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भारत की न्याय व्यवस्था को लेकर पूर्वाग्रही देशी विदेशी हमलों पर नियंत्रण जरूरी: आलोक मेहता
इस मुद्दे पर चुनावी दौर में सार्वजनिक बहस स्वाभाविक है। लेकिन अमेरिकी प्रशासन और उनके अधिकारियों को अपने दामन, घर आँगन को देखना चाहिए।
आलोक मेहता 6 months ago
आलोक मेहता, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और स्तंभकार।
भारत की कड़ी आपत्तियों के बावजूद अमेरिकी प्रशासन ने पिछले दिनों दिल्ली की आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविन्द केजरीवाल पर भ्र्ष्टाचार और आर्थिक अपराध के गंभीर मामले में गिरफ्तारी और इनकम टैक्स का करोड़ों रुपया नहीं चुकाने पर आय कर विभाग द्वारा राहुल गाँधी की कांग्रेस पार्टी पर लगे जुर्माने के क़ानूनी मामलों पर अकारण न्याय की दुहाई देने वाले वक्तव्य दिए। इसी तरह इन राजनीतिक पार्टियों के समर्थक वकीलों के एक वर्ग ने कोर्ट परिसर में विरोध के प्रयास किए और सम्पूर्ण न्याय पालिका पर विश्वसनीयता के सवाल उठाए। तब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को भी भारतीय न्याय व्यवस्था को विश्व में सर्वश्रेष्ठ बताते हुए समर्थन में अपना मत व्यक्त करना पड़ा। दूसरी तरफ देश ही नहीं अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालयों में प्रतिष्ठित नामी क़ानूनवेत्ता हरीश साल्वे और करीब 600 वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर न्याय पालिका का अपमान करने वाले वकीलों के वर्ग या राजनीतिक संगठनों पर नियंत्रण का आग्रह किया है।
इस मुद्दे पर चुनावी दौर में सार्वजनिक बहस स्वाभाविक है। लेकिन अमेरिकी प्रशासन और उनके अधिकारियों को अपने दामन , घर आँगन को देखना चाहिए। एक अंतर्राष्ट्रीय विधि संस्थान की हाल की एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में अमेरिकियों का विश्वास पिछले दो वर्षों में नए निचले स्तर पर पहुंच गया है, केवल लगभग 40% ने अपनी अदालतों पर विश्वास व्यक्त किया है। फिर सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायाधीशों को भव्य उपहारों और यात्रा से लाभ मिलने पर कई विवादों के मद्देनजर एक स्वैच्छिक नैतिकता संहिता को अपनाया। ऐसा प्रतीत होता है कि न्यायाधीशों के ख़िलाफ़ धमकियाँ पहले से ही आम हो गई हैं। ब्लूमबर्ग लॉ द्वारा सूचना की स्वतंत्रता अनुरोध के अनुसार, 2022 में संघीय न्यायाधीशों को 311 गंभीर खतरों का सामना करना पड़ा , जो 2019 में 178 से अधिक है।
वर्तमान में, एफबीआई और डेनवर पुलिस कोलोराडो सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के खिलाफ खतरों की जांच कर रहे हैं जिन्होंने फैसला सुनाया कि ट्रम्प मतदान के लिए अयोग्य थे। अटॉर्नी जनरल मेरिक गारलैंड ने कहा, हम जनता की सेवा करने वालों के खिलाफ खतरों में गहरी चिंताजनक वृद्धि देख रहे हैं। न्याय विभाग ने हाल ही में चुनाव कार्यकर्ताओं, कांग्रेस और सेना के सदस्यों, एफबीआई एजेंटों और संघीय न्यायाधीशों-जिसमें सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश भी शामिल हैं, के खिलाफ हिंसक धमकियां देने के लिए व्यक्तियों की जांच की और उन पर प्रकरण दर्ज किए हैं।
अमेरिकी आपराधिक और नागरिक कानूनी प्रणालियों को 142 देशों में शीर्ष तीसरे स्थान पर रखा गया है, लेकिन विभिन्न मानदंडों पर खराब प्रदर्शन से न्याय वितरण में देश की समग्र स्थिति में गिरावट आई है। इनमें आपराधिक न्याय और नागरिक न्याय में समान व्यवहार शामिल है , जहां अमेरिका क्रमशः 109वें और 124वें स्थान पर है, और नागरिक न्याय की पहुंच और सामर्थ्य, जहां अमेरिका 142 में से 115वें स्थान पर है। उच्च आय वाले देशों और वैश्विक स्तर पर नागरिक न्याय की पहुंच और सामर्थ्य के मामले में अमेरिकी स्कोर औसत से नीचे है। उच्च आय वाले देशों और वैश्विक स्तर पर नागरिक न्याय की पहुंच और सामर्थ्य के मामले में अमेरिकी स्कोर औसत से नीचे है।
एपी-एनओआरसी सर्वेक्षण से पता चलता है कि जब सत्ता के वैध हस्तांतरण में विश्वास की बात आती है तो संयुक्त राज्य अमेरिका वर्तमान में डब्ल्यूजेपी रूल ऑफ लॉ इंडेक्स में 142 देशों में से 37वें स्थान पर है। 2016 की तुलना में इस सूचकांक संकेतक पर अमेरिका का प्रदर्शन 10% कम है। राष्ट्रपति चुनाव में, कुछ सरकारी अधिकारियों ने कानून का पालन करने और चुनाव परिणामों को प्रमाणित करने से इनकार कर दिया, और 10 ऐसे उदाहरणों की 2023 प्रोपब्लिका समीक्षा में पाया गया कि इसमें शामिल अधिकांश अधिकारियों को किसी जवाबदेही का सामना नहीं करना पड़ा। गैर-पक्षपातपूर्ण अभियान कानूनी केंद्र के वरिष्ठ उपाध्यक्ष पॉल एम. स्मिथ के अनुसार, आधिकारिक चुनाव कर्तव्य में कुछ लापरवाही इस वर्ष फिर से उत्पन्न हो सकती है।
वे कहते हैं, लेकिन इन दिनों मेरे दिमाग में प्राथमिक चिंता लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को बाधित करने के प्रयास में हिंसा का रणनीतिक उपयोग और हिंसा की धमकियां हैं। ये कई रूप ले सकते हैं। हमारे पास पहले से ही राज्य के सचिवों और अन्य चुनाव कार्यकर्ताओं के खिलाफ धमकियां हैं। मैं लोगों को मतदान करने से रोकने और मतगणना प्रक्रियाओं में व्यवधान डालने के प्रयासों की कल्पना कर सकता हूं। यह सब बहुत चिंताजनक है। सार्वजनिक धर्म अनुसंधान संस्थान के एक हालिया सर्वेक्षण से पता चला है कि 23% अमेरिकी अब मानते हैं कि "हमारे देश को बचाने के लिए सच्चे अमेरिकी देशभक्तों को हिंसा का सहारा लेना पड़ सकता है।
2020 के चुनाव परिणामों के कांग्रेस के प्रमाणीकरण और दर्जनों निरर्थक अदालती चुनौतियों के बावजूद डोनाल्ड ट्रम्प, रिपब्लिकन नेता हैं, और 64% रिपब्लिकन अभी भी परिणाम पर विवाद करते हैं। तो, क्या होगा यदि 2024 में बिडेन को विजेता घोषित किया जाता है और ट्रम्प फिर से परिणामों को अस्वीकार कर देते हैं? 2024 में, संघीय और राज्य अदालतें पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प के खिलाफ 91 आरोपों पर विचार कर रही हैं , और सुप्रीम कोर्ट गर्भपात दवा, दूसरे संशोधन और नियामक प्रवर्तन पर विवादास्पद मामलों का फैसला करेगा। ऐसे कई तरीके हैं जिनसे उच्च न्यायालय 2024 के चुनाव परिणामों में भी शामिल हो सकता है।
वर्ल्ड जस्टिस प्रोजेक्ट के कार्यकारी निदेशक एलिजाबेथ एंडरसन कहते हैं, किसी भी समुदाय के भीतर कानून का शासन बनाए रखने के लिए कानून का स्वैच्छिक अनुपालन मौलिक है। जब अदालतों में विश्वास खत्म हो जाता है, तो लोग न्यायिक फैसलों का अनादर करने या अपने विवादों को सुलझाने के लिए धमकियों, जबरदस्ती और हिंसा का इस्तेमाल करने की अधिक संभावना रखते हैं। सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ को देशभर के प्रमुख वकीलों ने चिट्ठी लिखी।
इस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पार्टी पर भी निशाना साधा है। उन्होंने कहा, दूसरों को डराना-धमकाना कांग्रेस की पुरानी संस्कृति है. करीब 50 साल पहले कांग्रेस ने बेशर्मी से अपने स्वार्थों को दुनिया के सामने रखा था। पीएम मोदी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी देश के प्रति किसी भी तरह से प्रतिबद्ध होना नहीं चाहती। प्रधान मंत्री ने जाने-माने वकीलों की चिट्ठी को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर रिपोस्ट करते हुए लिखा, पांच दशक पहले ही कांग्रेस पार्टी ने प्रतिबद्ध न्यायपालिका का आह्वान किया था। वे (कांग्रेस) बेशर्मी से अपने स्वार्थों के लिए दूसरों से प्रतिबद्धता तो चाहते हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी राष्ट्र के प्रति किसी भी प्रतिबद्धता से बचती है।
अब कोई आश्चर्य नहीं कि 140 करोड़ भारतीय उन्हें अस्वीकार कर रहे हैं। 600 से अधिक वकीलों ने प्रधान न्यायाधीश को लिखी चिट्ठी में कहा है कि एक खास ग्रुप का काम अदालती फैसलों को प्रभावित करने के लिए दबाव डालना है, विशेष रूप से ऐसे मामलों में जिनसे या तो नेता जुड़े हुए हैं या फिर जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं। चिट्ठी में कहा गया है कि इनकी गतिविधियां देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने और न्यायिक प्रक्रिया में विश्वास के लिए खतरा है।
इन आरोपों में निश्चित रुप से दम हैं, क्योंकि सरकार विरोधी कुछ नेतानुमा वकील लगातार याचिकाएं लगाते हैं और न्याय पालिका की विश्वसनीयता पर मीडिया में जाकर आरोप लगाते हैं। उनका पिछला रिकॉर्ड इस बात का प्रमाण भी है कि वे जिस पार्टी के नेताओं के भ्रष्टाचार या अन्य अपराधों के बचाव में आते हैं, उस पार्टी के प्रभाव वाले प्रदेश से चुनाव लड़कर सांसद बनने, फिर कानून मंत्री बनने की कोशिश भी करते हैं। इस दृष्टि से जरुरी है कि भारतीय न्याय पालिका तथा लोकतंत्र की मजबूत जड़ों पर करोड़ों लोगों की आस्था की रक्षा के लिए भारत विरोधी गतिविधियों को कड़ाई से नियंत्रित किया जाए।
(यह लेखक के निजी विचार हैं)
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