लगा तो इसकी गाज एंप्लॉयीज पर गिरनी शुरू हो गई।
चैनल से जुड़े विश्वसनीय सूत्रों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अभी तक इस चैनल में आदित्य वशिष्ठ और साहिल मंगला के शेयर सबसे ज्यादा थे, जिन्होंने चैनल को शुरू करने में करीब 60 करोड़ रुपये खर्च किए थे। उस समय टीम की सैलरी व अन्य खर्चों पर 20 करोड़, डिस्ट्रीब्यूशन पर 18 करोड़ और इक्पिवमेंट व बिल्डिंग पर करीब 30 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। हालांकि, न तो आदित्य वशिष्ठ के पास और न ही साहिल मंगला के पास चैनल चलाने का किसी तरह का अनुभव था। ऐसे में जब उन्हें लगा कि अब चैनल को इतने खर्चे पर चलाना मुश्किल होगा, तो उन्होंने इससे अलग होने में ही अपनी भलाई समझी और अधिकांश शेयर बेच दिए। अब खबर है कि चैनल के अधिकांश शेयर करीब 65 करोड़ रुपये में बेचकर दोनों अब इससे अलग हो गए हैं, लेकिन अभी इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है।
सुनने में आ रहा है कि अब चैनल को लो-कॉस्ट मॉडल पर चलाने की तैयारी है। यानी अब चैनल में ज्यादा खर्चा नहीं किया जाएगा और सिर्फ सरकारी विज्ञापनों के सहारे इसे जब तक खींचा जाए, खींचा जाएगा। हालांकि, आधिकारिक रूप से अभी इस तरह की कोई घोषणा नहीं की गई है।
इस बीच चैनल मैनेजमेंट से जुड़े सूत्रों ने इस तरह की खबरों से इनकार किया है कि चैनल को किसी को बेच दिया गया है। सूत्रों के अनुसार, चैनल ज्यों का त्यों चल रहा है और इसी तरह चलता रहेगा। अभी कई नए चेहरे और शामिल होंगे। चैनल मैनेजमेंट से जुड़े सूत्रों का यहां तक कहना है कि रही बात रेवेन्यू की तो चैनल के वर्तमान मालिकों को इसे चलाने का पूर्व का कोई अनुभव नहीं था और चैनल भी सही नहीं चल रहा था, ऐसे में जब लगा कि चैनल में बेवजह के खर्चे ज्यादा बढ़ गए हैं और यह सही दिशा नहीं पकड़ पा रहा है तो शमशेर सिंह से प्रभार ले लिया गया। जल्द ही उनकी जगह नई नियुक्ति की जाएगी।
वहीं, चैनल के सीईओ आरके अरोड़ा की बात करें तो उन्हें भी चैनल चलाने का ज्यादा अनुभव नहीं है। आरके अरोड़ा को नजदीक से जानने वाले लोग बताते हैं कि वह सिर्फ डिस्ट्रीब्यूशन के व्यक्ति हैं, उन्हें मैनेजमेंट और रेवेन्यू का कोई अनुभव नहीं है। इसके साथ ही चैनल में सेल्स हेड और रेवेन्यू हेड की नियुक्ति भी नहीं की गई। मार्केटिंग स्ट्रैटेजी भी कुछ खास नजर नहीं आई और सब कुछ आरके अरोड़ा के हवाले कर दिया गया। ऐसे में चैनल अपना दमदार प्रभाव छोड़ने में नाकामयाब रहा। सवाल यह भी उठ रहा है कि जब अधिकांश एडवर्टाइजर्स इस चैनल के बारे में ज्यादा जानते ही नहीं तो आखिर कैसे यह रेवेन्यू जुटाने में कामयाब होगा। जानकारों का मानना है कि वर्तमान स्थिति देखी जाए तो सिर्फ चैनल शुरू करने के नाम पर कर दिया गया, जबकि एक चैनल को लॉन्च करने के साथ-साथ उसे चलाने में जिन चीजों का सबसे ज्यादा योगदान होता है, उन्हीं तमाम बातों को नजरअंदाज कर दिया गया, ऐसे में चैनल का इतने कम समय में ‘दम’ तो फूलना ही था,
दरअसल, न्यूज बिजनेस के लिए एडिटोरियल पर फोकस होना जरूरी होता है। इसके लिए अनुभव बहुत मायने रखता है और स्ट्रैटेजी पर फोकस करना होता है। यह कोई रियल एस्टेट अथवा ओओएच की तरह सेल्स का बिजनेस नहीं है। दर्शक सिर्फ न्यूज देखना चाहते हैं और यदि दर्शक संख्या बढ़ेगी तो चैनल अपने आप ऐडवर्टाइजर्स के बीच लोकप्रिय होगा और रेवेन्यू भी मिलना शुरू हो जाएगा।
मीडिया बिजनेस से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि विभिन्न नामों से तमाम चैनल्स खुल तो जाते हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश का न तो एडिटोरियल पर फोकस होता है और न ही उनके कंटेंट में कुछ खास दम होता। यही नहीं, बेहतर मार्केटिंग का अभाव और डीप मार्केट में मौजूदगी न होने के साथ-साथ अच्छे सेल्स प्रोफेशनल्स की कमी भी इन चैनल्स को आगे बढ़ाने में बाधा बनती है। सिर्फ विज्ञापन के सहारे इस तरह के चैनल्स की नैया आगे बढ़ती रहती है। ऐसे में जब तक सरकारी विज्ञापन मिलता रहता है, तब तक चीजें बेहतर दिखती हैं और जैसे ही किसी न किसी वजह से विज्ञापनों का संकट आता है, इसकी गाज एंप्लॉयीज पर गिरनी शुरू हो जाती है।
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