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पूरन डावर ने उठाया बड़ा सवाल, तो आगे युद्ध कैसे लड़ेंगे?

15 जून को ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ (Line of Actual Control) पर भारत-चीन भिड़ंत से जहां एक ओर जनता में राष्ट्रीयता का जोश है, वहीं देश की राजनीति उबाल पर है।

पूरन डावर 4 years ago

पूरन डावर, चिंतक एवं विश्लेषक।।

15 जून को ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ (Line of Actual Control) पर भारत-चीन भिड़ंत से जहां एक ओर जनता में राष्ट्रीयता का जोश है, वहीं देश की राजनीति उबाल पर है। भारत में विपक्ष की राजनीति (चाहे वो कांग्रेस हो अथवा भाजपा) कभी परिपक्व नहीं रही। सीमा के मुद्दे संवेदनशील होते हैं। कई बार बड़े दुश्मन की ज्यादतियों को सहन भी करना पड़ सकता है। पैनिक से काम नहीं चलता। सीमा पर विवाद होगा, विरोध करना ही होगा तो जानें भी जाएंगी।

20 जवानों के मारे जाने पर इतना विलाप करेंगे तो आगे युद्ध कैसे लड़ेंगे। युद्ध होगा तो हजारों की संख्या में भी मारे जा सकते हैं। मजबूत दुश्मन है। परमाणु संपन्न है तो लाखों में भी। पैनिक नहीं, जोश भी और होश भी रखना होगा। न पूर्ण युद्ध और न पूर्ण बहिष्कार, कुछ भी आसान नहीं। धीरे-धीरे कमर तोड़नी होगी। चीन अपनी मौत मरने वाला है। भस्मासुर को समाप्त होना ही है।

भारत की सबसे बड़ी समस्या जनता के ऊल जुलूल सवाल जवाब की ही है। भाजपा ने भी विपक्ष में यही किया है, वही भुगतना भी पड़ रहा है। लेकिन कांग्रेस ने लंबा राज किया है, परिस्थितियों से वाकिफ है। विशुद्ध राजनीति में बची-खुची भूमि भी कांग्रेस खो देगी।

युद्ध नीतियों कतई गुप्त होती हैं। कभी घुसकर मारते हैं, लेकिन कह नहीं सकते। कभी अंदर आकर वो पीट जाते हैं तो जनता के सवाल उठते हैं। जनता का खून खौलना, पैनिक दबाव या दबाव में लिए गए निर्णय सदैव घातक होते हैं। दोनों देशों की सामरिक दृष्टि से तुलना... कहां हम मजबूत हैं और कहां कमजोर, इसकी चर्चा कम से कम सरकार तो नहीं कर सकती।

जहां तक बात आज की स्थिति की, मजबूत नेतृत्व है। सर्वदलीय बैठक में स्पष्ट कहा है कि न चीन घुसा है और न चीन के पास हमारी कोई चौकी है। 20 की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी। चीन सड़क और गलवान घाटी पर पुल नहीं बनाने दे रहा था। घुसकर मारा है। 45 चीन के मरे हैं और 20 भारत के। 10 बंधन बनाए थे, वह भी छोड़े हैं। बंधकों में दो मेजर और दो कैप्टन रैंक के थे। 15 जून से 18 जून तक 72 घंटे में पुल पूरा किया है। 20 खोने के बाद रुके नहीं, झुके नहीं। हमारी शोक संवेदना अपने सैनिकों और परिवारों का संबल है, लेकिन विलाप नहीं। देश की स्वतंत्रता के लिए भी बलिदान दिए हैं। सीमाओं की रक्षा में भी बलिदान देते रहने होंगे। बलिदानों से डरे तो रक्षा नहीं हो सकती।

वैश्विक स्तर पर दबाव बनाना होगा। भारत की वास्तव में चीन से कोई सीमा नहीं लगती। चीन के तिब्बत पर अवैध राज को हटाने, तिब्बत की निर्वासित सरकार को वैश्विक मान्यता दिलाने के लिए एक बड़ी कूटनीति की आवश्यकता है। तिब्बत की स्वतंत्रता ही भारत का रक्षा कवच है।

(यह लेखक के निजी विचार हैं)


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