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'IIMC ने जो नवाचार किए हैं, वह देश के अन्य मीडिया शिक्षण संस्थानों के लिए मिसाल हैं'
‘भारतीय जनसंचार संस्थान’ (आईआईएमसी) ने अपने गौरवशाली इतिहास के 57 वर्ष पूरे कर लिए हैं। किसी भी संस्था के लिए यह गर्व का क्षण भी है और विहंगावलोकन का भी।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 3 years ago
प्रो.संजय द्विवेदी
‘भारतीय जनसंचार संस्थान’ (आईआईएमसी) ने अपने गौरवशाली इतिहास के 57 वर्ष पूरे कर लिए हैं। किसी भी संस्था के लिए यह गर्व का क्षण भी है और विहंगावलोकन का भी। ऐसे में अपने अतीत को देखना और भविष्य के लिए लक्ष्य तय करना बहुत महत्वपूर्ण है। 17 अगस्त 1965 को देश की तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने इस संस्थान का शुभारंभ किया और तब से लेकर आज तक इस परिसर ने प्रगति और विकास के अनेक चरण देखे हैं।
प्रारंभ में आईआईएमसी का आकार बहुत छोटा था। 1969 में अफ्रीकी-एशियाई देशों के मध्यम स्तर के पत्रकारों लिए ‘विकासशील देशों के लिए पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम’ का एक अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रारंभ किया गया, जिसे अपार सफलता मिली और संस्थान को अपनी वैश्विक उपस्थिति जताने का मौका भी मिला। इसके साथ ही आईआईएमसी की एक खास उपलब्धि केंद्र और राज्य सरकारों तथा सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों के जनसंपर्क, संचार कर्मियों के प्रशिक्षण की व्यवस्था भी रही। इन पाठ्यक्रमों के माध्यम से देश के तमाम संगठनों के संचार प्रोफेशनल्स की प्रशिक्षण संबंधी जरूरतों की पूर्ति भी हुई और कुशल मानव संसाधन के विकास में योगदान रहा।
बाद के दिनों में आईआईएमसी ने स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रमों की शुरुआत की। जिसमें आज दिल्ली परिसर सहित उसके अन्य पांच परिसरों में कई पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं। दिल्ली परिसर में जहां रेडियो और टीवी पत्रकारिता, अंग्रेजी पत्रकारिता, हिंदी पत्रकारिता, उर्दू पत्रकारिता, विज्ञापन और जनसंपर्क के पांच पाठ्यक्रम चलाए जाते हैं। वहीं ओडिशा स्थित ढेंकनाल परिसर में उड़िया पत्रकारिता और अंग्रेजी पत्रकारिता के दो पाठ्यक्रम हैं। आइजोल (मिजोरम) परिसर अंग्रेजी पत्रकारिता में डिप्लोमा पाठ्यक्रम का संचालन करता है। अमरावती (महाराष्ट्र) परिसर में अंग्रेजी और मराठी पत्रकारिता में पाठ्यक्रम चलते हैं। जम्मू (जम्मू एवं कश्मीर) परिसर में अंग्रेजी पत्रकारिता और कोट्टयम (केरल) परिसर में अंग्रेजी और मलयालम पत्रकारिता के पाठ्यक्रम संचालित किए जाते हैं। भविष्य में अन्य भारतीय भाषाओं में पाठ्यक्रमों के साथ उस भाषा में पाठ्य सामग्री की उपलब्धता भी संस्थान का महत्वपूर्ण लक्ष्य है।
पिछले एक वर्ष में आईआईएमसी ने मीडिया शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में जो नवाचार किए हैं, वह देश के अन्य मीडिया शिक्षण संस्थानों के लिए एक मिसाल हैं। यह आइआईएमसी के श्रेष्ठ प्राध्यापकों, अधिकारियों एवं कर्मचारियों की मेहनत का परिणाम है कि देश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं ‘इंडिया टुडे’, ‘आउटलुक’ और ‘द वीक’ के ‘बेस्ट कॉलेज सर्वे 2021’ में भारतीय जनसंचार संस्थान को पत्रकारिता एवं जनसंचार के क्षेत्र में देश का सर्वश्रेष्ठ मीडिया शिक्षण संस्थान घोषित किया गया है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर एवं संस्थान के चेयरमैन अमित खरे के मार्गदर्शन और सहयोग से आईआईएमसी अकादमिक गुणवत्ता के मानकों को स्थापित करने में सफल रहा है।
कोविड काल में शिक्षा जगत को अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन भारतीय जनसंचार संस्थान ने आपदा के इस समय को अवसर में बदला और डिजिटल माध्यमों से पूरा शैक्षणिक सत्र सफलतापूर्वक संचालित किया। आईआईएमसी के इतिहास में पहली बार नेशलल टेस्टिंग एजेंसी के माध्यम से ऑनलाइन प्रवेश परीक्षा आयोजित की गई। नवागत विद्यार्थियों का ओरियंटेशन प्रोग्राम भी ऑनलाइन आयोजित किया गया। आईआईएमसी ने देश के प्रख्यात विद्वानों से विद्यार्थियों का संवाद कराने के लिए ‘शुक्रवार संवाद’ नामक कार्यक्रम की शुरुआत की। भारत में कोविड 19 महामारी की पश्चिमी मीडिया द्वारा की गई कवरेज पर आईआईएमसी ने एक सर्वेक्षण किया और इस विषय पर विमर्श का आयोजन भी किया। इस कार्यक्रम में देश के प्रसिद्ध पत्रकारों एवं बुद्धिजीवियों ने भाग लिया। इसके अलावा वर्ल्ड जर्नलिज्म एजुकेशन काउंसिल, यूनेस्को, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा एवं न्यूकासल यूनिवर्सिटी, लंदन के साथ मिलकर कई महत्वपूर्ण विषयों पर पिछले एक वर्ष में विमर्शों का आयोजन भी किया गया।
इस वर्ष की ऐतिहासिक उपलब्धि रही भारतीय जन संचार संस्थान के पुस्तकालय का नाम भारत में हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले पं. युगल किशोर शुक्ल के नाम पर रखा जाना। आईआईएमसी का यह पुस्तकालय हिंदी पत्रकारिता के प्रवर्तक पं. शुक्ल के नाम पर देश का पहला स्मारक है। सरकारी कामकाज में हिंदी को बढ़ावा देने के लिए आईआईएमसी ने इस वर्ष ‘राजभाषा सम्मलेन’ का आयोजन भी किया। साथ ही महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार और यूनिवर्सिटी ऑफ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशंस ऑफ उज़्बेकिस्तान के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर भी किए गए। इस एमओयू का उद्देश्य पत्रकारिता और जनसंचार शिक्षा को प्रोत्साहन देना एवं मौलिक, शैक्षणिक एवं व्यावहारिक अनुसंधान के क्षेत्रों को परिभाषित करना है। इस समझौते के माध्यम से आईआईएमसी टीवी, प्रिंट मीडिया, डिजिटल मीडिया, जनसंपर्क, मीडिया भाषा विज्ञान और विदेशी भाषाओं जैसे विषय पर शोध को बढ़ावा देना चाहता है। आईआईएमसी का उद्देश्य आज की जरूरतों के अनुसार ऐसा मीडिया पाठ्यक्रम तैयार करना है, जो छात्रों के लिए रोजगापरक हो। इस दिशा में संस्थान अन्य विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर कार्य करने के लिए अग्रसर है।
गत वर्ष भारतीय जनसंचार संस्थान की प्रतिष्ठित शोध पत्रिकाओं ‘कम्युनिकेटर’ और ‘संचार माध्यम’ को रिलांच किया गया। ‘कम्युनिकेटर’ का प्रकाशन वर्ष 1965 से और ‘संचार माध्यम’ का प्रकाशन वर्ष 1980 से किया जा रहा है। यूजीसी-केयर लिस्ट में शामिल इन शोध पत्रिकाओं में संचार, मीडिया और पत्रकारिता से संबंधित सभी प्रकार के विषयों पर अकादमिक शोध और विश्लेषण प्रकाशित किये जाते हैं। जनसंचार और पत्रकारिता पर प्रकाशित पुस्तकों के अलावा सामाजिक कार्य, एंथ्रोपोलोजी, कला आदि पर प्रकाशित पुस्तकों की समीक्षा भी पत्रिकाओं में प्रकाशित की जाती है। इसके अलावा ऐसे तथ्यपूर्ण शोध-पत्र भी शामिल किए जाते हैं, जिनका संबंध किसी नई तकनीक के विकास से है। भारतीय जनसंचार संस्थान के प्रकाशन विभाग द्वारा ‘कम्युनिकेटर’ का प्रकाशन वर्ष में चार बार और ‘संचार माध्यम’ का प्रकाशन दो बार किया जाता है।
भविष्य में संस्थान ‘संचार सृजन’ के नाम से समसामयिक विषयों पर त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू करने जा रहा है। राजभाषा हिंदी को बढ़ावा देने के लिए ‘राजभाषा विमर्श’ नामक पत्रिका प्रकाशित करने की भी योजना है। आईआईएमसी से जुड़ी एक ‘कॉफी टेबल बुक’ का प्रकाशन भी जल्द किया जाएगा। इसके अलावा अगले दो वर्षों में मीडिया शिक्षा से जुड़ी लगभग 40 पुस्तकों का प्रकाशन हिंदी एवं अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में करने की योजना आईआईएमसी की है।
कोई भी संस्थान अपने विद्यार्थियों से ही बड़ा होता है। आईआईएमसी के पूर्व छात्र आज देश के ही नहीं, विदेशों के भी तमाम मीडिया, सूचना और संचार संगठनों में नेतृत्वकारी भूमिका में हैं। उनकी उपलब्धियां असाधारण हैं और हमें गौरवान्वित करती हैं। आईआईएमसी के पूर्व छात्रों का संगठन इतना प्रभावशाली और सरोकारी है, वह सबको जोड़कर सौजन्य व सहभाग के तमाम कार्यक्रम आयोजित कर रहा है। पूर्व विद्यार्थियों का सामाजिक सरोकार और आयोजनों के माध्यम से उनकी सक्रियता रेखांकित करने योग्य है। कोई भी संस्थान अपने ऐसे प्रतिभावान एवं संवेदनशील पूर्व छात्रों पर गर्व का अनुभव करेगा।
आईआईएमसी का परिसर अपने प्राकृतिक सौंदर्य और स्वच्छता के लिए भी जाना जाता है। इस मनोरम परिसर में प्रकृति के साथ हमारा साहचर्य और संवाद संभव है। परिसर में विद्यार्थियों के लिए छात्रावास, समृद्ध पुस्तकालय, ‘अपना रेडियो’ नाम से एक सामुदायिक रेडियो भी संचालित होता है। इसके अलावा भारतीय सूचना सेवा के अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिए विशेष सुविधाएं और उनके लिए ऑफिसर्स हॉस्टल भी संचालित है। आने वाले समय की चुनौतियों के मद्देनजर हमें अभी और आगे जाना है। अपने सपनों में रंग भरना है। उम्मीद की जानी चाहिए कि संस्थान अपने अतीत से प्रेरणा लेकर बेहतर भविष्य के लिए कुछ बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करेगा, साथ ही जनसंचार शिक्षा में वैश्विक स्तर पर स्वयं को स्थापित करने में सफल रहेगा।
(लेखक भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली के महानिदेशक हैं)
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