होम / विचार मंच / अरुण जेटली का सक्सेस फंडा था- Well Heard Is Half Solved
अरुण जेटली का सक्सेस फंडा था- Well Heard is Half Solved
सन् 2020 के चुनाव में भाजपा अगर फिर से दिल्ली जीत जाती है तो अरुण जी के लिए यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी
समाचार4मीडिया ब्यूरो 5 years ago
के.एम.शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार
सन् 1996 - 97 की बात है जब दिल्ली भाजपा में गुटबाजी चरम पर थी और साहिब सिंह वर्मा और मदन लाल खुराना के बीच का झगड़ा पार्टी नहीं सुलझा पा रही थी । मागेराम गर्ग पार्टी अध्यक्ष थे, प्रो. वी.के मल्होत्रा भी प्रदेश में जारी सिर फुटव्वल से परेशान थे फिर बारी अरुण जेटली की आई, उन्होंने दोनो नेताओं से बात की और झगड़ा शीत युद्ध में तब्दील हो गया। मुझे याद है कि तब जेटली जी इस समझौते का ब्यौरा देते हुए पंजाब केसरी के तत्कालीन ब्यूरो प्रमुख उमेश लखनपाल को कहा था कि आप किसी की समस्या अच्छी तरह सिर्फ सुन लेते हैं तो आधी समस्या समाप्त हो जाती है।
लेकिन भाजपा उसके बाद कभी दिल्ली नहीं जीत पाई, पार्टी ने डा. हर्ष वर्धन पर दांव लगाया, वो ‘मैन आफ द मैच’ जरूर बने’ उनके नेतृत्व में 2014 के विधानसभा चुनाव में पार्टी 32 सीट जीत कर भी आई लेकिन सरकार नहीं बना पाई और डा. हर्ष वर्धन केंद्र में स्वास्थय मंत्री बन गए।
कहते हैं दिल्ली की राजनीति में जेटली जी का काफी दखल था, उनके कहने के बाद ही नेतृत्व ने 2014 में दिल्ली में सरकार नहीं बनाने का फैसला किया था, 2015 के चुनाव में किरण बेदी को मुख्यमंत्री का चेहरा भी जेटली जी के कहने पर ही बनाया गया था लेकिन पार्टी 32 से 03 पर सिमट कर रह गई।
हार की समीक्षा बैठक हुई जेटली जी परिणाम से खुश नहीं थे, गुटबाजी फिर भी चरम पर थी, वैसे पार्टी में गुटबाजी अब भी चरम पर है, एक दिन जेटली जी से उनके सरकारी निवास पर मिला और उनसे मैने पूछा सर दिल्ली की समस्या का क्या हुआ उन्होंने हंसते हुए कहा कि मैंने सभी लोगों की बाते सुन ली है और समस्या का काफी हद तक समाधान भी हो गया है, जेटली जी ने कहा कि एक कहावत है कि Well Heard is Half Solved.... बाकी निर्णय समय आने पर पार्टी करेगी ।
मैने यह बात इसलिए कही क्योंकि जेटली जी अब इस दुनिया में नहीं हैं, वो चाहते थे कि जिस दिल्ली ने उन्हें इतना दिया वहां उनकी पार्टी की सरकार बने, सन् 1998 के बाद से अब तक दिल्ली में भाजपा की सरकार नहीं बनी ।
दिल्ली विधान सभा का चुनाव फिर से सिर पर हैं दिल्ली के दो धुरंधर सुषमा और जेटली दोनों इस दुनिया में नहीं हैं पहले पंक्ति के अग्रणी नेताओं में से एक डा. हर्ष वर्धन ही एक ऐसे नेता बचे हैं जिन्होंने सुषमा, जेटली, साहिब सिंह और खुराना के साथ काम किया है।
अब बारी दिल्ली के नेताओं की हैं कि वो आपसी मतभेद और महात्वाकाक्षा को भूलाकर कार्यकताओं की बात सुने, पूरी नहीं तो आधी ही सही ( Well Heard is Half Solved ) और दिल्ली में भाजपा को जितवाने के लिए अभी से काम करे ।
सन् 2020 के चुनाव में भाजपा अगर फिर से दिल्ली जीत जाती है तो अरुण जी के लिए यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।
टैग्स अरुण जेटली कृष्ण मोहन शर्मा श्रद्धांजलि