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मिस्टर मीडिया: मत भूलिए कि अदालती कार्रवाई के लिए पर्याप्त है इस तरह की कवरेज
वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल ने उठाया बड़ा सवाल, हम वह व्यवहार किसी के साथ क्यों कर रहे हैं, जो हमें अपने लिए स्वीकार नहीं
राजेश बादल 5 years ago
राजेश बादल, वरिष्ठ पत्रकार।।
इंसान को जानवरों से इसलिए अलग कहा जा सकता है, क्योंकि उसके पास खुद को अभिव्यक्त करने की कला है। भाषा है, बोली है, कलम है। इनके अलावा और भी अनेक प्रतीक हैं। इस अभिव्यक्ति का मूल आधार विवेक और विचार हैं, लेकिन हाल के दिनों में जिन बड़ी घटनाओं की कवरेज देखने को मिली है, वह हमारे विचार, विवेक और अभिव्यक्ति की क्षमता पर सवाल खड़े करती है।
बात और स्पष्ट करता हूं। पूर्व मंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता पी चिदंबरम को 21 अगस्त को गिरफ्तार किया गया। उसके पहले और बाद में टीवी व सोशल मीडिया पर कवरेज और उसकी भाषा देख लीजिए। क्या इसमें मीडिया के इन अवतारों ने बुनियादी शिष्टाचार और पत्रकारिता के सिद्धांतों को तार-तार नहीं कर दिया?
भूल जाइए कि गिरफ्तार व्यक्ति कांग्रेस, बीजेपी या किसी अन्य राजनीतिक दल का नेता है। भूल जाइए कि वह देश का गृहमंत्री या वित्त मंत्री रहा है। भूल जाइए कि उस पर गंभीर आरोप हैं। सिर्फ यह याद रखिए कि उस व्यक्ति को भी भारतीय संविधान के तहत मौलिक अधिकार प्राप्त हैं और उस पर आरोप साबित नहीं हुए हैं। जिस व्यक्ति पर अपराध सिद्ध नहीं हुए हैं, उसे मीडिया में अपराधी कहना या अपराधियों के लिए इस्तेमाल करने वाली भाषा का प्रयोग करना भी अपराध है। यहां तक कि मुजरिम सिद्ध हो चुके किसी व्यक्ति के खिलाफ़ भी इस तरह कवरेज नहीं कर सकते। साफ तौर पर मानहानि का सिद्ध अपराध मीडिया कर रहा है। यह अधिकार हमें किसने दिया है?
कल्पना कीजिए कि उस व्यक्ति के स्थान पर आप खुद हैं अथवा आपका बेटा,पत्नी, पिता,माता या भाई-बहन हैं तो अपने या उनके खिलाफ इस तरह का प्रचार, उसकी भाषा और उसका अंदाज कितना पसंद करेंगे। शायद रत्ती भर भी न करें। तो हम वह व्यवहार किसी के साथ क्यों कर रहे हैं, जो हमें अपने लिए स्वीकार नहीं। मत भूलिए कि बीते दिनों की कवरेज हम मीडियाकर्मियों के खिलाफ अदालती कार्रवाई के लिए पर्याप्त है।
कवरेज का यह तरीका पत्रकारिता खासकर टेलिविजन के मानक सिद्धांतों का उल्लघंन है। इस बेशर्म कवरेज से इस पेशे में आने वाली नस्लों को हम क्या सबक देना चाहते हैं? यह कि उनकी पुरानी पीढ़ी कितनी गैर जिम्मेदार और अपने सरोकारों से कितनी भटकी हुई थी। इस तरह की रिपोर्टिंग के लिए तो कोई दबाव नहीं होता। उत्साह या आवेग में आकर हम अपने काम का चरित्र ही बदल दें, यह ठीक नहीं है। पत्रकारिता की स्वतंत्रता और स्वच्छंदता में फर्क करना सीखिए मिस्टर मीडिया!
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