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सरकार बने या न बने लेकिन मजबूत विपक्ष जरूर बनेगा: रजत शर्मा
कहा जा रहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी अपने साथ अखबारों की कुछ कतरनें लेकर गए थे।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 1 year ago
रजत शर्मा, एडिटर-इन-चीफ, इंडिया टीवी।
पटना में 15 बड़े विपक्षी दलों की बैठक में यह सहमति हुई कि 2024 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी और बीजेपी को हराने के लिए सभी पार्टियां मिलकर लड़ेंगी। लेकिन आम आदमी पार्टी के नेता साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस से पहले उठ कर चले गये। बाद में आम आदमी पार्टी ने अपने बयान में कहा कि वो इस गठबंधन का तब तक हिस्सा नहीं बनेगी, जब तक कांग्रेस दिल्ली अध्यादेश का सार्वजनिक रूप से विरोध नहीं करती।
सूत्रों के मुताबिक, मीटिंग शुरू होते ही केजरीवाल ने केंद्र के अध्यादेश का मुद्दा उठाया और कांग्रेस से इसका विरोध करने को कहा। ये सुनते ही उमर अब्दुल्ला बीच में बोल पड़े। उमर अब्दुल्ला ने अरविंद केजरीवाल से आर्टिकल 370 पर अपनी पार्टी का रुख साफ करने को कहा।
उमर अब्दुल्ला ने केजरीवाल से पूछा कि आर्टिकल 370 के मुद्दे पर उन्होंने विपक्ष का साथ क्यों नहीं दिया। कहा जा रहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी अपने साथ अखबारों की कुछ कतरनें लेकर गए थे। खड़गे ने केजरीवाल से पूछा कि मीटिंग से ठीक एक दिन पहले उनकी पार्टी की तरफ से इस तरह के आपत्तिजनक बयान क्यों दिए गए। मीटिंग में मौजूद कांग्रेस महासचिव के सी वेणुगोपाल ने कहा कि ये तो बिल्कुल ऐसा ही है जैसे कनपटी पर पिस्टल रखकर फैसला करने को कहा जाए।
राहुल गांधी ने कुछ नहीं कहा। एक बात समझने की है कि केजरीवाल के लिए इस अध्यादेश को संसद में हराना बहुत जरूरी है क्योंकि अगर ये बिल पास हो जाता है तो दिल्ली में अफसरों की नियुक्ति का अधिकार केंद्र सरकार के पास होगा और केजरीवाल कुछ नहीं कर पाएंगे। लेकिन कांग्रेस की परेशानी ये है कि दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस के स्थानीय नेता किसी कीमत पर आम आदमी पार्टी के साथ नहीं जाना चाहते। उन्हें लगता है कि अगर पंजाब और दिल्ली में कांग्रेस को पुनर्जीवित करना है तो आम आदमी पार्टी से लड़ना होगा और वो कोई ऐसा काम नहीं करना चाहते जिससे केजरीवाल और मजबूत हों।
ये समस्या सिर्फ केजरीवाल और राहुल गांधी के बीच में नहीं है। इस तरह की स्थानीय समस्या हर नेता और हर पार्टी के साथ है। पटना में जो नेता इकट्ठे हुए उनका तर्क है कि मोदी तानाशाह हैं, मोदी ने लोकतंत्र को खत्म कर दिया है, देश को बचाना है, संविधान को बचाना है, इसलिए विरोधी दलों को साथ आना है, मिलकर मोदी को हराना है।
अगर बीजेपी की बात सुनें, तो लगेगा पटना में जितने नेता इकट्ठा हुए, शरद पवार और बेटी सुप्रीया सुले, लालू और बेटे तेजस्वी, उद्धव और बेटे आदित्य - ये सब अपनी विरासत को बचाने के लिए खड़े हैं।
बीजेपी का कहना है कि इन नेताओं को देश के संविधान से कुछ लेना देना नहीं है। चाहे राहुल गांधी हों, स्टालिन हों, महबूबा हों, अखिलेश हों, हेमंत सोरेन हों या उमर अब्दुल्ला- ये सब अपने-अपने पिता श्री की पार्टियां संभाल रहे हैं। बीजेपी कहती है ये देश बचाने के लिए नहीं, अपने परिवारों को बचाने के लिए निकले हैं लेकिन मुझे लगता है कि इन सब नेताओं को जोड़ने वाला फैविकोल कुछ और है।
एक चीज कॉमन है जिसने इन नेताओं को सारे मतभेद भुलाकर इकट्ठे होने पर मजबूर कर दिया, वो है ईडी, सीबीआई और आईटी के केस। ये सारे नेता प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी न किसी केस में फंसे हैं, कुछ जमानत पर हैं, कुछ के साथी जेल में हैं और बाकी सब जांच के दायरे में हैं।
ईडी और सीबीआई के केस ने इन नेताओं के आत्मसम्मान पर गहरी चोट पहुंचाई है। मोदी सरकार आने से पहले भी केस होते थे पर उनकी संख्या कम थी। कोई न कोई किसी न किसी नेता को बचा लेता था, जांच होती थी, कोर्ट में पेशी होती थी, पर जेल जाने का डर नहीं होता था।
आज 15 पार्टियों के जो 30 नेता पटना में साथ साथ दिखाई दिए, उनमें से हर किसी के दो चार करीबी अभी भी जेल में हैं। सब जानते हैं कि जब तक मोदी सरकार में हैं, बचना मुश्किल है। जो बीजेपी में शामिल हो सकते थे, वो चले गए। जो जा नहीं पाए, वो विरोधी दलों की मुहिम में लगे हैं।
ये चोट खाए हुए घायल सेनापतियों का गठबंधन है। अगर ये गठबंधन बना रहा, इसका असर तो जरूर होगा। आज की तारीख में लगता है कि ये लोग सरकार तो नहीं बना पाएंगे, लेकिन कम से कम एक मजबूत विपक्ष जरूर बन पाएगा।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
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