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मीडिया की नई चुनौतियों से प्रोफेसर केजी सुरेश ने कुछ यूं कराया रूबरू
भारतीय समाचार कक्ष भी धीरे ही सही, लेकिन स्थिरता के साथ विश्व की श्रेष्ठतम तकनीक अपनाने के लिए प्रयासरत हैं।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 4 years ago
के.जी. सुरेश
पूर्व डीजी, आईआईएमसी
इतिहास मुख्य रूप से दो भागों में बंटा है - ईसा पूर्व और ईस्वी (ईसा के जन्म का वर्ष)। इसी तरह पिछले एक दशक में मीडिया में आए क्रांतिकारी बदलावों को देखते हुए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मीडिया के इतिहास को भी दो भागों में बांटा जा सकता है। ये दो वर्ग होंगे - गूगल पूर्व और गूगल के बाद। गूगल के बाद के मीडिया के दौर की देन हैं इंटरनेट और स्मार्ट फोन। प्रौद्योगिकी में आए बदलाव ने मीडिया संस्थानों के समाचार कक्ष का दृश्य भी बदल दिया। खबर बनने की पूरी प्रक्रिया ही बदल गई, जैसे खबर एकत्रित करना, बनाना और साझा करना... सब कुछ! दुनिया भर के न्यूजरूम आज बदलते परिदृश्य के गवाह बन रहे हैं। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और रोबोटिक्स मानवकर्मियों का स्थान ले रहे हैं।
भारतीय समाचार कक्ष भी धीरे ही सही, लेकिन स्थिरता के साथ विश्व की श्रेष्ठतम तकनीक अपनाने के लिए प्रयासरत हैं। थोड़े ही समय में हम सूचना युग से आगे बढ़कर कम समय में अधिक संप्रेषण और बातचीत के दौर तक पहुंच गए। अब वैश्विक मीडिया का फोकस पहुंच पर बहुत अधिक न होकर लोगों को जोड़ने पर है। मीडिया के समक्ष अब चुनौती पाठकों, श्रोताओं और दर्शकों को आकर्षित करने की नहीं है, बल्कि उन्हें जोड़े रखने की है, क्योंकि लोग एक विषय-वस्तु पर केवल कुछ ही सेकंड का समय देते हैं।
इंटरनेट के बढ़ते उपयोग और ओवर द टॉप' (ओटीटी) प्लेटफॉर्म, जो सेटेलाइट, केबल और ब्रॉडकास्टर से परे इंटरनेट के माध्यम से मिलने वाला मीडिया है, के बढ़ते विकल्पों से भारतीय मीडिया भी तकनीकी प्रेमी हो गया है। मोबाइल जर्नलिज्म, डेटा जर्नलिज्म, एनिमेशन, कॉमिक्स और दृश्य प्रभाव आम माध्यम हो गए हैं। सिटीजन जर्नलिज्म, हैशटेग जर्नलिज्म और संकलित न्यूजरूम मीडिया वर्ग में आम बोलचाल की भाषा के लोकप्रिय शब्द बन चुके हैं। सोशल मीडिया ने मीडिया के माहौल को इतना लोकतांत्रिक बना दिया है, जैसा पहले कभी नहीं था और मीडिया घराने डिजिटल प्लेटफॉर्मों पर अधिक समय दे रहे हैं। सरकार ने भी डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म क्षेत्र में 20 फीसदी एफडीआई की मंजूरी देते हुए मीडिया के बदलते परिदृश्य का स्वागत किया है। पहले देश में केवल प्रिंट मीडिया में एफडीआई था। फिलहाल, वैश्विक चलन के विपरीत भारत में प्रिंट मीडिया उत्तरोत्तर वृद्धि की राह पर है।
नवसाक्षरों के लिए अखबार सदा ही सशक्तीकरण का प्रतीक रहा है और रहेगा। सम्पादकीय सुदृढ़ता वाले संस्थानों के रहते प्रिंट मीडिया अपनी साख, विश्वसनीयता और प्रामाणिकता के बल पर बिना दिग्भ्रमित और पथपभ्रष्ट हुए लोगों के दिलों पर राज करता रहेगा।
बढ़ती साक्षरता दर और युवाओं द्वारा अपनी भाषाई पहचान को स्वीकार करने के चलते भारतीय भाषाई मीडिया में भी प्रगति स्पष्ट देखी जा सकती है। मीडिया का यह वृहद स्तरीय तकनीकी बदलाव भारत जैसे बहुभाषी, बहुसंस्कृतिवादी, इंद्रधनुषी विविधता वाले देश को कैसे प्रभावित कर रहा है, संपूर्ण जगत इसका साक्षी है। लेकिन एक बात तय है। भले ही कितना भी तकनीकी विकास हो जाए, प्रस्तुत कंटेंट या विषय-वस्तु ही सर्वोपरि रहेगा। अस्तित्व बचाने की इस दौड़ में जीत उसी की होगी, जिसका कंटेंट सर्वश्रेष्ठ होगा।
(साभार: राजस्थान पत्रिका)
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