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असभ्य तंत्र नामक भेड़िए से आपको बचाने कौन आएगा मिस्टर मीडिया?
पांच प्रदेशों में चुनाव हैं। कोरोना की तीसरी लहर तेजी से फैल रही है। मासूम निर्वाचन आयोग कर ही क्या सकता है। रैलियों, सभाओं और रोड शो के जरिए प्रचार अभियान पर बंदिश लगा सकता है।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 2 years ago
पांच प्रदेशों में चुनाव हैं। कोरोना की तीसरी लहर तेजी से फैल रही है। मासूम निर्वाचन आयोग कर ही क्या सकता है। रैलियों, सभाओं और रोड शो के जरिए प्रचार अभियान पर बंदिश लगा सकता है। वह उसने कर दिया। कोई दल माने या न माने। उसकी बला से। फिर भी आयोग तो आयोग है। अगर उसने कुछ पाबंदियां लगाई हैं तो उनकी संवैधानिक शक्ल और मर्यादा है। सियासी पार्टियां इसको तोड़ती हैं तो मीडिया उनका वह असंवैधानिक कवरेज भी धड़ल्ले से दिखाता है। ऐसा क्यों होना चाहिए? क्या परदे के पीछे इसमें कोई अपवित्र अनुबंध भी छिपा हुआ है अथवा आपसी होड़ में हम कवरेज के मान्य सिद्धांत भी तोड़ते जा रहे हैं।
यूं खुद को गाहे बगाहे लोकतंत्र का चौथा खंभा कहने में हमें गुरेज नहीं होता, मगर उसकी सेहत को नुकसान पहुंचाने का कोई मौका भी नहीं छोड़ना चाहते। यह लोकतंत्र का तकाजा है कि जब इसके किसी एक स्तंभ को कमजोर करने का षड्यंत्र हो तो शेष स्तंभ मिलकर उसे नाकाम करने का काम करें। मसलन चुनाव के दरम्यान पॉलिटिकल पार्टियां निर्वाचन आयोग के नियमों का मखौल उड़ाते हुए सभाएं करें तो स्वस्थ्य पत्रकारिता कहती है कि वह कवरेज न दिखाया जाए, न प्रकाशित किया जाए और न ही उसका प्रसारण हो। क्योंकि, वह कार्यक्रम लोकतांत्रिक मर्यादाओं और अनुशासन के खिलाफ है।
हम देख रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में घर घर संपर्क के दौरान न मास्क लगाया जा रहा है न शारीरिक दूरी बनाए रखी जा रही है और न पांच व्यक्तियों से अधिक पर रोक वाला नियम माना जा रहा है। बीजेपी के तमाम शिखर नेता इसका उल्लंघन कर रहे हैं और समाजवादी पार्टी के नेता भी पहले दिन से ही हम नहीं सुधरेंगे वाले अंदाज में अपना प्रचार कर रहे हैं। मैदान में डटी दो अन्य पार्टियां बसपा और कांग्रेस अलबत्ता तनिक संयम बरत रही हैं। वे चुनाव आयोग की लाज बचा रही हैं। जब स्पष्ट है कि सत्ता की होड़ में दो दल कायदे कानून तोड़ रहे हैं तो उनकी अवहेलना करते हुए जो अपराध किया जा रहा है, उसे पत्रकारिता के मंचों पर क्यों अवतरित होना चाहिए?
संभव है कि पत्रकारिता में संलग्न कुछ विवेकशील लोग तर्क दें कि कोई घटना आंखों के सामने घट रही हो तो उसका कवरेज नहीं करना भी उचित नहीं है। उन सभी से निवेदन है कि ऐसे में फर्क करना होगा कि पत्रकारों के किसी कदम से जम्हूरियत की कोई इमारत दरक तो नहीं रही है। यदि हां तो एक बार पेशेगत चूक करना ही जायज होगा। अन्यथा जब आप उन तत्वों को बढ़ावा देंगे, जो संवैधानिक मूल्यों को ताक में रख रहे हैं तो सरकार में बैठने के बाद वे भी आपको ताक में रख देंगे और तब आप कितना ही चिल्लाएंगे, उस असभ्य तंत्र नामक भेड़िए से बचाने भी आपको कोई नहीं आएगा मिस्टर मीडिया!
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