होम / विचार मंच / अनुच्छेद 370: मीडिया कवरेज से दिल बाग-बाग नहीं हुआ
अनुच्छेद 370: मीडिया कवरेज से दिल बाग-बाग नहीं हुआ
अनुच्छेद 370 की विदाई कोई आसान काम नहीं था। कमोबेश हर दल इसके पक्ष में था, लेकिन सत्ता में रहते हुए उसे हटाने का साहस कोई नहीं कर पाया
राजेश बादल 5 years ago
राजेश बादल, वरिष्ठ पत्रकार।।
इस आलेख को शुरू करने से पहले दो ऐसी शख्सियतों को नमन करना आवश्यक है,जिनका भारतीय पत्रकारिता में बड़ा योगदान है। पहले सुषमा स्वराज की याद। अस्वस्थ्य थीं, लेकिन अचानक विदा ले लेंगी, यह अंदाजा नहीं था। अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में सूचना प्रसारण मंत्री रहते हुए उन्होंने निजी सैटेलाइट चैनलों के लिए भारत में द्वार खोले।
उससे पहले भारतीय जमीन से यह स्वतंत्रता निजी मीडिया समूहों को नहीं थी। इसी फैसले का नतीजा है कि आज भारत में दुनिया की सबसे बड़ी और तेज गति से बढ़ी टीवी इंडस्ट्री कायम है। भारतीय खबरिया चैनल उद्योग इसके लिए सुषमा जी का हमेशा ऋणी रहेगा।
दूसरी शख्सियत भारत के महान हिंदी संपादक राजेन्द्र माथुर हैं। आज उनका जन्मदिवस है। अपने धारदार और निष्पक्ष लेखन के लिए उनको सदैव याद किया जाएगा। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विषयों पर उन्होंने अद्भुत प्रामाणिक लेखन किया। सरोकारों वाली पत्रकारिता करने के लिए उन्होंने अनेक पीढ़ियां तैयार कीं।
और अब बात मिस्टर मीडिया की। यह सप्ताह निस्संदेह आजादी के बाद भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। अनुच्छेद 370 की विदाई कोई आसान काम नहीं था। कमोबेश हर दल इसके पक्ष में था, लेकिन सत्ता में रहते हुए उसे हटाने का साहस कोई नहीं कर पाया। भारतीय जनता पार्टी ने जोखिम मोल लिया है। इसके लिए उसे अवाम का समर्थन भी मिला है। इस अवसर पर यह पड़ताल भी जरूरी है कि पत्रकारों-संपादकों ने इस ऐतिहासिक फैसले की कवरेज किस तरह की।
अगर मुझे इस कवरेज का निर्णायक चुना जाए तो भरोसे से कह सकता हूं कि इससे दिल बाग-बाग नहीं हुआ। हम इससे कई गुना बेहतर कर सकते थे, लेकिन नहीं कर सके। समूचे करियर में एक पत्रकार को इतिहास के अनमोल पलों का साक्षी होने के अनेक अवसर नहीं मिलते। आज के भारत में कितने पत्रकार ऐसे होंगे, जिन्होंने भारत की आजादी, बंटवारा, महात्मा गांधी की हत्या, बासठ,पैंसठ और इकहत्तर के युद्धों की कवरेज की होगी।
आपातकाल, जनता पार्टी की सरकार, गुट निरपेक्ष देशों का सम्मेलन, इंदिरा गांधी की शहादत, कारगिल बचाव और अंतरिक्ष अभियानों को कवर करने जैसा ही एक मौका सोमवार को इस देश के पत्रकारों ने पाया था। लेकिन हम उत्साह,आवेग और भावना पर काबू न रख सके। खांटी खबर, तथ्यात्मक विश्लेषण, अंतर्राष्ट्रीय असर और दूरगामी परिणामों के मद्देनजर अपनी रिपोर्टिंग में हम गहराई नहीं ला सके।
इसके दो कारण समझ में आते हैं। एक तो इस तरह के मामलों में हम पाकिस्तान फोबिया से ग्रस्त हो जाते हैं। यह पड़ोसी हमारे अवचेतन पर इस तरह हावी हो जाता है कि हर कदम हमें ब्रह्मास्त्र लगने लगता है। मानो हिन्दुस्तान अभी पलक झपकते ही पाकिस्तान को राख कर देगा। दूसरा कारण मुझे लगता है कि हम खबर आते ही पुराने दस्तावेजों, किताबों, प्रामाणिक संदर्भों की खोजबीन नहीं करते। अपनी सहूलियत के मुताबिक विशेषज्ञों का चुनाव करते हैं और हल्के फुल्के सतही ज्ञान का अंबार लगा देते हैं। एक दर्शक आठ घंटे तक उस बहस को देखता रहे तो भी संतोष नहीं होता और अगर सार्थक चर्चा हो तो एक घंटे में ही डकार आ जाती है। अब इसका क्या किया जाए मिस्टर मीडिया?
वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल की 'मिस्टर मीडिया' सीरीज के अन्य कॉलम्स आप नीचे दी गई हेडलाइन्स पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं-
मिस्टर मीडिया: एक बार फिर इसी सत्याग्रह की जरूरत है
संपादक की दुविधा हम समझते हैं, पर कोई समाधान निकालिए मिस्टर मीडिया!
मिस्टर मीडिया: ऐसे में क्या खाक निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता की उम्मीद करेंगे?
मिस्टर मीडिया: क्या हमारे मीडिया संस्थानों के मालिक-संपादक इन जरूरी तथ्यों से अनजान हैं?
टैग्स राजेश बादल राजेन्द्र माथुर मिस्टर मीडिया सुषमा स्वराज जिम्मेदार मीडिया