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इकनॉमी पांच ट्रिलियन पहुंचानी है तो ऐसे शुरुआती 'कष्ट' सहने होंगे'

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की रीड की हड्डी उद्योग होते हैं। अब उद्योग खड़ा करना लगभग असम्भव हो गया है

समाचार4मीडिया ब्यूरो 5 years ago

पूरन डावर, प्रखर चिंतक एवं विश्लेषक ।।

मुझे लगता है कि आज भारत की मंदी का सबसे बड़ा कारण रियल एस्टेट है। पिछले एक दशक में लोगों न केवल बचत, बल्कि ब्याज पर लेकर भी पैसा रियल एस्टेट में लगाया। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर बैठता गया। सबसे बड़ा रोजगार रियल एस्टेट ब्रोकर का बन गया। सबसे अधिक रोजगार रियल एस्टेट में रहे। अव्वल तो किसी को फैक्टरी लगाने के लिये जमीन आसमान के भाव पर मिलती थी, जिसे वह खरीद नहीं पाता था। खुदा न खास्ता किसी ने खरीद भी ली, तो जब तक बनाने का समय आता तो दोगुने दाम पर बिक जाती थी। लेकिन यदि उद्योग खुल गया तो उस निवेश और ब्याज दर पर टिकना सम्भव नहीं। हुंडी के कारोबार ने भी जोर पकड़ा। बिल्डरों के पास हुंडी का पैसा, मोटी ब्याज, अगले दस साल की बढ़त पहले ही जुड़ी होती थी। हर आदमी अपनी बढ़ी हुयी कीमतों को लगाकर खुश रहता था, खुलकर खर्च करता था।

पिछले दो दशक ऐसे भी रहे हैं, जहां हर चीज जायज थी। लगता ही नहीं था कि भ्रष्टाचार भी कुछ होता है। घोटालों के कारण काली अर्थव्यवस्था का भी बोलबाला था। बाजार में पैसे की कमी नहीं थी। लगता था कि स्विस बैंक का पैसा मॉरीशस एवं अन्य मार्गों से भारत वापस आ रहा था। कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था में तरलता में कोई कमी नहीं थी।

आखिर कब तक ऐसा चलता। एक दिन तो यह भांडा फूटना ही था। रियल एस्टेट का ग़ुब्बारा फूट गया। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की रीड की हड्डी उद्योग होते हैं। अब उद्योग खड़ा करना लगभग असम्भव हो गया, तरलता समाप्त हो गई। पैसा रियल एस्टेट में डूब गया। हुंडी वालों ने हाथ खड़े कर दिए। सरकार के सुधारात्मक कदमों ने हर तरफ से हाथ बांध दिए। पहले बाजार की एंट्री पर काम कर लेते थे, कैश जमा कर लेते थे। परिवार या मित्रों से ऋण ले लेते थे या दिखा देते थे, आज ये सारी जुगाड़ें समाप्त हो गईं।

बैंकिंग व्यवस्था ने सबक़ नहीं लिया। नोटबंदी का समय हो या एनपीए (Non Performing Asset) पर एक्शन का,  अच्छा होता कि सही सोच के साथ काम होता। ऐसे ऋण जो राजनैतिक आधार या भ्रष्ट आचरणों पर दिए जाते थे, उन पर लगाम लगती। आज वास्तविक और प्रामाणिक उद्यमियों के ऋण पर रोक लगा दी गयी। रही सही तरलता भी समाप्त कर दी गयी, विधिक रास्ता भी सिकुड़ गया।

सरकार की मंशा पर कोई संदेह नहीं कर सकता। सरकार आज सिस्टम से आम आदमी के मुकाबले ज्यादा जूझ रही है। मैं समझता हूं कि शायद ही कोई सरकार अर्थव्यवस्था पर इतनी संजीदा रही हो, जितनी मोदी सरकार। हर दिन के हिसाब से आंकड़े, हर रोज नए प्रयास। नए सुधार। नयी रियायतें। नए मोर्चे नयी योजनाएं। नये उत्साहवर्धक नारे। कभी चार कदम आगे और कभी दो कदम पीछे।

सरकार पर आरोप लगाने से पहले हमें सोचना होगा। अपनी कार्यप्रणाली पर आत्ममंथन करना होगा। सरकार वह हर प्रयास कर रही है, जिससे आर्थिक अनुशासन बना रह सके। इसके लिए रेरा जैसे कदम भी उठाए गए हैं। ऐसी सारी रुकावटें प्रारम्भ में परेशान कर सकती हैं, लेकिन एक बार इनसे निकल गए तो अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता और इन उपायों के बिना पहुंचा नहीं जा सकता।

(यह लेखक के निजी विचार हैं)


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