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'सुरक्षा तंत्र की जासूसी को मीडिया की आजादी से जोड़ना अपराध'

मीडिया की आजादी और उसकी आत्म अनुशासन-आचार संहिता, संवैधानिक संरक्षण पर निरंतर जागरूकता निश्चित रूप से आवश्यक है। लेकिन भारत के सुरक्षा तंत्र की जासूसी पर नजर तथा कठोर कानून भी बहुत जरूरी हैं।

आलोक मेहता 1 year ago

आलोक मेहता, वरिष्ठ पत्रकार।।

बचपन से हम सब सुनते रहे हैं- 'जाने किस भेष में मिल जाएं भगवान' या 'पता नहीं किस भेष में आ जाए दानव रावण'। राहुल गांधी तो एक जिम्मेदार कांग्रेसी नेता हैं और अपनी दादी इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी की बातों का हवाला देते हैं। उनके कई सलाहकार, सहयोगी नेता अधिक न सही पिछले पचास वर्षों के राजनैतिक और भारत समर्थक या विरोधी शक्तियों के प्रयासों के जानकार हैं। तब भी राहुल गांधी या उनके नए नवेले साथियों को यह कैसे नहीं समझ में आ रहा है कि भारत विरोधी और सुरक्षा तंत्र में सेंध लगाने अथवा भारत की एकता अखंडता को नष्ट करने वाले जासूस पत्रकार, व्यापारी अथवा अधिकारी के रूप में सक्रिय हो सकते हैं।

यदि यह समझ होती तो  अमेरिका के नेशनल प्रेस क्लब में हाल ही में भारतीय सुरक्षा तंत्र की जासूसी के गंभीरतम मामले में कथित पत्रकार विवेक रघुवंशी की गिरफ्तारी पर अमेरिकी पत्रकार के सवाल पर भारत में मीडिया की आजादी पर हमलों से जोड़कर एक प्रमाण के रूप में पेश नहीं करते।  प्रेस ही नहीं अभिव्यक्ति, लोकतंत्र पर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा हमलों और खतरों के लिए राहुल गांधी और उनके कुछ करीबी साथी, कांग्रेस प्रवक्ता देश-विदेश में अतिरंजित दुष्प्रचार कर रहे हैं। मीडिया की आजादी और उसकी आत्म अनुशासन-आचार संहिता, संवैधानिक संरक्षण पर निरंतर जागरूकता निश्चित रूप से आवश्यक है। लेकिन उसके साथ इस आजादी का दुरुपयोग रोकना , भारत के सुरक्षा तंत्र की जासूसी पर नजर तथा कठोर कानून भी बहुत जरूरी हैं।

पत्रकार के भेष में विदेशी ताकतों, गुप्तचर एजेंसियों के लिए जासूसी और रक्षा संबंधी महत्वपूर्ण गोपनीय दस्तावेज जुटाने वाले विवेक रघुवंशी, राजीव शर्मा पर मोदी सरकार की कानूनी कार्रवाई अथवा मीडिया के नाम पर विदेशी कंपनियों अथवा संस्थाओं से अवैध रूप से करोड़ों रुपया-विदेशी मुद्रा लेने वालों पर भारत सरकार की जांच एजेंसियों के छापों पर कांग्रेस या अन्य दलों के नेता क्यों आपत्ति उठा रहे हैं। इस संदर्भ में मुझे कांग्रेस के सत्ता काल में भी पत्रकार कहलाने वाले लोगों पर जासूसी के आरोपों में हुई कार्रवाई पर ध्यान दिलाना उचित लगता है। राजीव गांधी के सत्ता काल में तो राहुल कम उम्र के थे, लेकिन कुछ अन्य वरिष्ठ नेताओं या पुराने अधिकारियों और सरकारी या मीडिया रिकार्ड से अब भी इस बात की पुष्टि हो सकती है।

असल में ऐसे मामलों पर मैंने स्वयं रिपोर्टिंग की है और आरोपियों द्वारा प्रारंभिक दौर में क़ानूनी नोटिस तक भेजे गए, जबकि बाद में वे जेल भी गए। जैसे राजीव राज के दौरान 9 अक्टूबर 1985 को मैंने एक प्रमुख हिंदी अखबार में पहले पेज पर खबर लिखी कि एक जासूसी कांड में पत्रकार और चार कांग्रेसी  नेताओं-मंत्रियों के नाम आ रहे हैं। जांच एजेंसी इस जासूसी कांड के प्रमुख आरोपी को गिरफ्तार करने वाली है और जांच से सरकार के लिए भी परेशानी की स्थिति पैदा होगी। मुख्य आरोपी ने अपने एक नामी वकील से मुझे और अखबार के संपादक को मानहानि का कानूनी नोटिस भेजा। वह नोटिस आज भी मेरे निजी रिकार्ड में है। प्रामाणिक खबर होने के कारण मैंने उसका जवाब नहीं दिया।

दो-तीन हफ्ते में इस जासूसी कांड के मुख्य आरोपी की गिरफ्तारी हो गई। वह आरोपी खुद को बिजनेसमैन, समाजसेवी, अखबारों का कॉलमिस्ट पत्रकार कहता था। उसके तथा उसकी संस्थाओं के बैंक खातों में लाखों रुपए की विदेशी मुद्रा संदिग्ध ढंग से आई थी। वह कई नेताओं, सांसदों, संपादकों, पत्रकारों व अधिकारियों को पटाने, विदेश यात्राओं के प्रबंध करने का धंधा करने के साथ रक्षा मामलों की जानकारियां मुंबई और श्रीनगर में बैठे विदेशी सूत्रों के माध्यम से भिजवाता था। इस मामले में जांच एजेंसियों ने दो-तीन पत्रकारों से गहन पूछताछ की। इनमें एक क्षेत्रीय हिंदी अखबार का संपादक भी था। उस पर विदेशी दूतावास से संपर्क और धन मिलने के सबूत भी मिले।

करीब तीन महीने बाद अदालत में  मुख्य आरोपी की चार्जशीट दाखिल होने से एक दिन पहले 29 जनवरी 1986 को राजीव गांधी सरकार के दो प्रमुख मंत्रियों के इस्तीफे करवाए गए, क्योंकिं चार्जशीट में उनका नाम भी आने वाला था। इनमें से एक मंत्री भी पहले संपादक रहा था। एक पूर्व मंत्री कांग्रेसी नेता एक आयोग का अध्यक्ष था। उसका भी इस्तीफा हुआ। स्वाभाविक है यह कानूनी मामला लंबे समय तक चला। सरकार के संबंध अमेरिका से भी सुधर रहे थे। क्षेत्रीय संपादक पहले दिल्ली के अखबार में भी ब्यूरो प्रमुख रहा था और उसने जांच एजंसियों के समक्ष अधिकाधिक जानकारी दे दी और सरकारी गवाह की तरह जेल जाने से बच गया और फिर हमेशा के लिए अमेरिका भाग गया।

कांग्रेस राज का ही दूसरा मामला तो अधिक पुराना नहीं और दिलचस्प है। एक पत्रकार और पूर्व कांग्रेसी सांसद परिवार के बेटे को भी रक्षा मामलों की गोपनीय जानकारी हथियारों के सौदागरों तक पहुंचाने के आरोपों में गिरफ्तार किया गया। अदालत में पर्याप्त प्रमाण होने के कारण उसे करीब पांच साल जेल में रहना पड़ा। मनमोहन सिंह सरकार के पहले कार्यकाल में थोड़ी राहत मिली, लेकिन उसके बैंक खाते अब तक सील हैं और अदालत में सुनवाइयां जारी हैं।

खास बात यह है कि जेल से आने के बाद इस आरोपी ने एक अंग्रेजी पत्रिका के प्रकाशक का चोगा पहन लिया, ताकि सत्ता के गलियारों में घूमना आसान रहे। कानूनी मामले होने से मैंने किसी नाम का उल्लेख यहां नहीं किया है, लेकिन राहुल गांधी और उनके नजदीकी सलाहकार तो बहुत ज्ञानी हैं। सारे नाम रिकार्ड समझ लेंगे। उन्हें कम से कम यह अहसास तो हो जाएगा कि पत्रकार के नाम पर ठगी और अपराध करने वालों को मीडिया की आजादी के आधार पर बचाना अनुचित है। ऐसी जासूसी पाकिस्तान, चीन ही नहीं अमेरिका या यूरोपीय देशों की गुप्तचर एजेंसियों या रक्षा के सौदागरों के लिए भी हो सकती हैं।

इसी तरह मीडिया पर राजनीतिक दबाव केंद्र या राज्यों की कांग्रेस सरकारों या प्रदेशों में गैर कांग्रेसी सरकारों में क्या कम रहे हैं? कांग्रेस के एक मुख्यमंत्री के सहयोगी ही नहीं उसका बेटा दिल्ली में प्रतिष्ठित अखबार, पत्रिका के दफ्तर में आकर धमकियां देता था। कांग्रेस के ही एक बड़े नेता तक को धमकी देने की खबर जब हमने छाप दी तो उसने जबानी धमकी के साथ कानूनी कार्रवाई का नोटिस भी भेज दिया। हमने जवाब देने के बजाय उसके कारनामों पर सीरीज चलाने की सूचना भिजवाई, तब अन्य बड़े नेताओं के मार्फत माफी मांग ली।

बिहार में लालू यादव के पहले कार्यकाल में जब मैंने चारा कांड के दस्तावेज प्रकाशित किए, तो उनके समर्थकों ने धमकियों के साथ प्रकाशन संस्थान के प्रिंटिंग यूनिट पर हमला कर आग तक लगा दी। लालू यादव को सजा तो कई वर्षों के बाद हुई। पश्चिम बंगाल में तो हाल के वर्षों में सत्तारूढ़ पार्टी और नेताओं की जानकारी क्या कांग्रेस के नेताओं को नहीं है? तमिलनाडु और केरल के प्रकाशक संपादक भी पिछले दशकों में रहे दबावों और हमलों के भुक्तभोगी हैं।

हां, जो मीडिया हाउस या पत्रकार सत्ता से कोई स्वार्थ सिद्ध करना चाहते हों या अवैध रूप से धनार्जन करते हों तो वे सरकारों के दबाव में आते हैं या कानूनी कार्रवाई झेलते हैं। जिन्हें ईमानदारी और आचार संहिता से पत्रकारिता करनी होती है, वे निर्भीक रहकर काम कर रहे हैं। दिल्ली ही पूरा भारत नहीं है। देश के विभिन्न हिस्सों में हजारों पत्रकार ईमानदारी और निष्ठापूर्वक काम भी कर रहे हैं।

(यह लेखक के निजी विचार हैं। पद्मश्री से सम्मानित लेखक आईटीवी नेटवर्क, इंडिया न्यूज और दैनिक आज समाज के संपादकीय निदेशक हैं।)


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