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सावधान, प्रचार प्रगति पर है, दांव पर है कई पत्रकारों की 'चाल'
प्रचार, वोटिंग और काउंटिंग के बीच ये वो टाइम पीरियड है, जो नेताओं के साथ साथ पत्रकारों के लिए भी बहुत चुनौती भरा है
समाचार4मीडिया ब्यूरो 5 years ago
प्रमिला दीक्षित
वरिष्ठ पत्रकार।।
प्रचार, वोटिंग और काउंटिंग के बीच ये वो टाइम पीरियड है, जो नेताओं के साथ साथ पत्रकारों के लिए भी बहुत चुनौती भरा है। चाहे वो कथित तौर पर ‘निष्पक्ष’ हों या निष्ठावान (ये निष्ठा किसी के भी प्रति हो सकती है)। नेताओं की खाल अपेक्षाकृत मोटी होती है। जनता का फैसला सिर आंखों पर कहकर उनके लिए पांच साल सत्ता के अंदर या बाहर काटना बड़ी बात नही है, लेकिन पत्रकार के लिए ये रोज़ी-रोटी के साथ साथ रेप्युटेशन की बात है। सबका रोल डिसाइड करने में ऊंट का रोल बड़ा महत्वपूर्ण है। कुछ नए खिलाड़ी दुविधा में हैं कि ऊंट किस करवट बैठेगा? राष्ट्रवादी का आवरण ही पहने रहें? या मुसलमान हो जाएं? या पुन: पत्रकार का चोगा पहन लें? मंझे खिलाड़ी जानते हैं कि बरसों का कमाया सुरक्षा कवच इत्ता हल्का नहीं कि पांच साल का मौसम न झेल पाए। हां, दस में दिक्कत हो सकती है, इसलिए कुछ हड़बडाहट है, लेकिन वो भी संयमित। वैसे पत्रकारिता में आर या पार की पराकाष्ठा का ये दौर नया है। पत्रकार, नेता नहीं हो सकता, बशर्ते वो आशुतोष न हो और नेता, पत्रकार नहीं हो सकता बशर्ते वो आशुतोष न हो।
नेता तो तेल मलकर प्रचार पर उतरते हैं, ताकि शरीर क्या, कान बेधकर अंतरात्मा तक कुछ न आने पाए, पर चैनल तो तेल लगा नहीं सकते और तेल लगाकर तो पत्रकारिता हो भी नहीं सकती। इसलिए ये दो महीने का टाइम कुछ चैनलों के लिए एकदम लास्ट ओवर टाइप है। जीत गए तो ट्रॉफी अपनी, नहीं तो स्टेडियम में ही इतनी छीछालेदार हो जानी है कि बाहर तो कहने ही क्या! कुछ हैं, जो निस्वार्थ भाव से लगे हुए हैं, कुछ जोखिम पर खेल रहे हैं। लोकतंत्र के इस महापर्व में ‘ज़ी न्यूज़’, ‘रिपब्लिक टीवी’ का उत्साह और ‘एनडीटीवी’ की उदासीनता देखते ही बनती है। हालांकि इस उदासीनता के बीच भी ‘एनडीटीवी’ ने कम से कम कन्हैया के नाम पर चुनाव प्रचार को चैनल पर मनमाफ़िक जगह दी, जिसे एक आम दर्शक की भाषा में ‘दिन रात यही दिखाते रहते हैं’ कह सकते हैं। यूं भी बाक़ी सब चैनल जब प्रधानमंत्री का इंटरव्यू लेने और दिखाने की कतार में खड़े हों तो बेचारे ‘एनडीटीवी’ को कैसे न कैसे तो बैलेंस करना ही था।
मोदीजी के इंटरव्यू से याद आया, अब तक हुए तमाम इंटरव्यूज़ को परखें तो अब तक का सबसे उम्दा इंटरव्यू ‘एएनआई’ की स्मिता प्रकाश ने किया था, जिसके आधार पर राहुल गांधी ने जर्नलिस्ट को ही ‘प्लाएबल’ करार दे दिया था। वैसे हाल-फिलहाल दूरदर्शन ने भी प्रधानमंत्री का इंटरव्यू किया, जिसकी उतनी चर्चा नहीं हुई, जितनी योगेंद्र यादव के ‘डीडी’ वाले बयान की ट्विटर पर ऐसी तैसी हुई। बाक़ी कोई पत्रकार जब प्रधानमंत्री से ये कहे कि मै भी कभी- कभी थक जाता हूं, आप क्यूं नहीं थकते? तो न सिर्फ सवाल बचकाना लगता है, बल्कि ये तुलना भी लगता है। जया प्रदा, हेमामालिनी, राज बब्बर राजनीति में दस साल और भी बिता लेंगे तो भी चैनल उनकी ख़बर ड्रीमगर्ल, तोहफ़ा वगैरह गाने की फुटेज लगाकर ही दिखाएंगे। नेता अपने संसदीय क्षेत्र को संबोधित कर रहे हैं और एंकर-रिपोर्टर अपनी टारगेट ऑडियंस को। हर चैनल ने अपने एंकर–पैदल, कार में, स्कूटी पर, बाइक पर, बसों में, ट्रेन में, सड़क पर उतार रखे हैं। लाख बराबरी और ब्रेन की बात करें, लेकिन न्यूज़ चैनल फीमेल एंकर रिपोर्टर को ऐसे मौक़े पर टीआरपी के ब्रहमास्त्र की तरह इस्तेमाल करने की फिराक में रहते हैं। ‘इंडिया टीवी’ ने जीन्स-चश्मा-बूट पहनाकर बाइक पर अपनी रिपोर्टर उतारी है तो यकीन मानिए भारत में कई इलाक़े ऐसे भी हैं, जहां महज उसे देखने के लिए ही भीड़ खिंची आएगी। टीवी तो फिर बड़ा प्लेटफॉर्म है।
जैसे अमूल दूध-दही-छाछ बटर सब केटर करता है, ‘आजतक’ के पास कई प्लेटफॉर्म हैं। इसलिए उसने लखनऊ में अपनी एंकर अंजना की शॉपिंग को भी अलग वर्ग के लिए सोशल मीडिया पर परोस दिया। भयंकर गर्मी में भी कोट-पैंट पहनकर एबीपी की एंकर बिहार के गमछा लपेटे लोगों के बीच जाती है। ‘ज़ी न्यूज़’ ने ‘सबसे बड़े प्रचारक’ की उपाधि देकर, प्राइम टाइम का एक घंटा मोदी जी को समर्पित किया, लेकिन विडम्बना ये कि बदले में मोदी जी, ‘ज़ी न्यूज़’ के साथ ऐसा कर दें तो लोग बुरा मान जाएंगे! ‘इंडिया टीवी’ वाया बाबा रामदेव इंटरव्यू मुकाबले में है। ख़ास बात ये कि इन चैनलों पर तो मोदीभक्त होने का आरोप सोशल मीडिया में खूब लगता है, लेकिन जो ‘निस्वार्थ’ भाव से मोदी सरकार के खिलाफ़ चैनल स्थापित करने में लगे हैं, वो खुद के लिए ‘क्रांतिकारी’ का तमगा चाहते हैं। चुनाव आयोग ने योगीजी के प्रचार पर रोक लगा दी तो वो मंदिर में पूजा करते नजर आए, ये प्रत्यक्ष रूप से सबके सामने है। रोक चुनाव आयोग ने आज़म खां पर भी लगाई, लेकिन उनके अनुयायियों ने ‘ज़ी न्यूज़’ के ‘ताल ठोक के’ को रामपुर में बीस मिनट में ही ठोक-पीटकर परोक्ष रूप से खां साहब का परचम बुलंद रखा। वैसे ख़बर लिखे जाने तक कांग्रेस ने आप के गठबंधन को दो हज़ार उन्नीसवीं बार न कर दी है, लेकिन सुनते हैं कि कार्य प्रगति पर है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
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