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जब नेहरू की इजाजत ले दैत्य से पूछा गया कश्मीर भारत का हिस्सा बनेगा या पाक का

मांडू के किले का जम्मू-कश्मीर की हालिया राजनीति से रिश्ता जुड़ा है और इसे कम ही लोग जानते हैं

समाचार4मीडिया ब्यूरो 4 years ago

उमेश चतुर्वेदी, वरिष्ठ पत्रकार।।

अनुच्छेद 370 के कुछ प्रावधानों को हटाने के बाद विशेष राज्य के दर्जे से वंचित होने के बाद जम्मू-कश्मीर इन दिनों पूरी दुनिया में चर्चा है। पाकिस्तान तो आए दिन इस मसले को लेकर हंगामा मचा रहा है। इसी जम्मू-कश्मीर का क्या रानी रूपमती और बाजबहादुर के प्यार के प्रतीक मांडू के किले से भी कोई संबंध हो सकता है? किसी के सामने यह सवाल आएगा तो सहसा वह इससे इनकार ही कर देगा। कहां कश्मीर की सुहानी वादियां और कहां इंदौर से करीब सौ किलोमीटर दूर मांडू, जो शरद ऋतु को छोड़ दें तो पूरे साल वीरानगी सा अहसास कराता है। ऐसे में दोनों का क्या रिश्ता हो सकता है?  संबंधों की बात छिड़ी है तो यह भी सवाल उठ सकता है कि क्या मांडू की रियासत से कश्मीर की रियासत के कोई तार जुड़े हुए थे।

ठहरिये, मांडू के किले का जम्मू-कश्मीर की हालिया राजनीति से रिश्ता जुड़ा है और इसे कम ही लोग जानते हैं। मांडू के बारे में यह बताना पुनरावृत्ति ही होगी कि यह रानी रूपमती और बाजबहादुर के प्यार का प्रतीक है। यही वजह है कि यह किला सैलानियों का आज भी पसंदीदा है। रानी रूपमती और बाजबहादुर के प्यार को महसूस करने के लिए यहां हर साल हजारों पर्यटक आते हैं। ऐसे ही सैलानी बनकर शायद 1950 या 1951 में यहां जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला आए थे। तब जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री को प्रधान ही कहा जाता था। सात अगस्त 2019 के पहले तक जम्मू-कश्मीर का अपना अलग संविधान और झंडा तक था। जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री को मुख्यमंत्री तब कहा जाने लगा, जब 1965 के विधानसभा चुनाव में गुलाम मोहम्मद सादिक की अगुआई में कांग्रेस ने जीत हासिल की। इसके बाद राज्य के प्रधानमंत्री को मुख्यमंत्री कहा जाने लगा था।

बहरहाल, प्रधानमंत्री रहते शेख अब्दुल्ला ने शायद 1950 या 1951 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और विजयलक्ष्मी पंडित के साथ मांडू का दौरा किया था और बतौर सैलानी वहां रात गुजारी थी। तब मध्य भारत के मुख्यमंत्री मिश्रीलाल गंगवाल के सूचना अधिकारी के तौर पर देवीलाल बापना तैनात थे। बापना ने अपने संस्मरणों को कलमबद्ध किया है। यादों के झरोखे से: कुछ ऐतिहासिक संस्मरण नाम से प्रकाशित पुस्तिकानुमा किताब में पंडित नेहरू, विजयलक्ष्मी पंडित और शेख अब्दुल्ला का मांडू दौरा भी शामिल है। बापना ने अपनी किताब में उस दौरे की तारीख को दर्ज नहीं किया है, इसलिए इस दौरे की ठीक-ठीक तारीख पता नहीं है।

बापना ने लिखा है कि इस दौरे के वक्त मिश्रीलाल गंगवाल भी तीनों नेताओं के साथ थे। बापना के मुताबिक ऐसे महत्वपूर्ण दौरों के वक्त किले के मुख्य गाइड पंडित शर्मा सफेद झोगा और पगड़ी पहनकर तैयार रहते थे। बापना के मुताबिक, पंडित शर्मा अपनी झूठी-सच्ची कहानियां बताकर आगंतुकों का मन मोह लेते थे। (जैसे) किस तरह बेगमें अब भी रात्रि को आकर जहाज महल में नाचती हैं, नहाती हैं आदि-आदि। बापना उस दौरे के बारे में लिखते हैं, ‘इसी तरह सब उनकी रोचक कहानियां-किस्से सुनाते रूपमती पवैलियन पहुंचे। वहां शर्मा जी ने रूपमती और बाजबहादुर के प्रेम के अनेक किस्से सुनाए। यह पवैलियन मांडू का सबसे ऊंचा स्थान है, जहां से घाटी का रोचक नजारा दिखाई देता है।‘

बापना के मुताबिक, पंडित शर्मा सबको इको पॉइंट पर ले गए। जहां से आवाज देने के बाद टकराकर लौट आती है। वहां ले जाकर पंडित शर्मा ने पंडित नेहरू से कहा कि इस घाटी में बहुत दूरी पर एक दैत्य रहता है और उसकी बताई भविष्यवाणी कभी गलत नहीं होती। चूंकि इस दौरे में नेहरू के साथ शेख अब्दुल्ला भी थे और उन दिनों भी कश्मीर देश के लिए ज्वलंत मुद्दों में से एक था, इसलिए पंडित शर्मा ने चतुराई दिखाते हुए पंडित नेहरू से पूछ लिया, ‘यदि हुजूर की इजाजत हो तो इससे (दैत्य से) पूछ लेता हूं कि कश्मीर भारत के साथ रहेगा या पाकिस्तान के साथ।‘

बापना ने अपनी किताब में लिखा है कि पंडित नेहरू को इस सवाल में कौतुक लगा तो उन्होंने मुस्कुराते हुए घाटी के कथित दैत्य से कश्मीर के भविष्य के बार में सवाल पूछने की इजाजत दे दी। तब किले के मुख्य गाइड पंडित शर्मा बहुत खुश हुए और बापना के मुताबिक उन्होंने घाटी में चिल्ला पड़े, ‘हमारे प्रधानमंत्री जानना चाहते हैं कि कश्मीर पाकिस्तान के साथ रहेगा या भारत के। तुरंत आवाज लौट आई, भारत के...’  देवीदयाल बापना के मुताबिक, घाटी के इको सिस्टम की वजह से लौटी इस आवाज को सुनकर नेहरू, शेख अब्दुल्ला, विजयलक्ष्मी पंडित और मिश्रीलाल गंगवाल, सभी हंसने लगे।

देवीलाल बापना बाद में बने मध्य प्रदेश सरकार के भी वरिष्ठ सूचना अधिकारी रहे। उन्होंने दिल्ली पुलिस के जनसंपर्क अधिकारी के तौर पर भी सेवा दी है। उन्होंने अपनी पुस्तिका में ऐसे कई रोचक संस्मरण लिखे हैं। बहरहाल शेख अब्दुल्ला से जुड़ा यह किस्सा बेहद दिलचस्प है। पता नहीं, मांडू की घाटी का दैत्य असल में है भी या नहीं, लेकिन उसकी जम्मू-कश्मीर को लेकर की गई भविष्यवाणी सही तो साबित हुई है। जम्मू-कश्मीर न सिर्फ भारत के साथ रहा, बल्कि अब तो अभिन्न अंग बन गया है।

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