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'मेरी अर्जी पर ‘बाऊजी’ ने जो लिखा, वह आज के मंत्रियों के लिए भी आदर्श है'
‘अरे भाई इनके लिए चाट लेकर आओ।‘ पिछली बार जब मैं लखनऊ गया तो उनके पुराने घर में बाऊजी ने ये कहकर अपने और मेरे लिए चाट मंगवाई थी।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 4 years ago
‘अरे भाई इनके लिए चाट लेकर आओ।‘ पिछली बार जब मैं लखनऊ गया तो उनके पुराने घर में बाऊजी ने ये कहकर अपने और मेरे लिए चाट मंगवाई थी। राजनीतिक किस्सों के पुलिंदों के साथ लखनऊ की चाट की विशेषताओं पर भी खूब बात हुई थी। बाऊजी के साथ मेरा नजदीकी संपर्क उनके बेटे और हमारे मित्र 'गोपालजी' टंडन के कारण हुआ।
आशुतोष टंडन यानी गोपाल जी भी अपने पिताजी की तरह अजातशत्रु और हरदिल अजीज हैं। ये वाकया बाऊजी के राज्यपाल और गोपाल जी के मंत्री बनने से पहले का है। उस दिन जब लखनऊ गया था तो गोपाल जी के साथ बाऊजी से भी मिलने गया था। जितनी स्वादिष्ट वो चाट थी, उससे कहीं सहज और आत्मीय बाऊजी का व्यवहार था ।
उन्हें याद भी नहीं था कि कभी उन्होंने मेरी मदद की थी। बाऊजी को उनकी दरियादिली और प्रशासनिक पकड़ का वो किस्सा भी मैंने उस दिन सुनाया था। हुआ यों था कि कोई पच्चीस साल पहले मुझे कौशाम्बी, गाजियाबाद में एक फ्लैट अथॉरिटी द्वारा अलॉट किया गया था। कहीं से कर्जा लेकर किसी तरह पैसे दिए गए तो अफसर उसका कब्जा ही नहीं दे रहे थे। लालजी टंडन उन दिनों उत्तर प्रदेश सरकार में पीडब्ल्यूडी विभाग के मंत्री थे।
लखनऊ के अपने पत्रकार मित्र दीपक गिडवानी की मार्फत मैंने अपनी व्यथा एक अर्जी में लिखकर लालजी टंडन को भेजी थी। जो उस अर्जी पर बाऊजी ने अपनी राइटिंग में लिखा, वह आज के मंत्रियों के लिए भी आदर्श है। उन्होंने लिखा था 'फ्लैट ठीक करवाकर इन्हें तुरंत कब्जा दिया जाए और इस काम में जो देरी हो उसका हर्जाना सम्बंधित अधिकारी की तनख्वाह से वसूला जाए'। एक ये आदेश ही बाऊजी की प्रशासनिक क्षमता और संवेदनशीलता का वर्णन करने के लिए पर्याप्त है।
उस दिन जब उन्हें ये बात मैंने बताई थी तो उन्होंने मुस्कुराकर सिर्फ यही कहा था-'काम हो गया था कि नहीं?' और उसके बाद चाट का एक दौना मेरे लिए और मंगवाया गया था। पत्रकारिता के अपने तीस साल के जीवन में बाऊजी जैसा दरियादिल, संवेदनशील, आत्मीय, सहज और निश्छल भाव रखने वाला राजनेता मुझे तो कम से कम नहीं मिला। उनके जाने पर उनके परिवार के साथ साथ अनेक लोगों की आंख में आंसू हैं। कोरोना के कारण बाऊजी की अंतिम यात्रा में शामिल न होने के अफसोस के कारण इन आंसुंओं का बोझ और बढ़ गया है। श्रद्धांजलि बाऊजी !
(वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय की फेसबुक वॉल से साभार)
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