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हिंदी के विकास पर वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव की खरी-खरी

अकेली हिंदी ही नहीं, सारी भारतीय भाषाओं में क्रमिक क्षरण की यह प्रक्रिया चल रही है लेकिन शायद हिंदी जैसी उदासीनता नहीं है

समाचार4मीडिया ब्यूरो 5 years ago

राहुल देव, वरिष्ठ पत्रकार।।

अपवादों को छोड़कर मेरी हिंदी के अधिकतर साहित्यकारों, लेखकों, कवियों, पत्रकारों, अधिकारियों आदि से शिकायत है कि अपनी-अपनी रचनाओं में, अपने रचना संसार में, रचना प्रक्रिया में, पारस्परिक प्रशंसा और हिंदी के खोखले यशगान की रस्मी संगोष्ठियों में, नौकरियों में व्यस्त और निमग्न रहते हुए उनको इतने दशकों में यह नहीं दिखा है कि जिस हिंदी में रचकर वे यश, धन, पद, पुरस्कार आदि पा रहे हैं वह धीरे-धीरे कमजोर हो रही है। अपनी केंद्रीयता, शक्ति, प्रतिष्ठा और प्रभाव खो रही है। क्रमिक विनाश की ओर बढ़ रही है। अकेली हिंदी ही नहीं, सारी भारतीय भाषाओं में क्रमिक क्षरण की यह प्रक्रिया चल रही है, लेकिन शायद हिंदी जैसी उदासीनता नहीं है। हो भी तो उससे हिंदी का भला नहीं होता।

फिल्मों, टीवी और कुछ विदेशी कंपनियों द्वारा अपने विज्ञापनों और सेवाओं में हिंदी सहित भारतीय भाषाओं को शामिल कर लिए जाने में कई लोग हिंदी का विस्तार देख रहे हैं। दरअसल, देखने की बात यह नहीं है कि कितने लोग हिंदी समझ पा रहे हैं, बल्कि यह है कि अपनी इच्छा से जीवन के गंभीर कामों में हिंदी/भाषाएं पढ़ने और लिखने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है या घट रही है।

भाषा माध्यम विद्यालयों में प्रवेश घट रहे हैं या बढ़ रहे हैं? ये आंकड़े देखिए तो समझ जाएंगे कि भाषाओं का भविष्य वयस्कों की वर्तमान पीढ़ी से ज्यादा आने वाली पीढ़ियों यानी हमारे बच्चों और उनके बच्चों के भाषा व्यवहार, भाषा प्रेम और भाषा परिचय पर निर्भर करता है। इसे ध्यान से देखें तो भविष्य दिखने लगेगा। इसके अपवाद हैं और शायद गिनाए जा सकते हैं। लेकिन बड़ी तस्वीर यही है। इस आत्ममुग्धता तथा शुतुर्मुर्गी प्रवृत्ति ने हमारा भयंकर नुकसान किया है।‘

(यह लेखक के निजी विचार हैंं।)


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