होम / विचार मंच / जनता के दर्द और प्रगति के पथ प्रदर्शक हैं लोकनायक कर्पूरी ठाकुर: आलोक मेहता

जनता के दर्द और प्रगति के पथ प्रदर्शक हैं लोकनायक कर्पूरी ठाकुर: आलोक मेहता

वर्तमान दौर में कर्पूरी जी के आदर्श अधिक लाभदायक हो सकते हैं। शताब्दी वर्ष में उनके पुण्य स्मरण को आदर्शों के पालन के संकल्प से लिया जाना चाहिए।

आलोक मेहता 8 months ago

आलोक मेहता ,पद्मश्री, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और स्तंभकार।।

सहज, सरल, मृदुभाषी, ईमानदारी की प्रतिमूर्ति, गरीबों तथा वंचितों की सशक्त आवाज एवं कुशल राजनीतिज्ञ रहे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जननायक कर्पूरी ठाकुर। मंडल कमीशन लागू होने से पहले कर्पूरी ठाकुर बिहार की राजनीति में वहां तक पहुंचे, जहां उनके जैसी पृष्ठभूमि से आने वाले व्यक्ति के लिए पहुंचना लगभग असंभव ही था। वे बिहार ही नहीं देश की राजनीति में गरीबों के शीर्ष नेता और प्रेरक रहे। पिछले पचास वर्षों में मुझे पत्रकार के रूप में अनेक प्रादेशिक और राष्ट्रीय नेताओं, मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्रियों से मिलने के अवसर मिले हैं, लेकिन कर्पूरी ठाकुर की तरह गांधीवादी सरल स्वाभाव और ईमानदार शीर्ष नेता देखने को नहीं मिला।

बिहार के नेताओं में भी राज्यपाल रहे सत्यनारायण सिन्हा, भीष्मनारायण सिंह या ललित नारायण मिश्र, जगन्नाथ मिश्र , भागवत झा आज़ाद , केदार पांडे जैसे नेताओं से दिल्ली या पटना में भेंट होती रही, लेकिन 1977 में मुख्यमंत्री के रुप में अथवा बाद में भी प्रतिपक्ष के नेता के रुप में कर्पूरीजी से मिलकर गरीबी , पिछड़ेपन , शिक्षा, हिंदी भाषा, साहित्य ,संस्कृति सहित विभिन्न विषयों पर लम्बी बातचीत कर बहुत अच्छा लगता था। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि अपने से भिन्न विचार वाले अथवा विरोधियों के प्रति उनकी निजी नफरत कभी देखने सुनने को नहीं मिली। कांग्रेस अथवा तत्कालीन जनसंघ से गंभीर विरोध और टकराव के बावजूद उन पार्टियों के नेताओं से अच्छे सम्बन्ध रखने का असाधारण व्यवहार देखने को मिलता था।

वर्तमान दौर में कर्पूरीजी के आदर्श अधिक लाभदायक हो सकते हैं। शताब्दी वर्ष में उनके पुण्य स्मरण को आदर्शों के पालन के संकल्प से लिया जाना चाहिए।
जननायक कर्पूरी ठाकुर भारत के स्वतंत्रता सेनानी,  शिक्षक राजनीतिज्ञ थे। कर्पूरी सरल हृदय के राजनेता माने जाते थे और सामाजिक रूप से पिछड़ी जाति से जुड़े थे, लेकिन उन्होंने राजनीति को जनसेवा की भावना के साथ जिया था। उनकी सेवा भावना के कारण ही उन्हें जननायक कहा जाता है। कर्पूरी ठाकुर बिहार में एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे। 1952 की पहली विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद वे बिहार विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे।

अपने दो कार्यकाल में कुल मिलाकर ढाई साल के मुख्यमंत्रीत्व काल में उन्होंने जिस तरह की छाप बिहार के समाज पर छोड़ी है, वैसा दूसरा उदाहरण नहीं दिखता। ख़ास बात ये भी है कि वे बिहार के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे। 1967 में पहली बार उपमुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म किया। इसके चलते उनकी आलोचना भी ख़ूब हुई लेकिन हक़ीक़त ये है कि उन्होंने शिक्षा को आम लोगों तक पहुंचाया। इस दौर में अंग्रेजी में फेल मैट्रिक पास लोगों का मज़ाक 'कर्पूरी डिविजन से पास हुए हैं' कह कर उड़ाया जाता रहा। इसी दौरान उन्हें शिक्षा मंत्री का पद भी मिला हुआ था और उनकी कोशिशों के चलते ही मिशनरी स्कूलों ने हिंदी में पढ़ाना शुरू किया और आर्थिक तौर पर ग़रीब बच्चों की स्कूल फी को माफ़ करने का काम भी उन्होंने किया था।

वो देश के पहले मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने अपने राज्य में मैट्रिक तक मुफ्त पढ़ाई की घोषणा की थी। उन्होंने राज्य में उर्दू को दूसरी राजकीय भाषा का दर्जा देने का काम किया। 1971 में मुख्यमंत्री बनने के बाद किसानों को बड़ी राहत देते हुए उन्होंने गैर लाभकारी जमीन पर मालगुजारी टैक्स को बंद कर दिया। बिहार के तब के मुख्यमंत्री सचिवालय की इमारत की लिफ्ट चतुर्थवर्गीय कर्मचारियों के लिए उपलब्ध नहीं थी, मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने चर्तुथवर्गीय कर्मचारी लिफ्ट का इस्तेमाल कर पाएं, ये सुनिश्चित किया उस दौर में समाज में उन्हें कहीं अंतरजातीय विवाह की ख़बर मिलती तो उसमें वो पहुंच जाते थे। समाज में एक तरह का बदलाव चाहते थे।

बिहार में जो आज दबे पिछड़ों को सत्ता में हिस्सेदारी मिली हुई है, उसकी भूमिका कर्पूरी ठाकुर ने बनाई थी। 1977 में मुख्यमंत्री बनने के बाद मुंगेरीलाल कमीशन लागू करके राज्य की नौकरियों आरक्षण लागू करने के चलते वो हमेशा के लिए सर्वणों के दुश्मन बन गए, लेकिन कर्पूरी ठाकुर समाज के दबे पिछड़ों के हितों के लिए काम करते रहे। यही नहीं आर्थिक रुप से कमजोर ऊँची जाति के लोगों के लिए और महिलाओं के आरक्षण की पहल उन्होंने की। मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को अनिवार्य बना दिया था।

इतना ही नहीं उन्होंने राज्य सरकार के कर्मचारियों के समान वेतन आयोग को राज्य में भी लागू करने का काम सबसे पहले किया था। युवाओं को रोजगार देने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता इतनी थी कि एक कैंप आयोजित कर 9000 से ज़्यादा इंजीनियरों और डॉक्टरों को एक साथ नौकरी दे दी। शिक्षा व्यवस्था को आम लोगों के बीच पहुंचाने के लिए माध्यमिक शिक्षा को पूर्ण रूप से फ्री कर हर तबके के लोगों के लिए शिक्षा का द्वार खोला। भूमि सुधार जैसे कार्यक्रम एवं मुंगेरी लाल कमीशन की रिपोर्ट को लागू कर पिछड़े एवं अति पिछड़ों वर्गों को सरकारी सेवा में आरक्षण की व्यवस्था लागू करवाया। सामंती अत्याचार से लड़ने के लिए दलितों के हाथों में भी हथियार का लाइसेंस देने की मांग उठायी थी।

वर्षों से चली आ रही वर्ण व्यवस्था एवं जाति प्रथा को समूल नाश के लिए जीवन पर्यंत लड़ाई लड़ते रहे। कर्पूरी ठाकुर बहुमुखी प्रतिभा के धनी नेता थे। वे जितना राजनीति और समाजवादी विचारधारा में पैठे थे, उतना ही साहित्य, कला और संस्कृति में। हर सफ़र में अक्सर किताबों से भरा बस्ता उनके साथ होता था। दिन रात राजनीति में ग़रीब गुरबों की आवाज़ को बुलंद रखने की कोशिशों में जुटे कर्पूरी की साहित्य, कला एवं संस्कृति में काफी दिलचस्पी थी। 1980-81 की बात होगी, पटना में पुस्तकों की एक दुकान पर एक लेखक ने उन्हें हिस्ट्री ऑफ़ धर्मशास्त्र ख़रीदते खुद देखा।

छह खंड वाली किताब उस वक्त तीन-साढ़े तीन हज़ार रुपये की थी। वे पढ़ने का समय निकाल ही लेते थे। उनका अपना प्रशिक्षण समाजवादी विचारधारा में हुआ था। लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, नागरिक स्वतंत्रता, मानवाधिकार जैसे मूलभूत आधुनिक मूल्यों के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता थी। सादगी और अपने पद का अपने परिवार और मित्रों के लिए किंचित भी फायदा नहीं उठाने की उनकी खूबी उनके स्वाभिमानी व्यक्तित्व के अलावा गांधीवादी-समाजवादी धारा से भी जुड़ी थी।  उनकी ‘छोटी’ जाति सहित बहुत-सी बाधाएं उनके रास्ते में आती रहीं, लेकिन उन्होंने अपने राजनीतिक संघर्ष और विचारधारात्मक प्रतिबद्धता से उन बाधाओं का मुकाबला किया। कभी सांप्रदायिक जातिवाद और जातिवादी अस्मितावाद का सहारा नहीं लिया। लिहाजा, वे किसी जाति-विशेष के नेता नहीं, ‘जननायक’ के रूप में प्रतिष्ठित हुए।

स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान खुद कर्पूरी ठाकुर ने ‘हम सोए वतन को जगाने चले हैं’ शीर्षक कविता बनाई थी: “हम सोए वतन को जगाने चले हैं/ हम मुर्दा दिलों को जिलाने चले हैं।/ गरीबों को रोटी न देती हुकूमत,/ जालिमों से लोहा बजाने चले है।/ हमें और ज्यादा न छेड़ो, ए जालिम!/ मिटा देंगे जुल्म के ये सारे नज़ारे।/ या मिटने को खुद हम दीवाने चले हैं/ हम सोए वतन को जगाने चले हैं।’’ यह कविता एक समय समाजवादी आंदोलन के संघर्ष में ‘प्रभात फेरी’ का गीत बन गई थी। यह कविता भी बताती है कि कर्पूरी ठाकुर वंचित-शोषित समूहों के नेता थे।

(यह लेखक के निजी विचार हैं)


टैग्स आलोक मेहता लोकनायक कर्पूरी ठाकुर कर्पूरी ठाकुर
सम्बंधित खबरें

'S4M पत्रकारिता 40अंडर40' के विजेता ने डॉ. अनुराग बत्रा के नाम लिखा लेटर, यूं जताया आभार

इस कार्यक्रम में विजेता रहे ‘भारत समाचार’ के युवा पत्रकार आशीष सोनी ने अब इस आयोजन को लेकर एक्सचेंज4मीडिया समूह के चेयरमैन व एडिटर-इन-चीफ डॉ. अनुराग बत्रा के नाम एक लेटर लिखा है।

1 day ago

हरियाणा की जीत पीएम नरेंद्र मोदी में नई ऊर्जा का संचार करेगी: रजत शर्मा

मोदी की ये बात सही है कि कांग्रेस जब-जब चुनाव हारती है तो EVM पर सवाल उठाती है, चुनाव आयोग पर इल्जाम लगाती है, ये ठीक नहीं है।

2 days ago

क्या रेट कट का टाइम आ गया है? पढ़िए इस सप्ताह का 'हिसाब-किताब'

रिज़र्व बैंक की मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी की बैठक सोमवार से हो रही है। लेकिन बैठक से पहले आयीं ज़्यादातर रिसर्च रिपोर्ट कह रही है कि रेट कट अभी नहीं होगा।

5 days ago

पांच भाषाओं को क्लासिकल भाषा का दर्जा देना सरकार का सुचिंतित निर्णय: अनंत विजय

किसी भी भाषा को जब शास्त्रीय भाषा के तौर पर मानने का निर्णय लिया जाता है तो कई कदम भी उठाए जाते हैं। शिक्षा मंत्रालय इन भाषाओं के उन्नयन के लिए कई प्रकार के कार्य आरंभ करती हैं।

5 days ago

आरएसएस सौ बरस में कितना बदला और कितना बदलेगा भारत: आलोक मेहता

मेरे जैसे कुछ ही पत्रकार होंगे, जिन्हें 1972 में संघ प्रमुख गुरु गोलवरकर जी से मिलने, प्रोफेसर राजेंद्र सिंह जी और के सी सुदर्शनजी से लम्बे इंटरव्यू करने को मिले।

5 days ago


बड़ी खबरें

‘दैनिक भास्कर’ की डिजिटल टीम में इस पद पर है वैकेंसी, जल्द करें अप्लाई

यदि एंटरटेनमेंट की खबरों में आपकी रुचि है और आप मीडिया में नई नौकरी की तलाश कर रहे हैं तो यह खबर आपके लिए काफी काम की हो सकती है।

12 hours ago

इस बड़े पद पर फिर ‘एबीपी न्यूज’ की कश्ती में सवार हुईं चित्रा त्रिपाठी

वह यहां रात नौ बजे का प्राइम टाइम शो होस्ट करेंगी। चित्रा त्रिपाठी ने हाल ही में 'आजतक' में अपनी पारी को विराम दे दिया था। वह यहां एडिटर (स्पेशल प्रोजेक्ट्स) के पद पर अपनी जिम्मेदारी निभा रही थीं।

1 day ago

’पंजाब केसरी’ को दिल्ली में चाहिए एंकर/कंटेंट क्रिएटर, यहां देखें विज्ञापन

‘पंजाब केसरी’ (Punjab Kesari) दिल्ली समूह को अपनी टीम में पॉलिटिकल बीट पर काम करने के लिए एंकर/कंटेंट क्रिएटर की तलाश है। ये पद दिल्ली स्थित ऑफिस के लिए है।

1 day ago

हमें धोखा देने वाले दलों का अंजाम बहुत अच्छा नहीं रहा: डॉ. सुधांशु त्रिवेदी

जिसकी सीटें ज़्यादा उसका सीएम बनेगा, इतने में हमारे यहाँ मान गये होते तो आज ये हाल नहीं होता, जिस चीज के लिए गये थे उसी के लाले पड़ रहे हैं।

1 day ago

भारत के कोहिनूर की तरह श्री रतन टाटा अमर रहेंगे: आलोक मेहता

उद्योगपति रतन टाटा का गुरुवार शाम को पूरे राजकीय सम्‍मान और पारसी रीति-रिवाज के साथ अंतिम संस्‍कार कर दिया। इस मौके पर उद्योग जगत के साथ ही समाज के हर तबके लोग मौजूद थे।

1 day ago