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अखबार की खबर को प्रशासन ने बताया गलत, DM बोले- छापो खंडन, नहीं तो लेंगे एक्शन
कोरोना वायरस को लेकर देशभर में 21 दिन का लॉकडाउन है। लोग अपने घरों में हैं। लॉकडाउन के ऐलान के बाद सबसे ज्यादा अगर लोगों को डर है तो वो खुद की सुरक्षा को लेकर है।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 4 years ago
कोरोना वायरस को लेकर देशभर में 21 दिन का लॉकडाउन है। लोग अपने घरों में हैं। लॉकडाउन के ऐलान के बाद सबसे ज्यादा अगर लोगों को डर है तो वो खुद की सुरक्षा को लेकर है। इतना डर कोरोना से नहीं जितना अब भूखे मरने से लग रहा है। ऐसे में भुखमरी से जुड़ी एक खबर पब्लिश करने को लेकर एक अखबार खुद सुर्खियों में आ गया है।
हिंदी समाचार पत्र ‘जनसंदेश टाइम्स’ ने गुरुवार (26 मार्च, 2020) को एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसकी हेडिंग थी- ‘बनारस के कोइरीपुर में घास खा रहे मुसहर’। इस रिपोर्ट में बताया गया कि बनारस के पिंडरा तहसील बड़ागांव थानांतर्गत कोइरीपुर गांव में मुसहरों के बच्चे लॉकडाउन के चलते खाने की कमी की वजह से अखरी घास खा रहे हैं। ‘जनसंदेश टाइम्स’ में यह खबर विजय विनीत और मनीष मित्र की संयुक्त बाईलाइन से छपी थी।
मामला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस का था, लिहाजा इस खबर से जुड़ी अखबार की कटिंग सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल होने लगी। जिला प्रशासन भी हरकत में आ गया। खबर की जांच-पड़ताल के बाद उसने इस खबर को गलत बताया।
वाराणसी के जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने अगले दिन यानी गुरुवार को अखबार के संपादक सुभाष राय और संवाददाताओं को कानूनी कार्यवाही का नोटिस थमा दिया। नोटिस में कहा गया है कि वे खबर का खंडन छापें अन्यथा उन पर कार्रवाई की जाएगी।
नोटिस में जिलाधिकारी ने कहा कि बच्चों के घास खाने को लेकर प्रकाशित समाचार व तथ्य वास्तविकता के विपरीत हैं। इस गांव में बच्चे फसल के साथ उगने वाली अंकरी दाल और चने की बालियां तोड़कर खाते हैं और ये बच्चे भी अंकरी दाल की बालियां खा रहे थे।
नोटिस में यह भी लिखा है, ‘घास खाना लिखकर मुसहर जाति के परिवारों पर लांछन लगाने का कुत्सित प्रयास किया गया है।’
वहीं, ‘इंडियन एक्सप्रेस’ से बातचीत में वाराणसी के जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने अपनी बात दोहराते हुए कहा कि बच्चे घास या पौधे नहीं, बल्कि अंकरी दाल और हरे चने के पौधों से बालियां निकाल कर खा रहे थे। इनके परिवार के पास राशन कार्ड है और इस महीने के लिए इन लोगों को राशन भी मिला है। उन्होंने कहा कि यह तस्वीर सामने आने के बाद इन्हें अतिरिक्त राशन भी दिया गया है। डीएम ने सोशल मीडिया पर खुद अपने बेटे के साथ एक फोटो भी डाली है। इसमें वह अखरी दाल और हरे चने की बालियां खाते नजर आ रहे हैं। उनका कहना है कि यह खाना सामान्य बात है और ये चीजें खाई जाती हैं।
हालांकि, इसके बाद नोटिस को लेकर ‘जनसंदेश टाइम्स’ ने अपना पक्ष भी छापा, जिसमें कहा गया, ‘कोरोना वायरस को लेकर हुए लॉकडाउन के दौरान भूख से बिलबिलाते मुसहर समुदाय की पीड़ा को उजाकर करना अखबार का धर्म था और वही किया भी। इस गांव के लोग भूख से बेहाल थे, तभी तो समाचार प्रकाशित होने के बाद प्रसाशनिक मशीनरी हरकत में आयी और आनन-फानन कोईरीपुर पहुंचकर राशन बंटवाया। मौके पर मौजूद बड़ागांव थानाध्यक्ष ने मुसहर समुदाय से साफ-साफ कहा कि खाने का संकट था तो हमें खबर क्यों नहीं दी।’
अखबार में आगे लिखा गया है, ‘जनसंदेश टाइम्स किसी सियासी दल अथवा व्यक्ति का पक्षकार नहीं रहा है। अखबार समाज के आखिरी आदमी तक के आवाज को सरकार तक पहुंचाने का काम करता है। हमारे समाचार संपादक विजय विनीत ने कहा है कि गंवई प्रचलन में अखरी घास है। इसे मवेशियों को खिलाया जाता है। ग्रामीण इसे खाने खाना तो दूर, अपने फसलों की रक्षा के लिए उखाड़ने में कोताही नहीं बरतें। इस खर-पतवार को नष्ट करने के लिए सरकार भी अभियान चलाती है। समूचा कृषि महाकुमा अंकुरी घास को नष्ट करने का फार्मूला भी किसानों को बताता है। यह वही घास है जो गेहूं में हर साल बेवजह उग जाती है और 40 फीसदी उत्पादकता को चाट जाती है।
समाचार संपादक विजय विनीत ने आगे कहा है कि कोरोना महामारी में संयम और धैर्य बरतने की जरूरत है। कोई सियासी दल अखबार में छपी खबरों को मुद्दा ना बनाएं। अखबार का मकसद भूख से परेशान लोगों की आवाज बनना है। किसी को बदनाम करना नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि भूख से बिलबिलाते कोईरीपुर गांव के मुसहर समुदाय के बच्चे अपने पेट की भूख मिटाने के लिए अंकरी खा रहे थे। ऐसा करना उनकी मजबूरी थी। फोटो खिंचवाने के मकसद से मुसहर समुदाय के बच्चे अंकरी नहीं खा रहे थे।
विजय विनीत ने यह भी कहा कि अगर डीएम कौशल राज शर्मा अंकरी को दाल मानते हैं, तो हमारे पाठक घास के आगे अंकरी जोड़ लें अथवा घास को घास न पढ़कर अंकरी समझें। विनीत ने यह भी कहा कि जनसंदेश टाइम्स का 26 मार्च का संस्करण रात करीब 10:30 बजे छप गया था, जबकि जिलाधिकारी ने रात 1:30 बजे समाचार को निराधार बताने वाला मैसेज भेजा था। कहा कि जिलाधिकारी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना हमारा मकसद नहीं, अखबार का उद्देश्य लापरवाह कर्मचारियों की खामियों को शासन-प्रशासन तक पहुंचाना है।
दूसरी तरफ विपक्षी पार्टियां भी इस खबर को लेकर सरकार को घेरने का प्रयास करने लगीं हैं। समाजवादी पार्टी ने अपने ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया, ‘बनारस में मुसहरों की बस्ती में लोग घास खाने को मजबूर! सैनिटाइजर और मास्क दूर की बात, हाथ धोने के लिए साबुन तक नही। सरकार से अपील तत्काल खाद्य पदार्थों के साथ अन्य जरूरी सामान मुसहर बस्तियों तक उपलब्ध कराया जाए।
बनारस में मुसहरों की बस्ती में लोग घास खाने को मजबूर! सैनिटाइजर और मास्क दूर की बात, हाथ धोने के लिए साबुन तक नही। सरकार से अपील तत्काल खाद्य पदार्थों के साथ अन्य जरूरी सामान मुसहर बस्तियों तक उपलब्ध कराया जाए। pic.twitter.com/NPMT2clzsC
— Samajwadi Party (@samajwadiparty) March 26, 2020
वहीं, पूर्व विधायक और कांग्रेस नेता अजय राय ने जिलाधिकारी को गुरुवार को ही एक पत्र लिखा जिसमें यह बात दोहरायी कि कोइरीपुर के बच्चे असहाय स्थिति में अंकरी घास खाते दिखे। इसके बावजूद प्रशासन के नोटिस में अंकरी की घास को ‘दाल’ लिखा गया है।
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