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हिमालय से हिन्द महासागर तक आर्थिक और सामरिक शक्ति बढ़ाने की तैयारी: आलोक मेहता

अंडमान निकोबार को भी एक पत्रकार के रुप में बदलते देखने के अवसर पिछले पचास वर्षों में मिले हैं। इसलिए निकोबार द्वीप के क्रांतिकारी बदलाव की योजना जानकर अलग तरह की प्रसन्नता हो रही है।

समाचार4मीडिया ब्यूरो 3 months ago

आलोक मेहता, पद्मश्री, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और स्तंभकार।

जम्मू कश्मीर लद्दाख से अरुणाचल तक सुरक्षा के प्रबंध के साथ अब लक्ष्य द्वीप से अंडमान निकोबार की समुद्री सीमाओं पर सुरक्षा और आर्थिक सम्पन्नता के लिए मोदी सरकार ने व्यापक योजनाएं क्रियान्वन की तैयारी कर ली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरे कार्यकाल में ग्रेटर निकोबार को कभी ब्रिटेन के कब्जे में रहे चीन के हांगकांग क्षेत्र से भी अधिक आकर्षक आर्थिक क्षेत्र बनाने का काम शुरु कर दिया है। यह योजना न केवल अपनी समुद्री सीमाओं को विश्व के अनेक संपन्न देशों की सामरिक तथा आर्थिक सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण समझी जा रही है। यही कारण है कि दुनिया के विकसित संपन्न देश अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में भारत और इसके प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को निरंतर विशेष महत्व दे रहे हैं।

कश्मीर, लद्दाख , अरुणाचल प्रदेशों और लक्ष्यद्वीप की तरह अंडमान निकोबार को भी एक पत्रकार के रुप में बदलते देखने के अवसर पिछले पचास वर्षों में मिले हैं। इसलिए निकोबार द्वीप के क्रांतिकारी बदलाव की योजना जानकर अलग तरह की प्रसन्नता हो रही है। सबसे पहले मई 1978 में करीब एक सप्ताह अंडमान निकोबार की यात्रा चुनिंदा तीन पत्रकारों एवं इस सुदूर आदिवासी क्षेत्र के विशेषज्ञ सुदर्शन पंडित के साथ करने का अवसर मिला और मैंने अपनी पत्रिका साप्ताहिक हिन्दुस्तान में अनेक चित्रों के साथ आवरण कथा ( कवर स्टोरी ) लिखी थी। इस दृष्टि से पहले करीब 45 साल पहले देखे जाने निकोबार की कुछ बातों का उल्लेख उचित लगता है।  

सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह था कि निकोबार पर कहने को भारत सरकार का प्रशासन था, लेकिन असली राज चलता था पादरी और बिजनेसमैन आकोजी जादवेट परिवार का। उस समय निकोबार की आबादी केवल 10 हजार के आसपास थी और 15 गांव थे। करीब 52 किलोमीटर लम्बी सड़क गांवों को जोड़ती है। पादरी परिवार इस इलाके के बेताज बादशाह थे। अंडमान से भी अलग थलग निर्जन आदिवासी क्षेत्र होने से चर्च और पादरी ने 99 प्रतिशत आदिवासियों को ईसाई धर्म स्वीकार करवा दिया था। एक प्रतिशत लोग मुस्लिम थे। यहाँ के लोग अंडमान से बिल्कुल भिन्न गोरे चिकने मंगोलियन की तरह स्वस्थ्य सुन्दर दिखते हैं।

सरकारी अधिकारियों के बजाय विशेषज्ञ पंडितजी ने बहुत अंदरूनी स्थितियों की जानकारियां दी। पादरी के इशारे पर गांव के कप्तान चुने जाते थे। निकोबारी खून पसीना एक कर खेती मजदूरी से जो उत्पादन करते, उसे पादरी के एजेंट कप्तान की इच्छानुसार ही बेच सकता था। जमीन किसी व्यक्ति के नाम नहीं गाँव की होती थी। यदि कोई लड़की किसी गैर ईसाई से शादी कर ले तो उसका दाना पानी बंद हो जाता था। हद यह थी कि निकोबार के चर्च के आँगन में उस जीवित बूढ़े पादरी की बड़ी भारी मूर्ति लगी हुई थी। निकोबार में तैनात भारत सरकार के कुछ अधिकारी कर्मचारियों को अपना हिन्दू मंदिर बनाने तक की अनुमति पादरी ने नहीं दी। निकोबार से अंडमान पोर्ट ब्लेयर पहुँचने के लिए नौकाएं और एक छोटे जहाज की व्यवस्था थी, जो एक सप्ताह में आता जाता था।

बहरहाल चालीस वर्षों और खासकर पिछले दस वर्षों में अंडमान निकोबार तेजी से बदल रहा है। इसी क्रम में मोदी सरकार ग्रेट निकोबार द्वीप को दोहरे उपयोग वाले बुनियादी ढांचे के साथ एक आधुनिक शहरी केंद्र के रूप में विकसित करना चाहती है। राजनीतिक  बाधाओं के बावजूद, नीति आयोग द्वारा तैयार 75,000 करोड़ रुपये की 'ग्रेट निकोबार विकास योजना' को पर्यावरण नियंत्रक बोर्ड ने भी स्वविकृति दे दी। ग्रेट निकोबार, दुनिया का सबसे दक्षिणी और सबसे बड़ा द्वीप है। इस प्रोजेक्ट में ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल, एक इंटरनेशनल एयरपोर्ट, पावर प्लांट और टाउनशिप बनाने की योजना है। इस प्रोजेक्ट में प्रस्तावित बंदरगाह से क्षेत्रीय और वैश्विक समुद्री व्यापार अर्थव्यवस्था में  ग्रेट निकोबार की हिस्सेदारी बढ़ेगी और वह कार्गो शिपमेंट में एक बड़ा प्लेयर बनकर उभरेगा।

हवाई अड्डा बनने से मैरिटाइम सर्विसेज को ग्रोथ मिलेगी और ग्रेट निकोबार आइलैंड से देशी और विदेशी पर्यटकों की आवाजाही बढ़ेगी , जिससे पर्यटन बढ़ेगा। ग्रेट निकोबार में बंदरगाह बनाने की योजना की बात  साल 1970 से चल रही थी। इसका मकसद दुनिया के सबसे व्यस्त समुद्री मार्ग (मलक्का जलडमरूमध्य) के करीब एक बंदरगाह बनाना था, जिससे दुनिया के समुद्री व्यापार में उसकी हिस्सेदारी बढ़ सके। ग्रेट निकोबार द्वीप भारत के सबसे दक्षिणी छोर पर है और यह अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह का हिस्सा है, जिसमें 600 द्वीप हैं। निकोबारी समुदाय खेती और मछली पकड़ने का काम करते हैं। ग्रेट निकोबार में अधिकतर लोग वही हैं जो देश के विभिन्न भागों  से आकर यहां बसाए गए।

साल 1968 से लेकर 1975 तक भारत सरकार ने पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु से मिलिट्री से रिटायर हुए लोगों और उनके परिवारों को यहां बसाया। करीब 330 लोगों को द्वीप के पूर्वी तटों पर बसे सात गांवों में 15 एकड़ जमीन दी गई। ये सात गांव थे- कैंपबेल बे, गोविंदनगर, जोगिंदरनगर, विजयनगर, लक्ष्मी नगर, गांधी नगर। 750 किलोमीटर लंबे अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में 572 द्वीपों की श्रृंखला शामिल है। यह मुख्य भूमि दक्षिण भारत से लगभग 1200 किमी, म्यांमार से केवल 40 किमी, इंडोनेशिया से 160 किमी और थाईलैंड से 550 किमी दूर स्थित है।

बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर की अंतरराष्ट्रीय हाइड्रोग्राफिक संगठन (आईएचओ) की परिभाषाओं के अनुसार अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (ए एंड एन) इन दोनों की समुद्री सीमा में आते हैं। ए एंड एन के उत्तर और पश्चिम में भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) बंगाल की खाड़ी में आता है और ए एंड एन के पूर्व में अंडमान सागर में आता है। ए एंड एन में विभिन्न जलडमरूमध्य (समुद्र में संकीर्ण मार्ग, जिसे चैनल भी कहा जाता है) आधिकारिक तौर पर अंडमान सागर का हिस्सा हैं न कि बंगाल की खाड़ी का। ये बंगाल की खाड़ी को अंडमान सागर और उससे आगे के शिपिंग मार्गों से जोड़ते हैं।

भारत के ईईजेड के भीतर टेन डिग्री चैनल (जिसे ग्रेट या ग्रांड चैनल भी कहा जाता है) दुनिया का व्यस्ततम शिपिंग व्यापार मार्ग है। इस क्षेत्र में सुरक्षा, संरक्षा और नौवहन की स्वतंत्रता वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र बहुत बड़े हिंद महासागर क्षेत्र का हिस्सा है। एएनसी के प्रभाव क्षेत्र का इतिहास, संस्कृति, धर्म, अर्थव्यवस्था और व्यापार , ईईजेड, राजनीतिक और अंतर्राष्ट्रीय संबंध, राष्ट्रीय सुरक्षा, सुरक्षा और न केवल भारत बल्कि दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के अन्य देशों के शक्ति प्रक्षेपण के नेविगेशन की स्वतंत्रता के साथ-साथ 3 ट्रिलियन डॉलर के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की दृष्टि से  गहरा महत्व है, जो दक्षिण अंडमान सागर से होकर गुजरता है।  

इन्हें हर साल 94,000 से अधिक व्यापारी जहाज पार करते हैं, जो चीन, दक्षिण कोरिया और जापान से दुनिया का 40% माल व्यापार करते हैं। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भारत की भूमि का 0.2% और इसके अन्य आर्थिक क्षेत्र का 30% हिस्सा है। संचार की समुद्री लाइनें (एसएलओसी) वैश्विक व्यापार का 90% से अधिक हिस्सों को प्रभावित करती हैं। इंडो-पैसिफिक एशिया में 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का वार्षिक शिपिंग व्यापार एसएलओसी और दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिण चीन सागर (एससीएस) के चोकपॉइंट्स से होकर गुजरता है।

इस महत्वपूर्ण इलाके को बड़े पैमाने पर विकसित करने से चीन का दुखी और सचेत होना समझा जा सकता है , लेकिन सत्ता में रही पुरानी कांग्रेस पार्टी और उसके कम्युनिस्ट साथियों का विरोध दुर्भाग्यपूर्ण तथा राष्ट्रहित विरोधी ही कहा जाएगा। इसी जून में ही कांग्रेस ने योजना तुरंत प्रभाव से रद्द करने की मांग कर दी। कांग्रेस पार्टी का कहना है कि इसमें आदिवासी समुदायों और पर्यावरण की रक्षा करने वाले संवैधानिक प्रावधानों, कानूनों और प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया गया है। लोकसभा के चुनावी घोषणा पत्र में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) ने वादा किया था कि वह पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने वाली और पर्यावरण के लिए खतरनाक इस योजना को रद्द कर देगी।  

कम्युनिस्ट यह भूल रहे हैं कि बंगाल की तरह धीरे धीरे केरल में उनका अस्तित्व समाप्त होने वाला है। कांग्रेस के कन्धों पर बैठकर वह पहले की तरह विदेशी धन तथा सहयोग से भारत विरोधी माओवादियों को प्रोत्साहित कर सकने का सपना देख रहे होंगे। असल में पर्यटन और व्यापार से अधिक  सामरिक सुरक्षा की दृष्टि से  अंडमान निकोबार का अन्तर्राष्ट्रीय महत्व है। अंडमान और निकोबार कमांड (एएनसी) भारतीय सशस्त्र बलों की एक एकीकृत त्रि-सेवा कमान है, जो  पोर्ट ब्लेयर में स्थित है। इसे 2001 में दक्षिण पूर्व एशिया और मलक्का जलडमरूमध्य में भारत के सामरिक हितों की रक्षा के लिए बनाया गया था ताकि इस क्षेत्र में सैन्य संपत्तियों की तेजी से तैनाती बढ़ाई जा सके।

यह नौसेना के जहाजों को रसद और प्रशासनिक सहायता प्रदान करता है जिन्हें पूर्वी एशिया और प्रशांत महासागर में तैनाती पर भेजा जाता है। भारतीय ईईजेड और एएनसी प्रभाव क्षेत्र में यह क्षेत्र हिंद महासागर को दक्षिण चीन सागर और प्रशांत महासागर से जोड़ता है , इसलिए मलक्का चैनल  की सुरक्षा कई देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिए महत्वपूर्ण  है। संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस दोनों नेविगेशन की स्वतंत्रता का समर्थन करते हैं। ऑस्ट्रेलिया का 2013 रक्षा श्वेत पत्र हिंद महासागर एसएलओसी व्यापार की सुरक्षा के महत्व पर जोर देता है। इस क्षेत्र में चीन की गतिविधियां दुनिया कई देशों के लिए चिंता का कारण बनी हुई हैं।

संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और कई अन्य देशों द्वारा दिखाई गई चिंता के विपरीत, चीन दक्षिण चीन सागर के अधिकांश हिस्से पर अपना दावा करना जारी रखता है। चीन ने दक्षिण चीन सागर में पुनः प्राप्त एक छोटे से टापू का सैन्यीकरण किया है, जिस पर अन्य देश भी दावा करते हैं। चीन ने कथित तौर पर प्रशांत महासागर में भी इसी तरह का अंडरवाटर ड्रोन ऑपरेशन किया है। 1999 में, कारगिल युद्ध के बाद , अंडमान और निकोबार द्वीप समूह ने अधिक ध्यान आकर्षित किया।

राष्ट्रीय सुरक्षा में सुधार पर मंत्रियों के समूह (की रिपोर्ट ने भारतीय नौसेना की सलाह से एक संयुक्त कमान की  सिफारिश की और कहा गया कि इस संयुक्त कमान के कमांडर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ  को रिपोर्ट करेंगे। अंडमान और निकोबार कमान सितंबर 2001 के अंत तक लागू हो गई और वाइस एडमिरल (बाद में एडमिरल और सीएनएस ) अरुण प्रकाश अंडमान और निकोबार कमान के पहले कमांडर-इन-चीफ थे। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में एक संयुक्त कमान क्षेत्र में और विशेष रूप से मलक्का जलडमरूमध्य में तस्करी, समुद्री डकैती, ड्रग और बंदूक की तस्करी, अवैध शिकार और अवैध आव्रजन को रोकने में मदद  करती है। इसका उद्देश्य मलक्का जलडमरूमध्य में खतरों पर अंकुश लगाना है। द्वीपों में एक भारतीय कमान भविष्य में चीन से होने वाले किसी भी खतरे का मुकाबला कर सकती है।

भारतीय ईईजेड और एएनसी प्रभाव क्षेत्र में यह क्षेत्र हिंद महासागर को दक्षिण चीन सागर और प्रशांत महासागर से जोड़ता है , इसलिए मलक्का जलडमरूमध्य की सुरक्षा कई देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिए सर्वोपरि है। संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस दोनों नेविगेशन की स्वतंत्रता का समर्थन करते हैं। ऑस्ट्रेलिया का  2013 रक्षा श्वेत पत्र हिंद महासागर एसएलओसी व्यापार की सुरक्षा के महत्व पर जोर देता है। हालांकि, इस क्षेत्र में चीन की गतिविधियां कई देशों के लिए चिंता का कारण बनी हुई हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और कई अन्य देशों द्वारा दिखाई गई चिंता के विपरीत, चीन दक्षिण चीन सागर के अधिकांश हिस्से पर अपना दावा करना जारी रखता है। चीन ने दक्षिण चीन सागर में पुनः प्राप्त एक छोटे से टापू का सैन्यीकरण किया है, जिस पर अन्य देश भी दावा करते हैं ।

क्षेत्रीय संपर्क, व्यापार, सुरक्षा, संरक्षा बढ़ाने और मलक्का जलडमरूमध्य चैनल की रक्षा करने के लिए, भारत एएनसी के प्रभाव क्षेत्र में कई रणनीतिक बंदरगाहों का विकास कर रहा है, जैसे कि त्रिपुरा से रेल संपर्क के साथ बांग्लादेश में चटगांव बंदरगाह , बांग्लादेश में मोंगला बंदरगाह ,  म्यांमार में कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट परियोजना के हिस्से के रूप में सित्तवे बंदरगाह और  भारत-इंडोनेशिया रणनीतिक सैन्य और आर्थिक साझेदारी के तहत सबंग गहरे समुद्र बंदरगाह ।भारत में कई तटीय बंदरगाहों को विकसित करने के उद्देश्य से भारत की सागर माला परियोजनाओं के साथ , भारत एएनसी के प्रभाव क्षेत्र में और अधिक बंदरगाहों को विकसित करने पर भी विचार कर रहा है, जैसे कि दावेई बंदरगाह परियोजना ।यह क्षेत्र समुद्री डकैती की समस्या से ग्रस्त है |  एएनसी भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र की सुरक्षा की गारंटी देता है, जो इंडोनेशिया , मलेशिया , थाईलैंड , म्यांमार, बांग्लादेश , मालदीव और श्रीलंका सहित कई अन्य देशों के ईईजेड के आसपास के क्षेत्र में स्थित है।

हिंद महासागर में सभी 3 प्रमुख वैश्विक समुद्री व्यापार मार्ग, केप ऑफ गुड होप और अदन की खाड़ी या होर्मुज के जलडमरूमध्य से , भारतीय ईईजेड में संकीर्ण सिक्स डिग्री चैनल पर मिलते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उच्च शिपिंग घनत्व होता है, जो इस समुद्री व्यापार मार्ग की भेद्यता और सुरक्षा पर प्रभाव डालने की भारत की क्षमता को बढ़ाता है। मलाका चैनल  सबसे व्यस्त और महत्वपूर्ण चोकपॉइंट है। इस मार्ग  से सभी व्यापारिक जहाजों को भारत के अंडमान निकोबार ईईजेड के भीतर स्थित सबसे महत्वपूर्ण एसएलओसी  चेक  पॉइंट से गुजरना होगा  ये  चेक पॉइंट भारतीय और प्रशांत महासागरों के बीच प्रवेश और निकास बिंदु हैं, जो सभी संयुक्त भारत-ऑस्ट्रेलिया सैन्य प्रभाव क्षेत्र में स्थित हैं। 

यह भारतीय और ऑस्ट्रेलियाई सेनाओं  अमेरिका और जापान के साथ क्वाड का हिसे  को भारतीय और प्रशांत महासागरों में संयुक्त एंटी-सिग्नल खुफिया जानकारी जुटाने, पनडुब्बी ट्रैकिंग और युद्ध अभियानों के लिए भू-रणनीतिक लाभ प्रदान करता है । भारत जहाज-आधारित परमाणु मिसाइल प्रणाली को निरोध के रूप में और लैंडिंग प्लेटफ़ॉर्म डॉक्स (एलपीडी) के साथ नौसेना के युद्धपोतों के बेड़े को तैनात करके अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में सैन्य क्षमताओं को बढ़ा रहा है। क्वाड - चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता (QUAD), ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका के बीच एक रणनीतिक संगठन है, जिसका उद्देश्य इस क्षेत्र में और इसके आसपास के देशों के व्यापार और सुरक्षा के लिए उत्पन्न जोखिम का मुकाबला करना है। क्वाड राष्ट्र एएनसी प्रभाव क्षेत्र में नियमित सैन्य अभ्यास  भी करते हैं।

इंडो-पैसिफिक में चीन की गतिविधियों का मुकाबला करने के उद्देश्य से, "स्वतंत्र, खुला, समावेशी और नियम-आधारित इंडो-पैसिफिक क्षेत्र  और परिवहन और संचार के लिए खुले, सुरक्षित और कुशल समुद्री लेन बनाए रखने  को सुनिश्चित करने के लिए, भारत और ऑस्ट्रेलिया ने सैन्य ठिकानों तक पारस्परिक पहुंच के लिए आपसी रसद समर्थन और अंतर-संचालन के लिए एक सैन्य संधि पर हस्ताक्षर किए। भारत की अमेरिका के साथ भी इसी तरह की संधि है, भारत, जिसने एन्क्रिप्टेड सैन्य संचार के लिए यूएसए और जापान के साथ समझौता भी किया है।  

भारत, अमेरिका और जापान नियमित त्रिपक्षीय समुद्री अभ्यास ( अभ्यास मालाबार) कर रहे हैं | ऑस्ट्रेलिया, जिसका कोकोस द्वीप पर पहले से ही आरएएएफ बेस है , इसका उपयोग निगरानी के लिए और उत्तर में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से लेकर दक्षिण में कोकोस द्वीप समूह तक फैले क्षेत्र की निगरानी के लिए करता है।नौसेना सहयोग के लिए भारत-सिंगापुर द्विपक्षीय समझौता भारतीय नौसेना के जहाजों को सिंगापुर के चांगी नौसेना बेस तक पहुँच , रसद सहायता और ईंधन भरने के अधिकार भी प्रदान करता है।  भारत के  वियतनाम, जापान, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ इसी तरह के समझौते हैं | मतलब भारत सही मायने में विश्व समुदाय के एक रक्षक मित्र की भूमिका निभाता रहेगा।

( यह लेखक के निजी विचार हैं )


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