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LSTV का ये शो आपको आपके 'अस्तित्व' से कराता है रूबरू

लोक सभा टीवी पर आने वाले साप्ताहिक कार्यक्रम अस्तित्व-आपका, हमारा,सबका को पूरे हुए चार साल

समाचार4मीडिया ब्यूरो 5 years ago

अभिलाष खांडेकर, वरिष्ठ पत्रकार।।

पर्यावरण का महत्व अब वे लोग भी काफी अच्छी तरह समझ रहे होंगे, जो स्वयं पर्यावरणविद नहीं हैं। इस वर्ष जिस तरह की अत्यधिक गरमी की मार ने देश को झिंझोड़कर रख दिया, उसके चलते मैं मानता हूं कि जनमानस में अब जल-संरक्षण, प्रकृति की चिंता या पर्यावरण को शुद्ध रखने के महत्व को अलग से रेखांकित करने की जरूरत (शायद) नहीं होगी। किंतु डर यह भी है कि जैसे ही वर्षा का खुशनुमा मौसम शुरू हुआ, सूर्य देवता की 'नाराजी' दूर हुई तो हम लोग फिर पर्यावरण को लगातार हो रही हानि की तरफ बेरुखी से पीठ फेर लेंगे। चर्चाए थम जाएंगी, अगली गरमी तक!

मेरे दृष्टिकोण में मीडिया में इसके लिए गंभीर और लंबे समय तक चलने वाली मुहिम की परम-आवश्यकता है। वर्ष 2015 दुनिया में पर्यावरण की दृष्टि से एक बड़ा और महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ था। उसी वर्ष पेरिस में वैश्विक जलवायु परिवर्तन की संधि हुई और दुनिया के लगभग सभी देशों ने बढ़ते तापमान और उसके दुष्परिणामों पर गंभीर चिंतन किया था। भारत ने भी इसमें बड़ी भूमिका अदा की थी।

उसी वर्ष पर्यावरण पर एक साप्ताहिक कार्यक्रम प्रस्तुत करने का मुझे अवसर मिला, जो 'अस्तित्व-आपका, हमारा, सबका' नाम से काफी लोकप्रिय साबित हुआ। जून 2015 से लोक सभा टेलिविजन पर प्रसारित हिंदी के आधा घंटे के इस कार्यक्रम ने अब चार वर्ष पूरे कर लिए हैं, जिसके दौरान करीब 150-200 एपिसोड प्रसारित हुए और सराहे गए। स्पीकर सुमित्रा महाजन के पर्यावरण के निजी प्रेम और चिंता के कारण यह टीवी शो संभव हो सका।

एक एंकर के नाते मुझे इन चार वर्षों में यह अनुभव हुआ कि पर्यावरण के बारे में लोगों के मन में उत्सुकताएं तो खूब हैं, पर उन्हें क्या करना है, इसके बारे में अधिकतर लोग अनभिज्ञ हैं। पानी बचाने का मुद्दा ही लें तो जनमानस में यह भावना ही नहीं है कि पीने के शुद्ध पानी, जिसकी भयानक समस्या मुंह बाये खड़ी हैं, को हम कैसे बचा सकते हैं। क्या रोजाना हम एक गिलास पानी, जिसे अक्सर हम पीकर झूठा छोड़ देते हैं, बचाने की जहमत नहीं उठा सकते?

जल संरक्षण पर 'अस्तित्व' कार्यक्रमों में मैंने एक बाल्टी या एक गिलास पानी एक परिवार या व्यक्ति प्रतिदिन बचा सकता है, इस पर जोर दिया। उद्देश्य यही रहा कि घर-घर में पानी बचाने की मुहिम रोजाना होती रहे और वह कारगर साबित हो। हां, नदियां, तालाब, पोखर आदि के संरक्षण पर भी कई गंभीर कार्यक्रम भी मैंने किए।

मुझे 'अस्तित्व' पर्यावरण श्रृंखला की महत्ता उस समय अधिक पता चली, जब मैंने हर वर्ष वन्य जीव सप्ताह (2-8 अक्टूबर) के दौरान कई विशेषज्ञों से ऐसे जानवरों के बारे में मेरे शो पर बात की, जिनके जीवन, उन पर मंडराने वाले खतरे, लुप्तप्रायः प्रजातियों के संरक्षण के उपाय से जुड़ी जानकारी के बारे में दर्शकों को बहुत ही सीमित जानकारी थी। लेकिन शहरों से दूरदराज के गांवों तक काफी चाव से सारे एपिसोड देखे गए। लोग ईमेल या व्यक्तिगत रूप से सकारात्मक संदेश भेजते थे। वन्यजीव यानी सिर्फ बाघ या हाथी नहीं, वरन, गोड़ावन चिड़िया (Great Indian Bustard) या सरीसर्प या फिर रंग-बिरंगी छोटी तितलियां या शर्मिला पैंगलिन भी होता हैं, जिन्हें संरक्षण की तीव्र आवश्यकता है। इस मुद्दे को तमाम दर्शकों तक प्रभावी रूप से ले जाने में 'अस्तित्व' कामयाब रहा। पर्यावरण पत्रकारिता के हिसाब से यह एक मील का पत्थर साबित हुआ, ऐसा कहा जा सकता है।

दो केंद्रीय पर्यावरण मंत्रियों ने (प्रकाश जावड़ेकर एवं स्वर्गीय अनिल दवे) 'अस्तित्व' पर आकर न सिर्फ इस तरह की पर्यावरणीय श्रृंखला की आवश्यकता पर बल दिया, वरन सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं को दर्शकों के साथ साझा किया। दवे ने तो टेरी(पर्यावरण) विश्वविद्यालय में आयोजित अस्तित्व कार्यक्रम में मेरे द्वारा पूछे प्रश्नों के बजाय छात्रों के प्रश्नों की बौछार का सामना करना पसंद किया। 'अस्तित्व' जैसा पर्यावरणीय कार्यक्रम आदर्श स्थिति में घने वनों में, नदियों के किनारे या प्रदूषित शहरों के गंदे इलाक़ों में ही होना अपेक्षित था, किंतु अधिकतर एपिसोड लोक सभा टेलिविजन के स्टूडियो में ही हुए। कुछ सीमायें जो थीं, किंतु जो चुनिंदा कार्यक्रम नर्मदा नदी, हिंडन नदी, यमुना या पुणे की मूला-मुठा नदियों के किनारे या महाराष्ट्र या मध्य प्रदेश के जंगलों में चित्रित किए गए, उनका प्रभाव दर्शकों पर काफी लंबे समय तक रहा।

वैसे छोटे पर्दे पर सुनीता नारायण या प्रो. वार्ष्णेय जैसे जानेमाने पर्यावरणविद खबरों में अक्सर दिखते हैं, किंतु अलग-अलग विषयों के जानकार जैसे अक्षिमा घाटे (शहरी यातायात), बी.सी चौधरी (कछुआ), विवेक मेनन(हाथी), डॉक्टर सतीश पांडे(पक्षियों का स्थलांतरण),  अनमोल कुमार(वन प्रबंधन), मनु भटनागर (प्राकृतिक विरासत), जगन शाह (शहरीकरण), डॉक्टर विनोद तारे (निर्मल-अविरल गंगा) या फिर रवि सिंह, डॉक्टर रणजीतसिंह और राजेश गोपाल जैसे वरिष्ठ वन्यजीव विशेषज्ञों के विचार और सुझाव सुनना दर्शकों या पर्यावरण प्रेमियों के लिए आसान नहीं होता हैं। 'चिपको' आंदेलन के नेता सुंदरलाल बहुगुणा (90) और चण्डीप्रसाद भट्ट (85) के साक्षात्कार तो लोगों ने खूब सराहे, वैसे ही जैसे मशहूर अदाकारा दिया मिर्जा का हाथी संरक्षण संबंधी शो। दिया मिर्जा वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के साथ काम करती हैं।

'अस्तित्व' पर्यावरण श्रृंखला वह एक गुलदस्ता था, जिसने एक से बढ़कर एक विशेषज्ञों को एक जगह गूंथा था और पर्यावरण संरक्षण के विभिन्न राष्ट्रीय आंदोलनों को एक सार्थक संबल प्रदान किया। मुझे लगता है कि सैकड़ों निजी टेलिविजन चैनलों की चिल्ल-पौं के बीच एक सरकारी-टाइप चैनल 'लोक सभा टीवी' ने बहुत ही संयत, शांत और गंभीर तरीके से पर्यावरण की सेवा की है।

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