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क्या हम विज्ञापनों के मॉडल से निकलकर आगे नहीं बढ़ सकते?: सुमित अवस्थी
e4m NewsNext 2023 कॉन्फ्रेंस में 'एनडीटीवी इंडिया' के कंसल्टिंग एडिटर सुमित अवस्थी ने कहा कि आजाद मुल्क में रहते हैं, जब हम सबकी आलोचना कर सकते हैं, तो हम क्यों नहीं आलोचना का शिकार हो सकते हैं
समाचार4मीडिया ब्यूरो 1 year ago
नई दिल्ली में रविवार को आयोजित e4m NewsNext 2023 कॉन्फ्रेंस में 'एनडीटीवी इंडिया' के कंसल्टिंग एडिटर सुमित अवस्थी ने कहा कि अभी दुनिया खत्म नहीं हुई है। पत्रकारिता के नाम पर लोगों को बहुत ही ज्यादा ट्रोल किया जाता है, तरह-तरह की बातें लिखी जाती हैं। वैसे सही है, आजाद मुल्क में रहते हैं, लोकतंत्र में रहते हैं, जब हम सबकी आलोचना कर सकते हैं, तो हम क्यों नहीं आलोचना का शिकार हो सकते हैं। इस डेमोक्रेसी में जब हम आलोचना कर सकते हैं, तो हमको भी आलोचना सुनने के लिए तैयार रहना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि हम सब बदलाव के दौर में है। 1997-1998 में जब मैंनें पत्रकारिता में कदम रखा था, तो मैंने ये नहीं सोचा था कि मैं 24-25 साल लंबी यात्रा तो तय कर लूंगा। आज मैं जहां खड़ा हूं और जिस वजह से आज यहां बुलाया गया है उसकी वजह सिर्फ और सिर्फ पत्रकारिता है। मैं आपके ही बीच से आया हूं, बेहद ही साधारण परिवार से आता हूं और आज जब मैं अपने 20-25 साल के करियर में यहां तक पहुंचने में कामयाब हो पाया हूं तो उसकी सबसे बड़ी वजह है 'विश्वसनीयता' यानी 'क्रेडिबिलिटी' को बनाए रखना। और यह आपके हाथ में हैं।
ऐसे बहुत से मौके आएंगे, जब आपको तरह-तरह का प्रलोभन, लालच दिया जाएगा या मिलेगा, कई बार आप खुद फिसलना चाहेंगे, लेकिन वो आपको तय करना है कि फिसलकर जीवनभर के लिए गिर जाना है या फिर एक बार जमकर अगले पच्चीस-पचास साल तक खड़े रहना है। यह आपको तय करना है। यदि आप क्रेडिबल हैं और सही मायने में अच्छा काम कर रहे हैं, तो कोई भी आपको अच्छा पत्रकार बनने से नहीं रोक सकता है।
जब हम लोग 1995-96 में पत्रकारिता पढ़ रहे थे, तो सिर्फ पेन की ताकत पता थी हमें कि हमको अच्छा लिखना आना चाहिए और सवाल पूछना आना चाहिए। आज हम 2023-24 में आ गए हैं, तो पेन शायद पीछे छूट गया है, मोबाइल बड़ा टूल बन गया है। हम सभी वीडियो क्लिप बनाने और ऑडियो रिकॉर्ड करने के दौर में आ गए हैं, पॉ़डकास्ट का जमाना आ चुका है, लेकिन आज भी उन्हीं पत्रकारों को याद करते हैं और पढ़ना चाहते हैं, जो वाकई में क्रेडिबल हैं। मैं इसकी गहराई में नहीं जाउंगा, ये आपको तय करना है कि कौन क्रेडिबल है और कौन बायस्ड। ये आपके विवेक पर निर्भर करता है कि कौन सा चैनल देखना है, कौन सा अखबार पढ़ना है, कौन सा यू-ट्यूब चैनल लाइक या अनलाइक करना हैं। इसके लिए आप पूरी तरह से परिपक्व हैं और इस पर मैं अपनी राय नहीं देना चाहता। पर आप उसी को देखना और सुनना चाहते हैं, जो आपको लगता है कि ये क्रेडिबल है।
क्रेडिबिलिटी बनाए रखने के लिए पत्रकारिता में आ रहे नवागत छात्रों को मैं यहीं कहना चाहूंगा कि खूब पढ़ें और खूब सवाल करें। अपने आपसे भी सवाल करें कि ऐसा क्यों हो रहा है? क्या ये जो दिखाया जा रहा है कि क्या वाकई में यही सच है? मैं कोई भी ऐसे मैसेज को फॉरवर्ड कर सकता हूं। वॉट्सऐप पर डाल सकता हूं, फेसबुक पर डाल सकता हूं। किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इसे फॉरवर्ड करने से पहले अपने आप से पूछिए कि क्या मैं सही हूं, क्या मैं कोई टूल तो नहींं बन गया हूं, कोई मेरे कंधे का इस्तेमाल तो नहीं कर रहा है? इसलिए अपने आपसे सवाल करना जरूरी है कि जो मैं कर रहा हूं क्या वह सही है या नहीं।
पत्रकारिता में आ रहे नवागत छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने आगे कहा कि दूसरी चीज कहना चाहूंगा कि जो भी स्टोरी करें, कैंपेन करें, मुद्दा उठाएं उसमें जो आखिरी व्यक्ति होता है यानी आम आदमी, उसे मत भूलिएगा कि हम उसे क्या देकर जानें वाले हैं। चेहरों की पत्रकारिता मत करिएगा, मुद्दोंं की पत्रकारिता करिएगा। आजकल चेहरों की पत्रकारिता हो रही है, हम सबकों चेहरे पसंद आ गए हैं, चेहरों के पीछे भागते हैं, हम सबने मुद्दों को छोड़ दिया है। यह सबसे बड़ी समस्या है और हम सब इससे जूझ भी रहे हैं।
सुमित अवस्थी ने आगे कहा कि एक टीवी न्यूज चैनल की दो ताकतें होती हैं, पहला रिपोर्टर और दूसरा सेल्स। दरअसल, सेल्स टीम ही विज्ञापन लाते हैं, जहां से वेतन का भुगतान किया जाता है। इसलिए यह भी बहुत जरूरी है, क्योंकि केवल पत्रकारिता करने से सैलरी नहीं मिलेगी। आज के दौर में सैलरी मिलनी बहुत जरूरी है और इसके लिए हमकों बतौर दर्शक यदि अच्छी पत्रकारिता देखनी है, तो उसके लिए थोड़ा खर्चा करना होगा। अच्छी चीज फ्री में नहीं आती है। मैं उसके लिए खर्च करने के लिए तैयार हूं। मैं सब्सक्रिप्शन करने के लिए तैयार हूं, मुझे विज्ञापनों के मॉडल पर नहीं जाना है। क्या हम इस चीज से निकलकर भाग सकते हैं।
मैं टीवी इंडस्ट्री से आता हूं, मैंने अपने सामने डिजिटल को आगे बढ़ते देखा है। बीते दस सालों में तेजी से डिजिटल को आगे बढ़ा है। वह दिन दूर नहीं, जब टीवी पीछे रह जाएगा और डिजिटल आगे निकल जाएगा और ऐसा होने में ज्यादा समय नहीं बचा है, किसी दिन भी ये हो सकता है। कहते हैं कि टीवी के पास रेवेन्यू है, डिजिटल के पास रेवेन्यू नहीं है, लेकिन आज के दौर में जिस तरह से डिजिटल ने अपने फुटप्रिंट्स जमाए हैं, जिस तरह से बड़े-बड़े न्यूज मेकर्स डिजिटल पर अपने आप को दिखाना चाहते हैं, पेश करना चाहते हैं, वह यह दिखाता है कि इस मीडियम का क्या भविष्य है।
यदि आपको बड़े संस्थान में, बड़े चैनल में, बड़े अखबार में नौकरी न मिले तो परेशना न हों, डिजिटल सस्ता, सुंदर और टिकाऊ उपाय है, जो आपको नाम भी देगा, पहचान भी देगा। लेकिन यह उसी को देगा, जो क्रेडिबल होगा और जो क्रेडिबल नहीं उसे बिलकुल भी नहीं देगा।
यह बहुत ही कड़वा सत्य है कि आज हम सब जिस दौर में है वहां मुफ्त की चीजों को देखने, खाने-पीने की आदतें लग गई है। जो अखबार 35-40 रुपए का छपता है, हमको चार रुपए का अच्छा लगता है। जिस सैटेलाइट न्यूज चैनल को चलाने में लाखों-करोड़ों रुपए खर्च होता है, वो न्यूज चैनल आपको फ्री-टू एयर चाहिए। यदि मैं कहूं आपको दिन के दस पैसे देने होंगे, तो कोई देने को तैयार नहीं होगा। इसलिए यदि आप अच्छी चीजें देखने को तैयार नहीं है, तो आपको वहीं चीजें देखने को मिलेंगी, जो वो ताकतें आपको दिखाना चाहती हैं, जो कहीं बैठी हुईं हैं, जो आपको रूल कर रही हैं और समझाना चाह रही हैं कि मैंने आपके चैनल पर विज्ञापन दिया है, तो अब आपको ऐसा ही करना पड़ेगा।
टीवी की बात करें तो पहले का दौर अब चला गया है। अब हम रेटिंग के गेम में आ गए हैं। रेटिंग में गेम में सबसे बड़ी दिक्कत है कि एक पैमाना बन गया है, कि उसके टीवी चैनल पर कोई चीज चल रही है, तो हमें भी दिखाना चाहिए और ऐसा इसलिए क्योंकि कहीं न कहीं कोई है जो इस तरह के कंटेंट को पुश करवाता है और यह दर्शकों की इच्छा है कि वह यह सब देखना चाहते हैं यह नहीं।
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