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मिस्टर मीडिया: प्रेस काउंसिल को क्या हो गया है? क्या दायरे से बाहर गए मुखिया?
प्रेस काउंसिल उन माध्यमों पर बंदिश लगाए जाने की वकालत कैसे कर सकती है, जो उसके कार्यक्षेत्र से बाहर हैं
राजेश बादल 5 years ago
राजेश बादल, वरिष्ठ पत्रकार।।
प्रेस काउंसिल को क्या हो गया है? इस देश का मीडिया राष्ट्रद्रोही नहीं है। प्रेस काउंसिल को भय क्या था? अगर मीडिया पर बंदिशें नहीं भी होतीं तो क्या वह ऐसी कवरेज करता, जिससे पाकिस्तान को फायदा होता। ऐसा तो पंजाब में भी नहीं हुआ था, जब वह आतंकवाद का बेहद खतरनाक रूप देख रहा था। उस समय भी सख्ती से ही समस्या से निपटा गया था। क्या मीडिया ने उन दिनों में परिपक्व नजरिये और संयम का परिचय नहीं दिया था?
हम पत्रकार लोग अपने प्रोफेशनल करियर में इतने समझदार तो होते हैं कि क्या दिखाना या प्रकाशित/प्रसारित करना चाहिए और क्या नहीं। अनेक सच हमारी जानकारी में होते हैं, लेकिन हर सच नहीं दिखाया जा सकता। यह हम जानते हैं। अंततः राष्ट्रीय हित सर्वोच्च होते हैं। एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हम इन हितों की रक्षा करते हैं। भले ही मुल्क के सियासतदान गैर जिम्मेदार हो जाएं और दलगत राजनीति के चलते अपनी भूमिका से समझौता कर लें।
भारत के पत्रकारों को प्रसन्नता होती, यदि प्रेस काउंसिल कश्मीर में पाबंदियां हटाने के समर्थन में सामने आती। उसका बुनियादी मकसद ही यही है कि एक पत्रकार और पाठक के हितों की रक्षा की जानी चाहिए। इस अर्ध न्यायिक संगठन की संकल्पना का आधार था कि जहां भी पत्रकारों को अपने दायित्व निभाने में परेशानी हो और कोई समाचारपत्र अपने माध्यम का दुरुपयोग करे तो ऐसे मामलों पर प्राथमिकता से संज्ञान ले। इस मामले में तो इस संगठन ने उलट बरताव किया है। क्या वह इसके पक्ष में है कि जो भारत का अभिन्न राज्य है, उस पूरे राज्य की खबरें देश और दुनिया को पता ही न चलें।
इसका एक आशय यह भी निकलता है कि राज्य सरकार वहां कुछ ऐसा कर रही है,जो प्रचार माध्यमों में आएगा तो उसकी छवि धूमिल होगी। यानी वह कोई ऐसा काम कर रही है, जो उसे नहीं करना चाहिए। वरना यह तो एक-एक पत्रकार जानता है कि अनुच्छेद 370 हटाने के बाद से पाकिस्तान वहां अपने समर्थकों के माध्यम से क्या करेगा। उसके प्रोपेगंडा को उजागर करने के लिए तो राज्य सरकार को सारे संसार के पत्रकारों के लिए कश्मीर घाटी खोल देनी चाहिए। बड़बोले राज्यपाल क्या कभी मीडिया के नजरिये से इस मनोविज्ञान को समझेंगे?
हिन्दुस्तान के पत्रकार दशकों से यह मांग कर रहे हैं कि प्रेस काउंसिल के दायरे में समग्र मीडिया को लाया जाए। यानी टेलिविजन, रेडियो, डिज़िटल और सोशल मीडिया के मामले भी इसके तहत आएं अथवा मीडिया काउंसिल की तर्ज पर नई संस्था गठित की जाए। प्रेस काउंसिल ने कश्मीर के मामले में अपने दायरे से बाहर जाने का काम किया है। वह उन माध्यमों पर बंदिश लगाए जाने की वकालत कैसे कर सकती है, जो उसके कार्यक्षेत्र से बाहर है। शायद इसीलिए उसके मुखिया जी ने इस पंचायत की बैठक बुलाने की जरूरत तक नहीं समझी। फिर इसके सदस्य क्या शोभा के आभूषण हैं? जाहिर है यह कदम आवेग में बिना बिचारे उठाया गया कदम है। इसके लिए काउंसिल के मुखिया को माफी मांगनी चाहिए। हां, अगर उन पर कोई अलौकिक दबाव हो तो अलग बात है। सच्चाई जो भी हो, इस बार चुप न बैठिए मिस्टर मीडिया!
(यह लेखक के निजी विचार हैं)
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