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पत्रकार से किसी घटना के सनसनीखेज बनाने की उम्मीद नहीं की जा सकती: हाई कोर्ट
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक मामले में पत्रकार के कृत्य पर गंभीर टिप्पणी की है।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 3 years ago
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक मामले में पत्रकार के कृत्य पर गंभीर टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि एक पत्रकार से सनसनीखेज और भयावह घटना का नाटक करने और किसी व्यक्ति को दयनीय स्थिति में मौत के खतरे में डालकर उसकी खबर बनाने की उम्मीद नहीं की जाती है।
दरअसल, लखनऊ खंडपीठ ने यह टिप्पणी करते हुए मानसिक रूप से परेशान एक किरायेदार को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में पत्रकार शमीम अहमद की जमानत अर्जी खारिज कर दी है।
कोर्ट ने कहा कि उससे यह भी उम्मीद नहीं की जाती कि वह मौत जैसे खतरे के समय अपने एक्टर गुण को सामने रख कर खबर को कवर करे।
दरअसल, उत्तर प्रदेश विधान भवन के सामने एक व्यक्ति द्वारा आत्मदाह करने के मामले में कोर्ट ने कहा कि पत्रकार का काम प्रत्याशित या अप्रत्याशित रूप से घटी घटना पर नजर रखना और उसे बिना तोड़े मरोड़े विभिन्न माध्यमों से लोगों के सामने रखना होता है। यह आदेश जस्टिस वीके श्रीवास्तव की एकल पीठ ने शमीम अहमद की जमानत अर्जी खारिज करते हुए पारित किया।
बता दें कि पत्रकार पर आरोप है कि उसने एक व्यक्ति को यह कहकर उकसाया कि यदि वह विधानसभा भवन के सामने आत्महत्या करने की कोशिश करेगा, तो वह उसका वीडियो बनाकर टेलीविजन पर टेलीकास्ट करेगा।
हाई कोर्ट ने विचारण अदालत को एक साल के भीतर विचारण पूरा करने का प्रयास करने का आदेश देते हुए स्पष्ट किया कि इस आदेश में की गई टिप्पणियों से वह प्रभावित नहीं होगी। इस मामले की प्राथमिकी मृतक की पत्नी ने 20 अक्टूबर 2020 को हुसैनगंज थाने पर दर्ज कराई थी। उसने कहा था कि उसके पति सुरेंद्र चक्रवर्ती का मकान मालिक जावेद खान से मकान खाली करने को लेकर सिविल कोर्ट में मुकदमा चल रहा था। 19 अक्टूबर 2020 को जावेद ने उसके पति को डांटते हुए कहा कि यदि मकान खाली नही कर सकते तो आग लगाकर मर जाओ।
मृतक की पत्नी ने आगे कहा कि इस घटना के बाद पत्रकार शमीम अहमद व नौशाद अहमद उसके यहां आये और उसके पति से कहा कि यदि तुम विधान भवन के सामने अपने को आग लगा लो तो मैं उसका वीडियो बनाकर टीवी पर चला दूंगा, जिससे मामला तूल पकड़ जाएगा और जावेद तुम पर मकान खाली करने का दबाव नहीं बना पायेगा। उसके पति दिमागी रूप से परेशान चल रहे थे। अगले दिन वह विधानसभा के सामने गए और आग लगा ली।
अपर शासकीय अधिवक्ता प्रेम प्रकाश ने कोर्ट को बताया कि विवेचना के दौरान मिले सबूतों से स्पष्ट है कि शमीम विधानसभा के सामने पहले से मौजूद थे और चक्रवर्ती ने आकर जब अपने को आग लगाई तो वह वीडियो बनाता रहा, जबकि वहां मौजूद पुलिसकर्मी उसे कंबल से ढककर बचाने के लिए दौड़े और अस्पताल ले गए, जहां 24 अक्टूबर 2020 को उसकी मौत हो गई।
आरोपी के पास से वीडियो कैमरा और फिल्म, स्वतंत्र गवाह के साक्ष्य और विधानसभा के सीसी टीवी बरामद हुए। कोर्ट ने कहा कि गंभीर रूप से जले हुए मृतक को बचाने के बजाय, आरोपी इसे तब तक फिल्माता रहा जब तक कि वह बुरी तरह से झुलस नहीं गया। इसलिए, अदालत ने पाया कि आरोपी के खिलाफ अभियोजन का मामला प्रथम दृष्टया स्थापित है कि उसने मृतक को मानसिक और वित्तीय संकट में रहने के लिए प्रलोभन दिया और उनसे छुटकारा पाने की योजना बनाई।
अदालत ने आगे कहा कि वह घटना स्थल पर मृतक के साथ मौजूद था और इस घटना का वीडियो बना रहा था। इसलिए, आरोपी द्वारा अपनी बेगुनाही का दावा प्रथम दृष्टया स्थापित नहीं किया गया है।
कोर्ट ने कहा, ‘शिकायतकर्ता (मृतक की पत्नी), जो पहले से ही अपने पति की आर्थिक स्थिति से मानसिक रूप से परेशान है, जिसने आरोपी के प्रभाव में आकर आत्महत्या कर ली। कोर्ट ने आगे कहा कि अगर आरोपी को मुक्त कर दिया जाता है, तो शिकायतकर्ता खतरे में होगी क्योंकि वह मामले में मुख्य गवाह है। निष्पक्ष सुनवाई के लिए शिकायतकर्ता को एक गवाह के रूप में पूरी तरह से भय मुक्त वातावरण की आवश्यकता होगी। उसे मामले की निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है।
लिहाजा कोर्ट ने इस घटना पर पत्रकार के रवैये की निंदा की और उसे जमानत देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने उसके खिलाफ दस मुकदमों के आपराधिक इतिहास को भी संज्ञान में लिया।
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