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TRP घोटाले में मनी लॉन्ड्रिंग केस रद्द, विशेष अदालत ने ED की जांच को किया खारिज
मुंबई की एक विशेष अदालत ने मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA) के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा दायर TRP घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस को खारिज कर दिया है।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 4 days ago
मुंबई की एक विशेष अदालत ने मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA) के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा दायर TRP घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस को खारिज कर दिया है। यह मामला टेलीविजन रेटिंग पॉइंट्स (TRP) में हेराफेरी से जुड़ा था, जिसका आरोप कई टीवी चैनलों और न्यूज चैनलों पर लगाया गया था।
टेलीविजन रेटिंग पॉइंट्स (TRP), जो एक विशिष्ट समय स्लॉट के दौरान किसी कार्यक्रम के दर्शकों की संख्या को मापता है, किसी शो की लोकप्रियता का प्रमुख संकेतक हैं और विज्ञापन राजस्व को प्रभावित करता है।
यह घटनाक्रम मुंबई पुलिस द्वारा उस मामले को वापस लेने के बाद आया है जिसके कारण ED की मनी लॉन्ड्रिंग जांच शुरू हुई थी। 2020 में, मुंबई पुलिस ने दावा किया था कि उन्होंने एक ऐसी योजना का पर्दाफाश किया है जिसमें कुछ टीवी चैनल विज्ञापन राजस्व बढ़ाने के लिए TRP में हेरफेर कर रहे थे, ताकि वे विज्ञापन से अधिक राजस्व कमा सकें। हालांकि, 2023 तक, मुंबई पुलिस ने मजिस्ट्रेट कोर्ट को मामले को पूरी तरह से खत्म करने के अपने फैसले के बारे में सूचित कर दिया।
TRP घोटाले का खुलासा
मुंबई पुलिस के अनुसार, अक्टूबर 2020 में इस घोटाले का खुलासा हुआ था जब यह पता चला कि कुछ चैनल TRP में हेरफेर करने के लिए लोगों को पैसे दे रहे थे। पुलिस ने आरोप लगाया था कि मुंबई के झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले कुछ परिवारों को 400 से 500 रुपये प्रति माह दिए जा रहे थे ताकि वे विशेष चैनलों को चालू रखें।
इस जांच में पाया गया कि 'ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल' (BARC) ने मुंबई में TRP की निगरानी के लिए 1,800 बैरोमीटर की स्थापना की थी, जिसे 'हंसा रिसर्च' नामक कंपनी ने आउटसोर्स किया था। हंसा रिसर्च ने ही बाद में कुछ पूर्व कर्मचारियों के खिलाफ शिकायत दर्ज की, जिन पर यह आरोप था कि उन्होंने उन घरों के गोपनीय डेटा का दुरुपयोग किया जहां इन TRP बैरोमीटर लगाए थे।
पुलिस जांच और आरोप
मुंबई पुलिस की प्रारंभिक जांच में यह सामने आया कि गिरफ्तार किए गए व्यक्ति और कुछ अन्य आरोपी हंसा रिसर्च के कर्मचारी थे, जिन्होंने अपने फायदे के लिए गोपनीय डेटा का दुरुपयोग किया। यह भी पाया गया कि इन व्यक्तियों ने कुछ टीवी चैनलों को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए बैरोमीटर उपयोगकर्ताओं को पैसे देकर उन्हें एक विशेष चैनल देखने के लिए प्रलोभित किया था, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न विज्ञापनदाताओं और उनकी एजेंसियों को नुकसान हुआ। पुलिस ने कहा कि कई घरों के लोग इस बात को मान चुके थे कि उन्हें टीवी सेट चालू रखने के लिए पैसे दिए गए थे, भले ही वे वास्तव में उस चैनल को नहीं देख रहे थे।
हंसा रिसर्च के सीईओ प्रवीण निझारा ने कहा, "हंसा रिसर्च और BARC ने पिछले कुछ हफ्तों में इस मामले की जांच की थी, जिसके निष्कर्ष के अनुसार हंसा रिसर्च ने एक पूर्व कर्मचारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की, जो कुछ गलत कामों में लिप्त था। हंसा रिसर्च हमेशा इन मुद्दों को लेकर सतर्क रहा है और जब भी ऐसे मामले हमारे संज्ञान में आए हैं, तो BARC और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को सूचित करने में सक्रिय रहा है। हम BARC और अधिकारियों के साथ सहयोग करते रहेंगे।"
मुंबई पुलिस प्रमुख की प्रेस वार्ता के तुरंत बाद 'रिपब्लिक टीवी' ने भी एक बयान जारी किया था जिसमें कहा गया था:
'रिपब्लिक टीवी' का बयान
इस मामले में 'रिपब्लिक टीवी' का नाम सामने आने के बाद चैनल के एडिटर-इन-चीफ अरनब गोस्वामी ने मुंबई पुलिस पर पलटवार करते हुए कहा था कि चैनल पर लगाए गए आरोप गलत हैं। उन्होंने कहा था, “मुंबई पुलिस कमिश्नर पीबी सिंह ने रिपब्लिक टीवी के खिलाफ झूठे आरोप लगाए हैं क्योंकि हमने सुशांत सिंह राजपूत की जांच में उनसे पूछताछ की है। रिपब्लिक टीवी मुंबई पुलिस कमिश्नर पीबी सिंह के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मुकदमा दायर करेगा; BARC की एक भी रिपोर्ट में रिपब्लिक टीवी का जिक्र नहीं है। भारत के लोग सच्चाई जानते हैं। सुशांत सिंह राजपूत मामले में श्री पीबी सिंह की जांच सवालों के घेरे में है और पालघर, सुशांत सिंह राजपूत मामले या किसी अन्य मामले पर रिपब्लिक टीवी की रिपोर्टिंग के कारण यह एक हताशा भरा कदम है। इस तरह का निशाना रिपब्लिक टीवी में सभी के सत्य को और भी मजबूती से सामने लाने के संकल्प को मजबूत करता है। पीबी सिंह आज पूरी तरह से बेनकाब हो गए हैं क्योंकि BARC ने किसी भी शिकायत में रिपब्लिक का जिक्र नहीं किया है। उन्हें आधिकारिक तौर पर माफी मांगनी चाहिए और अदालत में हमारा सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए।”
BARC और TRP रेटिंग्स का निलंबन
'ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल' (BARC) ने अक्टूबर 2020 में TRP घोटाले के बाद न्यूज चैनलों की रेटिंग्स को 18 महीनों के लिए निलंबित कर दिया था। इस दौरान किसी भी न्यूज़ चैनल की TRP रेटिंग नहीं दी गई। यह निलंबन तब तक जारी रहा जब तक कि सरकार के हस्तक्षेप के बाद मार्च 2022 में BARC ने रेटिंग्स फिर से शुरू नहीं की।
यह TRP घोटाला एक महत्वपूर्ण मामला था जिसने टीवी चैनलों के विज्ञापन और रेटिंग्स को लेकर कई सवाल खड़े किए थे। ED की मनी लॉन्ड्रिंग जांच अब समाप्त हो चुकी है, लेकिन TRP सिस्टम की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर बहस अभी भी जारी है।
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