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1984 के सिख दंगों की रिपोर्टिंग से आलोक तोमर की बनी थी यादगार छवि: डॉ. हरीश भल्ला

1984 में हुए सिख दंगों के दौरान की गई उनकी आक्रामक रिपोर्टिंग से आलोक तोमर की एक ऐसी छवि बनी जो आज तक लोग याद रखते हैं।

समाचार4मीडिया ब्यूरो 9 months ago

डॉ. हरीश भल्ला, महासचिव, मध्य प्रदेश फाउंडेशन ।।

हिंदी पत्रकारिता के 'आधुनिक स्तंभ' माने-जाने वाले पत्रकार आलोक तोमर का इस हफ्ते जन्मदिन था। आलोक का हमसे परिचय उनके दिल्ली आते ही हो गया था और यह दोस्ती भाई का रिश्ता अंतिम समय तक रहा। मेरे जीवन में ऐसा अद्भुत एवं प्रखर बुद्धि वाला निडर पत्रकार कम ही देखने को मिला, जो ठेठ मध्य प्रदेश के एक छोटे गांव से निकलकर देश में अपनी एक अलग ही पहचान बनाने में कामयाब हुआ।

1984 में हुए सिख दंगों के दौरान की गई उनकी आक्रामक रिपोर्टिंग से उनकी एक ऐसी छवि बनी जो आज तक लोग याद रखते हैं। आलोक को भाषा के साथ नए प्रयोग और जमीनी मुद्दों को उठाने के लिए जाना जाता था। वह सिर्फ 50 वर्ष का ही तो था जब वह अपने प्रशंसकों को छोड़कर हमेशा के लिए चला गया। प्रिंट/इलेक्ट्रानिक मीडिया से जुड़े आलोक तोमर ने अपराध और सामाजिक सरोकार के मुद्दों से जुड़ी पत्रकारिता में अपना विशेष स्थान बनाया एवं जनसत्ता ने विशेषकर उनके गुरु प्रभाष जोशी ने आलोक को एक मजबूत प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराया।

मध्य प्रदेश के भिंड जिले में 27 दिसंबर 60  में जन्में आलोक ने हिंदी पत्रकारिता में अपनी रिपोर्टिंग के जरिये भाषा को नये तेवर दिये। प्रिंट मीडिया से करियर की शुरुआत करने वाले आलोक तोमर ‘जनसत्ता’ अखबार से बुलंदियों पर पहुंचे। मध्य प्रदेश फाउंडेशन के गठन पर वह आजीवन न्यासी बने एवं म.प्र. फाउंडेशन का लोगो और टैग उन्होंने ही डिजाइन किया, जिसमें लिखा था मध्य प्रदेश के सतर्क नागरिकों का संगठन। आलोक और उनकी पत्नी सुप्रिया हमारे परिवार के सदस्य बन गए, विशेषकर डॉ. कुसुम के प्रिय हो गये! आलोक को पत्रकारिता के अलावा संगीत और कला से भी लगाव था एवं जावरा हाऊस की हर महफिल में मौजूद रहते थे। आज के समय में जब पत्रकारिता की विश्वसनीयता को लेकर सवाल उठने लगे हैं, आलोक जैसे खॉटी खुद्दारी पत्रकारों की जरूरत महसूस होती है। काश के आलोक तुम इतनी जल्दी नही चले जाते। यादों में हमेशा रहोगे, प्रिय भाई आलोक!


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