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ऐसे पुलिसवालों के खिलाफ कार्रवाई न हो तो सड़कों पर उतरने के लिए तैयार रहिए मिस्टर मीडिया!
पिछले सप्ताह जब मैंने कोरोना केंद्रित यह स्तंभ लिखा था तो उस समय के कवरेज को देखते हुए कुछ आशंकाएं प्रकट की थीं। इस सप्ताह यह कॉलम लिखते हुए मैं संतोष का अनुभव कर रहा हूं।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 4 years ago
राजेश बादल, वरिष्ठ पत्रकार ।।
पिछले सप्ताह जब मैंने कोरोना केंद्रित यह स्तंभ लिखा था तो उस समय के कवरेज को देखते हुए कुछ आशंकाएं प्रकट की थीं। इस सप्ताह यह कॉलम लिखते हुए मैं संतोष का अनुभव कर रहा हूं। मीडिया के तमाम अवतारों पर जिम्मेदारी भरा और कमोबेश संतुलित कवरेज देखने को मिल रहा है। डराने वाला और अंध विश्वास फैलाने वाला कवरेज एकाध अपवाद छोड़कर नहीं दिखाई दिया। निस्संदेह सारे पत्रकार साथी इसके लिए शाबाशी के पात्र हैं।
अपवाद के तौर पर रविवार की शाम यकीनन परेशान करने वाली थी। प्रधानमंत्री ने अपने अपने घर में रहते हुए ताली-थाली बजाने की अपील की थी। हुआ उल्टा। कुछ अनपढ़ लोग समझ बैठे, मानो उन्होंने कोरोना का अंतिम संस्कार कर दिया है और संसार पर विजय प्राप्त कर ली है। जहां सारे दिन समूह में रहने से बचा गया, एक दूसरे के निकट संपर्क में आने से बचा गया, वहीं दूसरी ओर शाम पांच बजते ही झुंड के झुंड सड़कों पर नजर आने लगे, हर्षातिरेक में चिल्लाने लगे और नारेबाजी करने लगे। जैसे उन्होंने पाकिस्तान को जमींदोज कर दिया है। सारे दिन लॉक डाउन का मतलब धरा रह गया। सैकड़ों की तादाद में सड़कों पर नाचने वाले इन निपट मूर्खों का क्या किया जाए? दुर्भाग्य से अनेक चैनलों ने इन दृश्यों को प्रमुखता से स्थान दिया, मगर उतनी ही प्रमुखता से इन झुंडों की आलोचना नहीं की।
लेकिन इस हालात में हिन्दुस्तान के सरकारी ऑल इंडिया रेडियो के अनेक केंद्रों का प्रसारण ठप्प हो जाना खतरनाक संकेत है। अगर रेडियो का स्टाफ नहीं पहुंचा और वहां रिकॉर्डेड प्रोग्राम तथा गाने सुनाए जा रहे हैं तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है। मत भूलिए कि आज भी करोड़ों लोग प्रतिदिन घंटों रेडियो सुनते हैं। जंग के दिनों में अथवा आपातकाल में सरकारी प्रसारण केंद्रों को लकवा लग जाना यकीनन तंत्र पर सवाल खड़े करता है। इसी तरह दूरदर्शन के अनेक प्रादेशिक केंद्रों का प्रसारण बाधित रहा। वे या तो रिकॉर्डेड कार्यक्रम दिखा रहे हैं अथवा दूरदर्शन न्यूज या संसद के चैनलों का प्रसारण दिखा रहे हैं। भारत सरकार के लिए यह सोचने का विषय है कि असाधारण परिस्थितियों में उसका अपना प्रसारण तंत्र अपाहिज न बने।
वैसे तो आपात सेवाओं में दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार ने मीडिया कर्मियों को छूट दी है, पर सोमवार को एक टीवी चैनल के वरिष्ठ प्रड्यूसर नवीन कुमार के साथ सफदरजंग एन्क्लेव क्षेत्र की पुलिस ने जो बरताव किया, उसे कतई जिम्मेदाराना नहीं ठहराया जा सकता। परिचय पत्र दिखाने के बावजूद उनका मोबाइल, पर्स और गाड़ी की चाबी छीन ली और गालियां देते हुए देर तक पीटा। आदम युग की यह बर्बरता पुलिस आखिर कब छोड़ेगी? उन्हें सभ्य और शालीन बनाने के लिए क्या किया जाए? माना जा सकता है कि जब अधिकांश सेवाओं के कर्मचारी घरों में बंद रहकर अपनी हिफाजत कर रहे हैं तो उन्हें यह अवसर भी नहीं मिल रहा है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि उन्हें जल्लादी का लाइसेंस मिल गया है। इस सेवा का चुनाव उन्होंने स्वयं ही किया है। किसी ने बन्दूक की नोक पर उन्हें पुलिस में आने के लिए बाध्य नहीं किया है। ऐसे अभद्र और गंवार पुलिसवालों के खिलाफ यदि कार्रवाई नहीं हो तो सड़कों पर उतरने के लिए तैयार रहिए मिस्टर मीडिया!
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