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क्या सरकार जीएसटी के आंकड़े छिपा रही है? पढ़िए इस सप्ताह का 'हिसाब-किताब'

1 जुलाई को गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स (GST) लागू होकर 7 साल हो गए। 2017 से पहले केंद्र और राज्य सरकारें अलग अलग टैक्स वसूली करते थे। अब सामान हो या सर्विस दोनों पर एक ही टैक्स GST लगता है।

समाचार4मीडिया ब्यूरो 3 months ago

मिलिंद खांडेकर, मैनेजिंग एडिटर, तक चैनल्स, टीवी टुडे नेटवर्क।

GST कलेक्शन के आँकड़े को लेकर केंद्र सरकार हर महीने की पहली तारीख़ को ढोल पिटतीं थीं। हर महीने रिकॉर्ड कलेक्शन हो रहा था। सरकार यह बताया करती थी कि अर्थव्यवस्था की स्थिति अच्छी है। सामान और सर्विस की खपत बढ़ रही हैं इसलिए सरकार को ज़्यादा टैक्स मिल रहा है, लेकिन इस एक जुलाई को यह आँकड़ा सूत्रों ने जारी किया, सरकार ने नहीं। जून में 1 लाख 74 हज़ार करोड़ रुपये टैक्स जमा हुआ है, सरकार ने कोई प्रेस नोट नहीं निकाल ना ही मंत्रियों ने ट्विट किए। ऐसा क्यों हुआ?

1 जुलाई को गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स (GST) लागू होकर 7 साल हो गए। 2017 से पहले केंद्र और राज्य सरकारें अलग अलग टैक्स वसूली करते थे। केंद्र सरकार सामान बनाने वाली फ़ैक्ट्री पर एक्साइज ड्यूटी लगाती। फिर हर राज्य उस सामान को बेचने वाले पर सेल्स टैक्स लगाता था। इस कारण किसी भी सामान या सर्विस के दाम देश के अलग-अलग इलाक़ों में अलग-अलग होते थे।

अब सिर्फ़ शराब, पेट्रोल डीज़ल GST के दायरे से बाहर हैं, इसलिए इनके दाम देश भर में कम ज़्यादा है। सर्विस टैक्स केंद्र सरकार अलग लेती थी जैसे रेस्टोरेन्ट में खाना खाने पर, फ़ोन के बिल पर। अब सामान हो या सर्विस दोनों पर एक ही टैक्स GST लगता है। केंद्र सरकार यह टैक्स जमा करती है, फिर राज्यों को उनका हिस्सा बाँट देती है।

केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि में से एक है देश भर में GST लागू करना। इसका आइडिया प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में आया था। मनमोहन सिंह की सरकार ने इसको आगे बढ़ाया लेकिन राज्यों के विरोध के कारण लागू नहीं हो पाया। GST के कारण राज्यों का टैक्स लगाने अधिकार कम हो गया है, स्वायत्तता कम हुई है।

मोदी सरकार ने राज्यों को गारंटी देकर मनाया कि उनकी आमदनी में कमी की भरपाई की जाएगी। सभी राज्यों और केंद्र सरकार को मिलकर GST कौंसिल बनीं हैं जो रेट घटाने बढ़ाने के फ़ैसले करती है। कोरोनावायरस के समय कलेक्शन में उतार चढ़ाव आया। पिछले साल भर से इस व्यवस्था में स्थिरता आयी है। कलेक्शन भी लगातार बढ़ रहा है।

पहली जून तक सरकार GST का डंका बजा रही थी लेकिन जुलाई में चुप हो गई। अभी तक इसका कोई आधिकारिक जवाब नहीं आया है। मीडिया में खबरें छपी है कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के कारण यह फ़ैसला किया गया है। ऐसा फ़ीडबैक मिला है कि लोगों में GST को लेकर नाराज़गी है।  लोग महंगाई से परेशान हैं, उस घाव पर GST का आँकड़ा नमक छिड़कने का काम करता है।

अगर यह बात सही है तब भी GST के आँकड़े छिपाने से सरकार को क्या हासिल होगा? लोग अगर टैक्स से परेशान हैं तो टैक्स के आँकड़े दबाने के बजाय उन्हें टैक्स में राहत देनी चाहिए। अब नज़र बजट पर है। इसमें GST के रेट तो घट बढ़ नहीं सकते हैं लेकिन इनकम टैक्स में राहत की उम्मीद बनी हुई है।

 (वरिष्ठ पत्रकार मिलिंद खांडेकर 'टीवी टुडे नेटवर्क' के 'तक चैनल्स' के मैनेजिंग एडिटर हैं और हर रविवार सोशल मीडिया पर उनका साप्ताहिक न्यूजलेटर 'हिसाब किताब' प्रकाशित होता है।)


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