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मिस्टर मीडिया: हारने की खीज है या मीडिया से रंजिश निकालने का बहाना
चुनावी डिबेट थी। सेना की छवि के दुरुपयोग पर चर्चा थी। दो पार्टी प्रवक्ता लड़ बैठे
राजेश बादल 5 years ago
राजेश बादल
वरिष्ठ पत्रकार।।
आदमी समझा है वो बनकर खुदा रह जाएगा/और ख़ुदा क्या ये तमाशा देखता रह जाएगा?
चुनावी डिबेट थी। सेना की छवि के दुरुपयोग पर चर्चा थी। दो पार्टी प्रवक्ता लड़ बैठे। बीजेपी के प्रवक्ता देशभक्ति का ठेका ले बैठे। चिल्ला-चिल्लाकर दूसरे को ग़द्दार बोलते रहे। नौबत यहां तक आ पहुंची कि एक प्रवक्ता ने पानी से भरा गिलास दूसरे पर दे मारा। बीच में एंकर संदीप चौधरी निशाना बन गए। उनके कपड़े भीग गए। उन्होंने ब्रेक लिया, प्रवक्ताओं को दरवाज़ा दिखाया, कपड़े बदले और शो शुरू कर दिया। संदीप ने इस दौरान ग़ज़ब का संयम दिखाया और शो संभाल लिया, लेकिन देश के लाखों दर्शकों ने ज़बान और एक्शन की यह जंग देखी। सार्वजनिक माध्यम पर ग़द्दार कहना मानहानि का आपराधिक मामला बनता है। जेल तक हो सकती है। इसी तरह दूसरे प्रवक्ता का आचरण अशोभनीय था। कह सकते हैं कि ये पार्टियां कुकुरमुत्तों की तरह प्रवक्ता पैदा करती हैं और उन्हें शब्दों का संयम बरतने की ट्रेनिंग भी नहीं देतीं। ये प्रवक्ता उन्हीं पार्टियों की देह पर एक्सपायर्ड दवा की तरह रिएक्ट कर जाते हैं।
पिछले दिनों चेन्नई में ‘द हिन्दू’ के पत्रकारों को अभिव्यक्ति के लिए सड़क पर आना पड़ा। इसके बाद दो चैनलों के प्रति प्रधानमंत्री का रवैया जगजाहिर है। हाल ही में उत्तर प्रदेश में एक चैनल के संवाददाता ने बीजेपी के कार्यालय में प्रदेश अध्यक्ष की पत्रकार वार्ता के दौरान सवाल पूछे। मीडिया प्रभारी को पसंद नहीं आए। उन्होंने सार्वजनिक रूप से उस संवाददाता को धमकाया। पत्रकारों को इस कार्रवाई के ख़िलाफ़ एकजुट होना पड़ा। उत्तर प्रदेश में ही बीजेपी के एक कद्दावर प्रत्याशी ने एक पत्रकार के ख़िलाफ़ अख़बार के संपादक से शिक़ायत कर दी। पत्रकार को हटा दिया गया। गुजरात के वडोदरा में बीजेपी के एक एमएलए ने रिपोर्टरों को खुलेआम ठीक करने की धमकी दी। उस दौरान कैमरा भी सब कुछ रिकॉर्ड कर रहा था। चंद रोज़ पहले अहमदाबाद में ‘टीवी9’ के रिपोर्टर चिराग पटेल को ज़िंदा जला दिया गया। पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। अब गुजरात भर के पत्रकारों ने एक संघर्ष समिति बनाई है। मुख्यमंत्री ख़ामोश हैं।
ये तो कुछ बानगी हैं। साबित करती हैं कि सत्ता का नशा किस तरह राजनेताओं पर सवार होता है। पत्रकार बिरादरी के पास प्रतिक्रिया के तौर पर कोई एक्शन का अधिकार नहीं है, लेकिन जब अवसर आता है तो यह एक ऐसा तीर है जो उलटकर वार करता है। सियासत और सत्ता के नियंताओं को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए। आपातकाल के बाद जब चुनाव हुए थे तो तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल पत्रकारों से ग़ुलामों जैसा बर्ताव करते थे। बाद में इसी मीडिया ने अपने तीर का इस्तेमाल किया तो बिलबिला गए थे। सार्वजनिक तौर पर माफी मांगी थी। आज जो राजनीतिक दल हुकूमत कर रहा है, कल वह हार भी सकता है। आने वाले दिन और वक़्त से डरना चाहिए। वक़्त से बड़ा जज कोई नहीं होता। जिस दिन समय करवट बदलेगा, सत्तावीरों के होश फाख़्ता हो जाएंगे। इस बात को चेतावनी समझकर लीजिए मिस्टर लीडर!
ताला लगा के आप हमारी ज़बान को/ क़ैदी न रख सकेंगे ज़ेहन की उड़ान को/
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