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विज्ञान खुद को सफल साबित करने के लिए प्रोपेगैंडा नहीं रचता: नीरज बधवार
जिस देश में नकारा सिस्टम सैंकड़ो खर्च करके 5 साल में एक किलोमीटर लंबा पुल नहीं बना पाती वहां चिल्लड़ से खर्चे में हम चांद पर पहुंच गए।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 1 year ago
विज्ञान और बाकी क्षेत्रों में फर्क ये है कि खुद को सफल साबित करने के लिए विज्ञान षड़यंत्र नहीं रचता। क्रिकेट की तरह यहां सिर्फ घरेलू पिचों पर रन बनाकर अपनी ओवरऑल रन रेट नहीं बढ़ाई जा सकती, घटिया फिल्म बनाने के बावजूद बिकाऊ समीक्षकों से उसकी अच्छी समीक्षा लिखवा उसे हिट नहीं बताया जा सकता है और न ही परिवारवाद या किसी उन्मादी मुद्दे पर चुनाव जीत खुद को विजेता साबित किया जा सकता है।
यहां आप तभी जीतते हैं, जब सच में जीत जाते हैं। इसलिए जब 3 लाख 80 हजार किलोमीटर की दूरी तय कर चंद्रयान 3 का विक्रम लैंडर चांद पर पहुंच गया तो आप इसमें कोई साजिश नहीं ढूंढ सकते। आप ये नहीं कह सकते कि नहीं धरती से तो चांद इतना दूर है ही नहीं। जरूर ऑटोवाला घुमाकर ले गया होगा। ये ऑटो वाले मीटर से जाने पर ऐसे ही करते हैं।
यही विज्ञान की सबसे बड़ी खासियत भी है कि वो खुद को सफल साबित करने के लिए प्रोपेगैंडा नहीं रचता। ऐसा नहीं हो सकता था कि इसरो के सरकारी बाबू किसी निर्जन स्थान रप उसके फोटोग्राफ खींचकर उसे चांद पर पहुंचा बता देते और बाद में पता चलता कि चंद्रयान तो गाजियाबाद बस स्टैंड पर खड़ा है। या 615 करोड़ रुपये को कम बताकर वैज्ञानिक कह देते कि इतने पैसों में तो हम धारूहेड़ा तक ही जा पाएंगे। ये सोचने पर कि जिस समाज में इसरो वैज्ञानिक ये कर पाए उससे इज्जत और बढ़ जाती है।
जहां सरकारें घर से दो किलोमीटर दूर स्थित स्कूल होने पर भी बच्चों को कक्षा तक नहीं पहुंचा पाती, वहां हमारे वैज्ञानिकों ने एक लैंडर को धरती से 3 लाख 80 हज़ार किलोमीटर दूर उसकी कक्षा में पहुंचा दिया। जिस देश में घर से दो किलोमीटर दूर आदमी ट्रैफिक की हालत देखकर नहीं बता सकता कि वो घर कितने बजे आएगा उस देश में इसरो ने कई दिन पहले बता दिया था कि चंद्रयान 3 बुधवार 23 अगस्त को 6 बजकर इतने मिनट पर चांद पर पहुंचेगा। जिस देश में नकारा सिस्टम सैंकड़ो खर्च करके 5 साल में एक किलोमीटर लंबा पुल नहीं बना पाती वहां चिल्लड़ से खर्चे में हम चांद पर पहुंच गए।
चाऊमीन को बलात्कार की वजह बताने वाले और हरी चटनी के साथ गुलाब जामुन खाकर अपना चंद्रदोष दूर करने की सलाह देने वाले समाज में ये उपलब्धि और ज़्यादा सुकून देती है। हमें गर्व से भर देती है। जहां कुछ धर्मांध खुद को उड़ाकर दूसरी दुनिया में जाना चाहते हैं, इसरो वाले उड़कर दूसरी दुनिया में चले गए! सच में कमाल हो गया। एक ऐसी उपलब्धि पर सबको बधाई जिसमें कोई षड्यंत्र नहीं है।
क्योंकि विज्ञान षड़यंत्र रचना नहीं जानता
— Neeraj Badhwar (@nirajbadhwar) August 24, 2023
विज्ञान और बाकी क्षेत्रों में फर्क ये है कि खुद को सफल साबित करने के लिए विज्ञान षड़यंत्र नहीं रचता। क्रिकेट की तरह यहां सिर्फ घरेलू पिचों पर रन बनाकर अपनी ओवरऑल रन रेट नहीं बढाई जा सकती, घटिया फिल्म बनाने के बावजूद बिकाऊ समीक्षकों से… pic.twitter.com/ITOn4DKZZU
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