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जॉर्ज सोरोस और चीनी जासूसी तंत्र रहे हैं करीबी कॉमरेड: अरुण आनंद
उन्होंने पहली बार 1984 में चीन में अपनी दुकान स्थापित करने के लिए उस समय के चीनी मूल के चर्चित लेखक लियांग हेंग की पहचान की और उन्हें चुना।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 1 year ago
अरुण आनंद, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और स्तम्भकार।
अमेरिका आधारित विवादास्पद अरबपति जॉर्ज सोरोस और चीनी की प्रमुख जासूसी एजेंसी सुरक्षा राज्य मंत्रालय (एमएसएस) ने 1980 के दशक में एक साथ मिलकर काम किया है। सोरोस ने आर्थिक प्रणाली सुधार संस्थान (ईएसआरआई) और चाइना इंटरनेशनल कल्चर एक्सचेंज सेंटर (सीआईसीईसी) नामक संगठनों के माध्यम से एमएसएस को पर्याप्त धन उपलब्ध कराया था। 1980 के दशक में सोरोस चीन में घुसपैठ करने के लिए पश्चिमी हितों को बचाने की आड़ में चीनी खुफिया नेटवर्क और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष आकाओं के साथ घनिष्ठ साझेदारी करके 'दोहरा खेल' खेल रहे थे। इसका कारण स्पष्ट था। वह 1980 के दशक में चीन की आर्थिक वृद्धि से फायदा उठाने के लिए वहां के शासन तंत्र में अपनी पैठ बनाना चाहते थे। लेकिन 1989 के बाद चीनी शासन में बदलाव के साथ यह साझेदारी टूट गई।
सोरोस द्वारा स्थापित संस्था 'चाइना फंड' के कई प्रतिनिधियों को 1989 में तियानमेन स्क्वायर नरसंहार के बाद चीनी अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। चीनी अधिकारियों ने उन पर अमेरिकी गुप्तचर संस्था सेंट्रल इंटेलिजेंस (सीआईए)के लिए काम करने का आरोप लगाया। सोरोस ने 1980 के दशक में चीन की ओर रुख करना शुरू किया। उन्होंने पहली बार 1984 में चीन में अपनी दुकान स्थापित करने के लिए उस समय के चीनी मूल के चर्चित लेखक लियांग हेंग की पहचान की और उन्हें चुना। हेंग अपने संस्मरण 'सन ऑफ़ द रेवोल्यूशन' को प्रकाशित करने के बाद प्रसिद्ध हुए थे, जो इस बात का व्यक्तिगत लेखा-जोखा था कि कैसे चीन पश्चिम के लिए दरवाजे खोल रहा था और किस प्रकार चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा नियमित अंतराल पर वैचारिक शुद्धि के नाम पर अत्याचार किए जाते हैं।
लियांग ने सोरोस को चीनी सत्ता तंत्र के महत्वपूर्ण लोगों से जोड़ा। इस पूरी पहल के पीछे बहाना यह था कि सोरोस चीन को सुधारों को अंजाम देने में मदद करना चाहते थे। उस समय तक सोरोस'ओपन सोसाइटी फ़ाउंडेशन्स' नामक अपने एक गैर सरकारी संगठन की स्थापना कर चुके थे। यह संस्था गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के एक जटिल तंत्र के माध्यम से विभिन्न देशों में तख्तापलट, राजनीतिक उथल-पुथल और अराजकता के लिए धन तथा अन्य संसाधन उपलब्ध करवाती है। लेकिन इस तथ्य को देखते हुए कि चीन में दांव बहुत बड़ा है और मोटा मुनाफा कमाने की पूरी संभावना है, सोरोस ने एक अलग इकाई स्थापित करने का फैसला किया जो केवल चीन में काम करेगी।
1986 में, सोरोस ने 10 लाख अमेरिकी डॉलर के साथ 'चाइना फंड' की स्थापना की। लियांग के नेटवर्क के माध्यम से, चाइना फंड ने शुरू में एक चीनी थिंक टैंक ईएसआरआई के साथ भागीदारी की। अक्टूबर 1986 में, सोरोस ने बीजिंग के दियाओयुताई स्टेट गेस्टहाउस में एक समारोह में औपचारिक रूप से चाइना फंड की चीनी धरती पर शुरूआत की। यह सोरोस की पहली चीन की यात्रा थी। सोरोस ने ईएसआरआई के माध्यम से चीन के प्रमुख नेता झाओ जियांग से संपर्क जोड़ा। जियांगअगले साल पार्टी के महासचिव बने। झाओ के निजी सचिव, बाओ टोंग, भी चाइना फंड को पूरा समर्थन दे रहे थे। चीनी नौकरशाही को स्पष्ट संकेत था कि चाइना फंड-ईएसआरआई संयुक्त उद्यम की मदद करनी है।
सुधारवादी आर्थिक नीतियों को आकार देने में चीन की मदद करने के बहाने के पीछे, चाइना फंड ने बहुत तेजी से अपना जाल फैलाना शुरू किया।
अपनी स्थापना के एक साल के भीतर, इसने बीजिंग में एक कलाकार क्लब और तियानजिन में नानकाई विश्वविद्यालय में एक शैक्षणिक इकाई की स्थापना की। चीन पहुंचने के पहले दो वर्षों के भीतर, सोरोस के चाइना फंड ने कम से कम 200 प्रस्तावों के लिए भारी अनुदान दिया। हालाँकि, जैसे ही फंड ने कुख्यात 'सांस्कृतिक क्रांति' जैसे संवेदनशील विषयों पर अनुसंधान के लिए प्रस्तावों को स्वीकार किया चीनी आधिकारिक हलकों में खतरे की घंटी बजने लगी। चाइना फंड के बारे में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की शिकायतों के बाद झाओ जियांग ने एक नए संगठन चाइना इंटरनेशनल कल्चर एक्सचेंज सेंटर को सोरोस के साथ जोड़ा। ईएसआरआई की जबह अब चाइना इंटरनेशनल कल्चर एक्सचेंज सेंटरसाआईसी को सोरोस के इस संयुक्त उद्यम का नियंत्रण सौंप दिया गया।
चाइना इंटरनेशनल कल्चर एक्सचेंज सेंटर औपचारिक तौर पर चीनी संस्कृति मंत्रालय का हिस्सा है पर वास्तव में यह चीनी जासूसी नेटवर्क का एक प्रमुख अंग है और चीन की शीर्ष जासूसी एजेंसी एसएसएस के लिए काम करता है। सोरोस ने फरवरी 1988 में एक चीन के दिग्गज जासूस और चीनी जासूसी एजेंसी के वरिष्ठतम अधिकारियों में शुमार किए जाने वाले यू एंगुआंग के साथ एक संशोधित समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए चीन की यात्रा की। यह स्वीकार करना बहुत भोलापन होगा कि सोरोस इस 'खुले रहस्य' के बारे में नहीं जानते थे कि यू कौन हैं तथा जिस संगठन के साथ वह काम कर रहे हैं वी चीन के गुप्तचर नेटवर्क का हिस्सा है। 1989 तक सोरोस के पैसे से चाइना इंटरनेशनल कल्चर एक्सचेंज सेंटर ने अपने कार्यक्रम किए। ये कार्यक्रम उसकी जासूसी गतिविधियों का हिस्सा थे।
इस प्रकार सोरोस ने चीन एजेंसियों की फंडिंग की, लेकिन 1989 में तियानमान चौक पर हुए नरसंहार के बाद सोरोस के हितैषी झाओ और बो सत्ता से बाहर हो गए। सोरोस के चाइना फंड के कुछ लोगों को सीआईए के लिए जासूसी करने के आरोप में चीनी एजेंसयों ने हिरासत में भी लिया। सोरोस, इन बदलते हालात में, रोतों—रात चाइना फंड बंद कर वहां से भाग खड़े हुए। उन्होंने इस बात की परवाह नहीं की कि चीनी सरकार चाइना फंड से जुड़े लोगों को जेल में डाल रही है। लोकतंत्र की दुहाई देने वाले सोरोस ने न केवल अपने साथ काम करने वालों को मुश्किल में डाला बल्कि वह इस दुनिया के सबसे डरावने अधिनायकवादी तंत्र के साथ हाथों में हाथ डालकर न केवल काम कर रहे थे बल्कि उनकी जासूसी एजेंसियों को अपना पैसा भी उपलब्ध करवा रहे थे। लब वहां दाल गलनी बंद हो गई तो वे चीन के आलोचक हो गए और लोकतंत्र की दुहाई देने लगे।
( यह लेखक के निजी विचार हैं )
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