होम / विचार मंच / इन ‘अवतारों’ का दर्शक भी अब ठगा जा रहा है, इसे समझना होगा मिस्टर मीडिया!
इन ‘अवतारों’ का दर्शक भी अब ठगा जा रहा है, इसे समझना होगा मिस्टर मीडिया!
कई साल से टेलिविजन चैनलों की खबरों और बहसों के विषय तथा उनमें गुणवत्ता की कमी पर हम लोग विलाप कर रहे हैं। फिलहाल तो इस विलाप का कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आया है।
राजेश बादल 2 years ago
राजेश बादल, वरिष्ठ पत्रकार।।
कई साल से टेलिविजन चैनलों की खबरों और बहसों के विषय तथा उनमें गुणवत्ता की कमी पर हम लोग विलाप कर रहे हैं। फिलहाल तो इस विलाप का कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आया है। पर, इसी बीच टीवी और समाचारपत्रों के प्रायोजित कंटेंट से अघाए लोग डिजिटल और सोशल मीडिया के नए अवतारों पर जाने लगे।
नतीजा यह कि अब चैनल-चर्चाओं का विकल्प न्यूज पोर्टल्स की बहसें और उनके समाचार बन चुके हैं। इन पोर्टल्स तथा यूट्यूब जैसे मंचों पर इस सामग्री को देखने वालों की तादाद दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। माना जाता है कि टीवी चैनलों से नाता तोड़ चुके करीब आधे दर्शकों ने नए मंच खोज लिए हैं। अब वे उतने ही भरोसे से उनकी बहसें देखते हैं, जिस भरोसे से करीब दो दशक पहले खबरिया टीवी चैनल देखते थे या अखबार पढ़ते थे।
वैसे टेलिविजन चैनल अपनी दुर्दशा के लिए खुद ही जिम्मेदार हैं। देखने वालों की तादाद घटने का ठीकरा उनके सिर ही फोड़ा जाना चाहिए। जिस तरह आज तमाम चैनल सत्ता विरोधी या सत्ता समर्थक खेमों में बंट गए हैं, उससे उनका ही कबाड़ा हुआ है। प्रकाशित समाचारपत्र में तो एक बार सियासी झुकाव छिप जाता है, मगर परदे पर सच को झूठ साबित करने या सत्ताधारी दल का अंधानुकरण करने के प्रयास नहीं छिप सकते।
समाचार पत्र पढ़ने के लिए पाठक का साक्षर होना जरूरी है, लेकिन परदे पर सियासी चर्चा सुनकर अनपढ़ या अपेक्षाकृत कम जागरूक दर्शक भी यह टिप्पणी करने लगा है कि यह चैनल अमुक पार्टी का समर्थक है अथवा अमुक चैनल इस पार्टी का विरोधी है। स्टूडियो में बैठे एंकर या चर्चा में शामिल मेहमानों को इसका पता भी नहीं चलता कि कब वह दर्शक रिमोट नामक घातक हथियार उन पर चला देता है।
लेकिन मैं सोशल, डिजिटल और इंटरनेट के जरिये प्राप्त होने वाले दृश्य चैनलों की बात कर रहा हूं। जब टेलिविजन चैनलों का यह कुरूप चेहरा दर्शकों के सामने उजाग़र हो गया तो वे वैचारिक भूख शांत करने के लिए वैकल्पिक प्लेटफॉर्म तलाशने लगे। चैनलों की इस चुभने वाली शैली से परेशान पेशेवर पत्रकारों ने भी अपने-अपने मंच तलाश लिए। चूंकि इन अवतारों पर अपेक्षाकृत कम पैसा लगता है, इसलिए छोटी कंपनियां भी मैदान में कूद पड़ीं। वे निष्पक्षता बनाए रखना चाहती थीं। सो प्रारंभ में तो कंटेंट की गुणवत्ता पर ध्यान दिया गया। इसका लाभ भी उन्हें मिला।
पर, जब वे पर्याप्त लोकप्रिय हो गईं, तो बाजार, दर्शक संख्या तथा उन प्लेटफॉर्म से होने वाली कमाई के दबाव में आ गईं। अब ये वैकल्पिक अवतार देखते हैं कि जब वे ‘ए‘ विषय पर चर्चा करें तो भरपूर दर्शक मिलते हैं, लेकिन जब वे ‘बी‘ विषय पर चर्चा करते हैं तो कोई नोटिस ही नहीं लेता। इसलिए वे अब उन विषयों को पहले चुनने लगे हैं, जिनमें अधिक लोग जुड़ते हैं। ऐसे में पत्रकारिता के सिद्धांत और सरोकार हाशिए पर चले गए।
इन दिनों मैं भी छोटे परदे के कुछ इंटरनेट अवतारों पर खबरिया बहसों में हिस्सा लेता हूं। मैं पाता हूं कि अब उनके पास भी अच्छे विषयों का अकाल है। वे अखबारों के शीर्षकों या चैनलों की खबरों से ही अपने विषयों का चुनाव करते हैं। कह सकता हूं कि विकल्प बनने को आतुर ये माध्यम भी अब बोर करने की हद तक विषयों का चुनाव करते हैं। खास तौर पर हिंदी वाले मंचों पर। वे टीवी चैनलों या अखबारों से पूर्वाग्रही दुर्गन्ध फैलाती खबरें चर्चा के लिए उठाते हैं।
चैनलों की कार्यशैली भी अब इन अवतारों पर भी हावी हो गई है। इसी कारण उनकी बहसों में शामिल होने वाले मेहमान टीवी चैनलों की तर्ज पर चुने जाते हैं। मसलन, कोई मेहमान कांग्रेस समर्थक है तो कोई बीजेपी समर्थक। अपनी चर्चा को निष्पक्ष या संतुलित दिखाने के लिए वे ऐसे अलग-अलग वैचारिक आधार वाले पत्रकारों या जानकारों का चुनाव करते हैं। कुछ ऐसे एंकर भी हैं, जो चर्चा में सारे गेस्ट या तो पक्ष समर्थक लेते हैं या फिर विपक्ष समर्थक। ऐसे में मुद्दे के सारे पहलुओं पर बारीक विश्लेषण नहीं हो पाता। लब्बोलुआब यह कि इन अवतारों का दर्शक भी अब ठगा जा रहा है। इसे समझना होगा मिस्टर मीडिया!
(यह लेखक के निजी विचार हैं)
वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल की 'मिस्टर मीडिया' सीरीज के अन्य कॉलम्स आप नीचे दी गई हेडलाइन्स पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं-
मिस्टर मीडिया: सच्चे पत्रकारों का क्या वाकई इतना अकाल है?
राजेश बादल ने उठाया सवाल, यह हमारी टीवी पत्रकारिता का कौन सा चेहरा है मिस्टर मीडिया!
यदि ऐसा हुआ तो चैनलों के लिए प्रत्येक देश में जाकर बचाव करना कठिन हो जाएगा मिस्टर मीडिया!
पत्रकारिता ही नहीं, हमारे समूचे सामाजिक ढांचे के लिए यह गंभीर चेतावनी है मिस्टर मीडिया!
टैग्स राजेश बादल मिस्टर मीडिया मीडिया कवरेज