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क्या पुरानी पेंशन स्कीम यानी OPS का खेल खत्म? पढ़िए इस सप्ताह का 'हिसाब किताब'

रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों को OPS की जरूरत नहीं है।

समाचार4मीडिया ब्यूरो 9 months ago

मिलिंद खांडेकर, मैनेजिंग एडिटर, तक चैनल्स, टीवी टुडे नेटवर्क।

पुरानी पेंशन स्कीम यानी OPS की बहाली की माँग को लेकर पिछले दिनों की घटनाएँ महत्वपूर्ण रही हैं। सरकारी कर्मचारियों को फिर OPS दिलाने का वादा करने वाली कांग्रेस तीन हिंदी भाषी राज्यों में चुनाव हार गई। अब केंद्र सरकार ने संसद को बता दिया कि केंद्रीय कर्मचारियों को OPS देने का कोई इरादा नहीं है। विपक्ष की कुछ राज्य सरकारों ने OPS लागू करने के लिए नेशनल पेंशन स्कीम (NPS) में जमा पैसे मांगे हैं, लेकिन कानून के हिसाब से यह पैसे लौटा नहीं सकते हैं। NPS में जमा पैसे नहीं मिलेंगे तो जिन सरकारों ने OPS लागू करने की घोषणा कर दी है उनके हाथ बंध जाएँगे।  

चुनाव नतीजों और संसद में सरकार के बयान के अलावा दो और बातें महत्वपूर्ण हैं। रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों को OPS की ज़रूरत नहीं है। उनके लिए एक बड़े डायरेक्ट ट्रांसफर करने की अभी जरूरत नहीं है। सरकारी कर्मचारी आर्थिक रूप से ठीक हैसियत रखते हैं। यहाँ यह नोट करना ज़रूरी है कि राजन ने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में भाग लिया था। वो OPS पर कांग्रेस से सहमत नहीं। इसके बाद रिज़र्व बैंक ने राज्यों की वित्तीय स्थिति पर रिपोर्ट में फिर कह दिया कि OPS लागू करने से सरकारों पर बोझ बढ़ेगा। जनता के विकास कार्यों के लिए पैसा नहीं बचेगा।

इन सभी घटनाओं का निचोड़ है कि सरकारी कर्मचारियों को OPS मिलना मुश्किल हो गया है। इसमें सबसे बड़ी अड़चन है The Pension Fund Regulatory & Development Authority (PFRDA), ये पेंशन सेक्टर की रेग्युलेटर संस्था है। नेशनल पेंशन स्कीम (NPS) में सरकारी कर्मचारियों के पैसे 2004 से जमा हो रहे हैं। राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश की सरकारों ने पुराने पैसे माँगने के लिए PFRDA को चिट्ठी लिखी थी। उसने पेंशन क़ानून का हवाला देकर पैसे लौटाने से मना कर दिया। अब केंद्र सरकार ने भी संसद में कह दिया है कि पहले से जमा पैसा नहीं लौटाया जा सकता है। अब राज्य सरकार नए ज्वाइन हो रहे कर्मचारियों को तो OPS दें सकती हैं लेकिन 2004 के बाद से जिन्होंने ज्वाइन किया है उन्हें OPS नहीं मिल सकेगा।

OPS को 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने ख़त्म कर दिया था। इस स्कीम में कर्मचारियों को उनकी आख़िरी सैलरी की 50% रक़म ज़िंदगी भर पेंशन मिलती थी। इससे सरकारी ख़ज़ाने पर बोझ पड़ता था। NPS लागू किया गया। तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के अलावा बाक़ी राज्यों में भी स्कीम लागू हो गई। कर्मचारी अपनी सैलरी का 10% NPS में हर महीने जमा करता है जबकि सरकार 14% देती है। NPS के पैसे बाज़ार में लग जाते हैं। कर्मचारी शिकायत करने लगे कि अब उन्हें 38% तक ही पेंशन मिल रही है। रिटर्न बाज़ार पर निर्भर है। इस कारण OPS लागू करने की माँग ने ज़ोर पकड़ा। कांग्रेस और बाक़ी विपक्ष ने पिछले कुछ साल से इसे हवा दी। अब हवा निकल गई है।

सरकारी कर्मचारियों को अब केंद्र सरकार की कमेटी की रिपोर्ट का इंतज़ार है। ऐसी खबरें छपी है कि सरकार पेंशन के लिए मिनिमम गारंटी देगी। मान लीजिए कि आख़िरी सैलरी का 40% पेंशन में मिलेगा। बाज़ार का रिटर्न अगर 36% है तो बाक़ी पैसा सरकार देगी। इससे सरकारों पर बोझ कम पड़ेगा और कर्मचारियों को निश्चित रिटर्न की गारंटी रहेगी। ये कमेटी हिमाचल प्रदेश में बीजेपी की हार के बाद बनी थी, अब केंद्र सरकार को कोई जल्दी नहीं है।  

(वरिष्ठ पत्रकार मिलिंद खांडेकर 'टीवी टुडे नेटवर्क' के 'तक चैनल्स' के मैनेजिंग एडिटर हैं और हर रविवार सोशल मीडिया पर उनका साप्ताहिक न्यूजलेटर 'हिसाब किताब' प्रकाशित होता है।)


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