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स्टेट बैंक पर भी अब उठ रहे सवाल? पढ़िए इस सप्ताह का 'हिसाब किताब'
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने जानकारी देने के दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगा दी कि बॉन्ड खरीदने वाले और बेचने वालों का डेटा अलग अलग जगहों पर रखा गया है।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 7 months ago
मिलिंद खांडेकर, मैनेजिंग एडिटर, तक चैनल्स, टीवी टुडे नेटवर्क।
स्टेट बैंक सोशल मीडिया पर मजाक का विषय बना हुआ है। चुनावी बॉन्ड का डेटा रिलीज करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ को दो-दो बार सुनवाई करना पड़ी। लोगों ने लिखा कि स्टेट बैंक ने सुप्रीम कोर्ट को भी चक्कर लगवा दिया जैसे बाकी ग्राहकों को लगाना पड़ता है। यह मजाक का विषय नहीं है। सवाल स्टेट बैंक पर भी उठ रहा है कि आखिर किस कारण से वो डेटा देने में देर कर रहा था।
जिस डेटा को मिलाने के लिए स्टेट बैंक तीन महीने का टाइम मांग रहा था, उसे पत्रकारों ने 30 मिनट में मिला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को आदेश दिया कि चुनावी बॉन्ड बंद किए जाएं। ये बॉन्ड बेचने का अधिकार सिर्फ स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को मिला था। कोर्ट ने बैंक से यह भी कहा कि अप्रैल 2019 से बॉन्ड खरीदने और भुनाने वालों की जानकारी 6 मार्च तक को चुनाव आयोग को सौंप दें। चुनाव आयोग हफ़्ते भर में इसे सार्वजनिक कर दे। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने जानकारी देने के दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी लगा दी कि बॉन्ड ख़रीदने वाले और बेचने वालों का डेटा अलग अलग जगहों पर रखा गया है।
एक तरफ 22 हजार एंट्री हैं और दूसरी तरफ भी 22 हजार। इनको मैच करने के लिए 30 जून तक समय चाहिए। स्टेट बैंक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना की याचिका लग गई। सुप्रीम कोर्ट ने 11 मार्च को बैंक की अर्ज़ी खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि जानकारी अगले दिन तक सार्वजनिक कर दें। स्टेट बैंक ने जानकारी सार्वजनिक कर दी लेकिन बॉन्ड का Alpha Numeric Number नहीं दिया जैसे हर करेंसी नोट पर यूनिक नंबर होता है, वैसे ही हर बॉन्ड का अपना नंबर था। इसके मैचिंग से पता चलता कि किस कंपनी ने किसको कितना चंदा दिया।
18 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में फिर सुनवाई हुई। कोर्ट ने फटकार लगाई तब जाकर 21 मार्च स्टेट बैंक ने नंबर के साथ डेटा जारी किया। फिर भी डेटा मैच नहीं था। अलग अलग अख़बार, चैनल और वेबसाइट ने कुछ ही मिनटों में दोनों लिस्ट मैच कर दीं, जिसके लिए स्टेट बैंक 30 जून तक समय मांग रहा था। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के 57% भारत सरकार के पास हैं। कांग्रेस ने सरकार पर आरोप लगाया है कि चुनाव से पहले सरकार द्वारा डेटा रोकने की भरसक कोशिश की गई। सरकार का जवाब नहीं आया है लेकिन सवाल बना हुआ है कि स्टेट बैंक डेटा रोकना क्यों चाहता था? चुनाव से पहले वोटरों को जानने का अधिकार है कि वो जिसे वोट दे रहा है वो किस कंपनी या व्यक्ति से पैसे ले रहा है।
(वरिष्ठ पत्रकार मिलिंद खांडेकर 'टीवी टुडे नेटवर्क' के 'तक चैनल्स' के मैनेजिंग एडिटर हैं और हर रविवार सोशल मीडिया पर उनका साप्ताहिक न्यूजलेटर 'हिसाब किताब' प्रकाशित होता है।)
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