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‘पार्किंग ओनर के रिस्क पर और रिपोर्टिंग रिपोर्टर के रिस्क पर’

देश के सबसे तेज चैनल की एंकर अंजना ओम कश्यप जब शाहीन बाग पहुंचीं तो शाहीन बाग ने आंचल खोलकर उनका स्वागत किया।

प्रमिला दीक्षित 4 years ago

प्रमिला दीक्षित, वरिष्ठ पत्रकार।।

तालों में नैनीताल बाकी सब तलैया...

बागों में शाहीन बाग बाकी सब हैं बगिया!

प्रश्न-जब एनआरसी है ही नहीं तो आप विरोध क्यूं कर रहे हैं?

उत्तर-ये भगत सिंह का देश है।

देश के सबसे तेज चैनल की एंकर अंजना ओम कश्यप जब शाहीन बाग पहुंचीं तो शाहीन बाग ने आंचल खोलकर उनका स्वागत किया। दस लोग जवाब देने के लिए नियुक्त कर दिए और पांच-छह लोग उनके बगल में खड़े हो गए, जो हर सवाल के जवाब के लिए इशारा करके निर्धारित करते थे कि जवाब कौन देगा।

मजेदार बात ये कि पगड़ीधारी सिख, सफेद लबादे में ईसाई धर्मप्रचारक और गेरुए वस्त्र में एक संत-इस तरह तैनात थे कि शाहीन बाग की इस धर्मनिरपेक्षता पर किसी का भी दिल बाग बाग हो जाए।

सत्रह साल की एक बच्ची से जब कई दफा तर्कों के साथ एंकर ने पूछा- बेटा जब एनआरसी है ही नहीं और सीएए में किसी की नागरिकता नहीं जा रही तो फिर आप किसकी मुखालिफत कर रहे हो? तो बात ‘वो सभी का खून शामिल है यहां की मिट्टी में’ टाइप तर्क पर आ गई।

इसलिए तो सीएए समर्थक कह रहे हैं कि अगर ऐसी ही बात है तो सभी का टैक्स शामिल है इसमें, जो घेरी है सड़क वो भी तो किसी के बाप की नहीं है!

कमाल करते हो यार!

सत्रह साल की उस बच्ची से लेकर नब्बे साल की दादी तक की बातों से साफ था, कितने गुमराह कितने अंधेरे में हैं वो कानून को लेकर। एक घंटे के टेलिकास्ट ने साफ कर दिया कि ये धरना-प्रदर्शन महज आशंका पर आधारित धरना है।

बहुत शानदार आजतक! ज्यादा तर्क-वितर्क तो वहां मुमकिन थे नहीं, लेकिन आपने कम से कम लोगों को दिखा दिया कि शाहीन बाग का धरना आशंका का धरना ही है। ज्यादा तर्क-वितर्क से माहौल बिगड़ने की आशंका होते ही अंजना नजारे दिखाने लगतीं कि देखिए दूर-दूर तक, सिर्फ मोबाइल फोन की लाइटें बता रही हैं कि कितने लोग यहां जुटे हैं।

खैर ये अंजना के शो तक ही सीमित रहा। आजतक के ही अंग्रेजी चैनल ने जब मेहमानों के साथ वहां अभिव्यक्ति की आजादी को पर लगाने की कोशिश की तो मेहमानों को सिर पर पैर रखकर भाग खड़े होना पड़ा।

इस्लाम खतरे मे दिखा तो शाहीन बाग एकजुट हो गया और हिंदू खतरे में दिखा तो दीपक चौरसिया और सुधीर चौधरी एकसाथ आ गए। टीआरपी के कलयुग में जब एक रिपोर्टर पिटता है तो दूसरा चैनल सुध तक नहीं लेता। ऐसे में दीपक चौरसिया को अकेले टीआरपी लूटते देख, जी न्यूज का न्यूज नेशन के साथ आना नया प्रयोग बन गया।

शाहीन बाग में सबका स्वागत खुले दिल से हो ऐसा नहीं है। अलग-अलग बैरिकेड और दूरी निर्धारित हैं। जी न्यूज का रिपोर्टर 500 मीटर दूर तक, रिपब्लिक का 800 मीटर और न्यूज नेशन वालों की तो अब दूर से ही नमस्ते है।

एबीपी न्यूज के रिपोर्टर्स के कुदरती खाने वाले विडियो वायरल हैं। जब शाहीन बाग में एक शख्स से पूछा गया कि खाना कहां से आ रहा है, उसने कहा रात में कुदरती आ जाता है। बड़ा दिलचस्प विडियो है। इस विडियो को देखकर प्रसंग संदर्भ समेत व्याख्या की जा सकती है कि जहां तर्क दम तोड़ दें, वहां से रिपोर्ट करना कितना आसान या कितना मुश्किल है।

हालांकि दीपक चौरसिया और सुधीर चौधरी के बाद आजतक और आजतक के बाद रवीश कुमार के बाद एबीपी न्यूज के बाद राहुल कंवल के बाद इंडिया टीवी के सौरव शर्मा के बाद और टीवी भारतवर्ष के बाद एकाध रिपब्लिक भारत या सीएनबीसी आवाज को ही मलाल रह गया होगा कि हाय हुसैन, हम क्यों न हुए शाहीन!

जैसे दिल्ली में पार्किंग ओनर के रिस्क पर होती है। शाहीनबाग में रिपोर्टिंग रिपोर्टर के रिस्क पर। संपादक प्राइम टाइम में टीवी पर बैठकर शाहीन बाग, जामिया या नागरिकता कानून विरोधियों की जितनी लानत-मलानत करते हैं, अगले दिन इन इलाकों की सड़कों पर उनके रिपोर्टर उतनी ही तेजी से दौड़ा लिए जाते हैं!

जी न्यूज के कैमरामैन को जामिया में भीड़ ने घेरकर मारा। दाद देनी होगी रिपोर्टर की जो मौके से भागा नहीं, बल्कि पिटते कैमरामैन को बचाने के लिए हिंसा पर उतारू भीड़ के बीच घुस गया। रिपब्लिक भारत की एक महिला रिपोर्टर को भी दल्ले-दल्ले के नारों के बीच किसी तरह अपनी इज्जत बचाने की जद्दोजहद करते देखा।

वैसे जितनी मारपीट, गालीगलौज, छीनाझपटी जी न्यूज और रिपब्लिक भारत के रिपोर्टर्स के साथ हो रही है, उसका एक दो परसेंट भी एनडीटीवी जैसे किसी चैनल के रिपोर्टर के साथ हुआ होता तो टीवी कितने दिन काला रहता?

खैर.....हम सहिष्णु हैं हम देखेंगे। टीवी जो जो दिखाएगा, हम देखेंगे। बस बांचने की आजादी बनी रहे।

(ये लेखिका के निजी विचार हैं।)

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