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बलूचिस्तान की स्वतंत्रता और पाकिस्तान के अंत की शुरुआत: अरुण आनंद

चीनियों को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की आड़ में न केवल संसाधनों का दोहन करने बल्कि बलूचिस्तान को उपनिवेश बनाने की खुली छूट दी गई है।

समाचार4मीडिया ब्यूरो 1 year ago

अरुण आनंद, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और स्तम्भकार।

पाकिस्तान अपनी वित्तीय व्यवस्था के चरमराने और पूरे देश में हिंसा में वृद्धि के कारण अस्तित्व के संकट का सामना कर रहा है, ऐसे हालात में बड़ा सवाल यह है कि पाकिस्तान कब तक बलूचिस्तान पर जबरन कब्जा बनाए रख सकता है? क्या बलूचिस्तान पाकिस्तान से अलग हो जाएगा? इन सवालों के जवाब महत्वपूर्ण हैं क्योंकि बलूचिस्तान के अलग होने का मतलब पाकिस्तान का अंत होगा। बलूचिस्तान में पाकिस्तान के भौगोलिक विस्तार का 44 प्रतिशत हिस्सा है। 1971 में, पाकिस्तान का पूर्वी हिस्सा अलग हो गया था और बांग्लादेश बना। आज वह विकास के मामले में पाकिस्तान की तुलना में बहुत बेहतर स्थिति में है। पूर्वी पाकिस्तान का भी पाकिस्तान के शासकों द्वारा शोषण और उपनिवेशीकरण किया गया था जैसा कि उन्होंने बलूचिस्तान के साथ किया है।

 बलूचिस्तान का शोषणः पाक-चीन का गठजोड़

बलूचिस्तान के संसाधनों का पाकिस्तान द्वारा शोषण सर्वविदित तथ्य है। बलूचिस्तान में दुनिया के कुछ सबसे बड़े तांबे और सोने के भंडार हैं। इसमें कोयले, तेल और प्राकृतिक गैस के समृद्ध भंडार भी हैं। मई 2020 में, पाकिस्तान की सरकारी कंपनी पाकिस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन ने इस प्रांत के कलात ब्लॉक में एक खरब क्यूबिक फीट के विशाल गैस भंडार की खोज की घोषणा की। लेकिन इन सब प्राकृतिक संसाधनों का बड़े पैमाने पर शोषण किया गया है। बलूचिस्तान मानव विकास सूचकांक में सबसे निचले पायदान पर बना हुआ है। 85 प्रतिशत आबादी के पास सुरक्षित पेयजल की सुविधा नहीं है, लगभग 75 प्रतिशत बिजली से वंचित हैं, 70 प्रतिशत की शिक्षा तक पहुंच नहीं है और 63 प्रतिशत गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं।

इसके अलावा, चीनियों को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की आड़ में न केवल संसाधनों का दोहन करने बल्कि बलूचिस्तान को उपनिवेश बनाने की खुली छूट दी गई है। गौरतलब है कि ग्वादर और जिवानी दोनों बंदरगाह बलूचिस्तान में हैं। चीनियों की वहां भारी उपस्थिति है और ये बंदरगाह महासागरों, विशेष रूप से भारत-प्रशांत क्षेत्र पर हावी होने के लिए ‘मोतियों की माला यानी पल्र्स ऑफ स्ट्रिंग्स’ बनाने के सिद्धांत पर आधारित चीन की नौसैनिक रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

पाक-चीनी सांठगांठ कैसे बलूचिस्तान को उपनिवेश बना रही है, इसका एक ताजा उदाहरण तब सामने आया जब पाकिस्तान सरकार ने ग्वादर के स्कूलों में चीनी भाषा सीखना अनिवार्य कर दिया। दूसरी ओर, बलूचिस्तान के किसी भी स्कूल में बलूची भाषा मुश्किल से ही पढ़ाई जाती है। बलूचिस्तान के स्कूलों में केवल उर्दू और चीनी पढ़ाने के पीछे बलूचियों की पहचान को नष्ट करना और चीनी और पाक प्रतिष्ठानों के लिए सस्ते श्रमिक तैयार करना है। चीनी भी बलूचिस्तान में गहरी पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं। एक और ताजा उदाहरण बलूचिस्तान विश्वविद्यालय में चीन अध्ययन केंद्र की स्थापना है जो अब चीनी भाषा में कई पाठ्यक्रम चलाता है।

यह छात्रवृत्ति पर बलूची छात्रों के चीन दौरे की व्यवस्था भी करता है। दिलचस्प बात यह है कि चाइना स्टडी सेंटर के निदेशक विश्वविद्यालय की आधिकारिक वेबसाइट पर कहते हैं, “बलूचिस्तान विश्वविद्यालय में चीन अध्ययन केंद्र का उद्देश्य चीन को, पाकिस्तान के सबसे महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक और आर्थिक भागीदार के रूप में, बढ़ावा देना है।“ यह केंद्र पाकिस्तान में चीनी दूतावास की वित्तीय मदद से स्थापित किया गया था। बलूच इस आर्थिक, सैन्य और सांस्कृतिक हमले का विरोध राजनीतिक और सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से करते रहे हैं।

 आजादी के लिए बलूचियों का संघर्ष

आजादी के लिए बलूचियों का संघर्ष करीब साढ़े सात दशक पहले शुरू हुआ था, जब उस पर पाकिस्तान ने अवैध कब्जा जमाया था। अब यह संघर्ष चरम पर पहुंच गया है। बलूचिस्तान प्रांत में हिंसा में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है क्योंकि बलूची सशस्त्र क्रांतिकारी पाकिस्तानी सेना द्वारा बलूची लोगों की लूट, हत्याओं, बलात्कारों के जवाब में चीनी और पाक अधिकारियों को  निशाना बना रहे हैं। 16 मार्च, 2023 को, बलूच मानवाधिकार परिषद (बीएचआरसी) ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर तुर्क को बलूचिस्तान में पाकिस्तान द्वारा किए गए मानवाधिकारों के उल्लंघन की गंभीरता और पैमाने के बारे में अवगत कराया।

बीएचआरसी द्वारा प्रस्तुत ज्ञापन के अनुसार, विभिन्न स्रोतों से प्राप्त डेटा और पीड़ितों के रिश्तेदारों से बीएचआरसी द्वारा सत्यापित, जनवरी 2022 से दिसंबर 2022 तक, 367 व्यक्ति लापता हो गए, और 79 गैर-न्यायिक मारे गए लापता व्यक्तियों के शवों की पहचान की गई। इसके अलावा, अन्य 58 के बरामद शव पहचानने योग्य नहीं थे, माना जाता है कि वे जबरन लापता होने के शिकार थे। इसके अलावा, ज्ञापन में कहा गया है कि पाकिस्तान बलूचिस्तान में बिना गवाहों के युद्ध छेड़ रहा है क्योंकि बलूचिस्तान अंतरराष्ट्रीय मीडिया और मानवाधिकार संगठनों के लिए एक अघोषित नो-गो क्षेत्र रहा है। यहां तक कि जिन दानी देशों के चंदे पर पाकिस्तान टिका है, उनके राजनयिक भी बलूचिस्तान के अंदरूनी हिस्से में नहीं जा सकते।

बलूच स्वतंत्रता आंदोलन

पाक-चीन सांठगांठ द्वारा बलूचिस्तान के क्रूर औपनिवेशीकरण के जवाब में, विभिन्न स्थानीय राजनीतिक दलों और बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) के रूप में जाने जाने वाले स्थानीय सशस्त्र राष्ट्रवादी समूह से कड़ी प्रतिक्रिया मिली है। पाक सेना के साथ-साथ चीनी हितों पर अब एक के बाद एक जवाबी हमले हो रहे हैं। । 2022 में तीन घटनाएं हुई जो वहां के हालात की ओर संकेत करती हैं। 25 दिसंबर को, जब बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने तुरबत, कहन, ग्वादर और क्वेटा शहरों में पांच जगह एक साथ बमों से हमले किए जिसमें कम से कम छह पाकिस्तानी सुरक्षाकर्मी मारे गए।

1 अगस्त को, एक पाकिस्तानी सैन्य हेलीकाॅप्टर दक्षिण-पश्चिमी बलूचिस्तान में दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें एक मेजर जनरल और लेफ्टिनेंट जनरल सहित छह वरिष्ठ अधिकारी मारे गए। पाकिस्तानी सेना ने दुर्घटना के लिए प्रतिकूल मौसम को जिम्मेदार ठहराया; हालांकि, अगले दिन, बलूच नेशनल फ्रीडम फ्रंट ने एक बयान पोस्ट किया, जिसमें दावा किया गया कि उन्होंने हेलीकाॅप्टर को गिराने के लिए विमान-विरोधी हथियार का इस्तेमाल किया। 26 अप्रैल, 2022 को बलूच क्रांतिकोरियों अलगाववादियों से जुड़ी शैरी बलूच कराची विश्वविद्यालय में कन्फ्यूशियस संस्थान में गईं और एक आत्मघाती बम विस्फोट में तीन चीनी शिक्षकों और एक पाकिस्तानी की जान चली गई।

शैरी बलूच बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) से संबद्ध पहली महिला बलूच आत्मघाती हमलावर थी। यह बलूच क्रांतिकारियों की क्षमताओं में गंभीर वृद्धि का संकेत देता है। बलूचियों को उनकी इच्छाओं के खिलाफ जबरन पाकिस्तान के साथ रखा गया है लेकिन  बलूचिस्तान एक स्वतंत्र राष्ट्र बनने की ओर तेजी से बढ़ रहा है।  बलूचिस्तान के बाद अगला ऐसा राज्य सिंध हो सकता है जो अलग स्वतंत्र  देश बनने की ओर बढ़ेगा। और यही पाकिस्तान  के अंत  की शुरूआत भी होगी।

(यह लेखक के निजी विचार हैं। लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और कई पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं)


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