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इंदिरा गांधी की हत्या से एक सप्ताह पहले वह आखिरी मुलाकात: राजेश बादल
उन दिनों मैं इंदौर की नई दुनिया में सह संपादक था। उन्नीस सौ चौरासी का साल था। एक दिन संपादक जी ने बुलाया।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 2 years ago
राजेश बादल, वरिष्ठ पत्रकार।।
उन दिनों मैं इंदौर की नई दुनिया में सह संपादक था। उन्नीस सौ चौरासी का साल था। एक दिन संपादक जी ने बुलाया। बोले, तेईस अक्टूबर को इंदिरा गांधी की सभा भीकनगांव में है। आपको कवर करना है। पहले प्रधानमंत्री की कोई सभा कवरेज की है क्या? मैंने बताया कि बतौर प्रधानमंत्री 1977 में छतरपुर जिले में प्रधानमंत्री रहते हुए और 1979-80 में विपक्ष में रहते हुए कुल तीन बार उनकी रैली कवर की है और उनसे छोटे छोटे साक्षात्कार भी लिए हैं। मुझे वे पहचानती भी हैं। बताने की जरूरत नहीं कि मुझे भीकन गांव एक दिन पहले पहुंचने का निर्देश दे दिया गया। खरगोन जिले में ‘नईदुनिया’ के फोटोग्राफर को ही चित्र कवरेज के लिए कहा गया था। मुझे उसी दिन खबर और कैमरे की रील लेकर वापस पहुंचने का निर्देश था।
मैंने संपादक जी को बताया था कि 1977 में खजुराहो के विश्रामगृह में चार पांच मिनट का एक छोटा सा साक्षात्कार लिया था। उस दिन वे किसी पत्रकार को समय नहीं दे रही थीं। मैंने भी दो बार पर्ची भेजी थी। तीसरी बार मैंने अपने नाना जी के नाम का उल्लेख करते हुए पर्ची भेजी। नानाजी स्वतंत्रता सेनानी थे और बचपन में उन्होंने बताया था कि इंदिरा जी को अपनी गोद में खिलाया था। मैंने उन्हीं का नाम अपने नाम के नीचे लिख कर पर्ची को चाय ले जा रहे वेटर की ट्रे में रख दिया था। उन दिनों प्रधानमंत्री की सुरक्षा आज की तरह नहीं होती थी। इंदिरा जी ने पर्ची पढ़ी और तुरंत अंदर बुला लिया। उस साक्षात्कार की बात फिर कभी। अभी तो उनकी हत्या के ठीक एक सप्ताह पहले किए मेरे कवरेज की बात।
इंदिरा जी सही वक्त पर पहुंची। हम लोग मंच के एकदम सामने बैठे थे। लकड़ी के लट्ठों का एक घेरा था। उससे सटा प्रेस बॉक्स था। याने वक्ता सामने बैठे लोगों के चेहरे देख सकता था। कांग्रेस नेता सुभाष यादव स्वागत भाषण दे रहे थे कि अचानक इंदिरा जी आयीं और उनसे माइक से एक तरफ जाने को कहा। सुभाष यादव अचकचा कर हट गए। हम हैरत में थे। यह क्या हुआ। इंदिरा जी ने कहा, भाईयों और बहनों। मैं अभी दस मिनट में वापस आकर आपसे बात करूंगी और तब तक आप सुभाष जी की बात सुनिए और इंदिरा गांधी मंच से नीचे उतरने लगीं। मैंने तुरंत फोटोग्राफर को इशारा किया कि उनके उतरते हुए फोटो ले। मैं खुद भी चार छह कदम भागकर बल्लियों की रेलिंग के किनारे खड़ा हो गया। वे उतर कर आयीं। तिरछी नजर से मुझे देखा। ठिठकी और बोलीं अरे तुम यहां? मैंने कहा जी आपकी सभा कवर करने आया हूं। अब छतरपुर में नहीं हूं। इंदौर ‘नईदुनिया’ में हूं। उन्होंने कहा, आइए। मेरे साथ आइए और आगे बढ़ गईं। मैंने फोटोग्राफर को इशारा किया और हम बेरीकेट्स लांघ कर भागे। तब तक वे कार का दरवाजा खोलकर बैठ चुकी थीं। किसी को कुछ अंदाजा नही था। हम दौड़कर फोटोग्राफर की मोटरसाइकल तक पहुंचे और प्रधानमंत्री की सुरक्षा गाड़ी के पीछे चल पड़े। गाड़ी जिला अस्पताल जाकर रुक गई। मैंने सोचा, अस्पताल क्यों? क्या उनकी तबियत ठीक नही है। डॉक्टर तो सभास्थल पर ही था। इसी उधेड़बुन में हमने भी मोटरसाइकल पार्क की और भागे। तब तक वे उतर कर अस्पताल के पोर्च में जा पहुंची थीं और उनकी नजर हम पर पड़ गई थी। हमें वहां तैनात सुरक्षा कर्मियों ने रोक दिया। इंदिरा जी ने कहा, उन्हें आने दो। फिर तो हमें रोकने वाला कौन था। हम अंदर थे। उनके एक्सक्लूसिव फोटो मिल रहे थे। इंदिरा जी एक वार्ड में गयीं और वहां पलंग पर भर्ती आदिवासियों के सिर पर हाथ फेरते हुए उनकी तबियत का हाल पूछने लगीं।
तब तक हमें घटना की जानकारी मिल गई थी। असल में उनकी सभा के लिए कुछ आदिवासी ट्रैक्टर ट्राली में आ रहे थे। रास्ते में ट्राली पलट गई और कुछ आदिवासी घायल हो गए थे। शायद एक दो की मौत भी हो गई थी। इसकी सूचना मंच पर ही इंदिरा जी को दी गई थी और वे ताबड़तोड़ सभा छोड़कर अस्पताल के लिए निकल गई थीं। उन्होंने एक एक घायल से उनकी सेहत का हाल पूछा। डॉक्टरों से बात की और वापस सभा स्थल के लिए रवाना हो गई। हम भी पीछे पीछे आ गए। इस सभा में भी उन्होंने कहा था, ‘मेरे खून की एक एक बूंद देश के लिए है।’
जैसे ही वे सभा समाप्ति के बाद मंच से सीढ़ियां उतर कर बेरिकेट्स के गलियारे से जाने लगीं तो मैं भी लपककर बल्लियों के किनारे जा पहुंचा। मैंने तनिक चिल्लाकर कहा मैडम! एक मिनट। उन्होंने देखा। मुस्कराई और निकट आते हुए बोली- कुछ पूछना है? मैंने कहा- जी बस दो तीन सवाल हैं। उन दिनों देश में राष्ट्रपति प्रणाली पर बहस चल रही थी। एक सवाल उस पर था। दूसरा प्रश्न आतंकवाद पर और तीसरा विपक्ष के आन्दोलन पर था। उन्होंने संक्षिप्त उत्तर दिए। फिर बोलीं, ‘नईदुनिया’ अच्छा अखबार है। उसकी छपाई भी अच्छी है। मैंने उन्हें धन्यवाद दिया। यह उनके साथ मेरी अंतिम मुलाकात थी। इसके बाद मैं जीप से सीधे इंदौर भागा। भोपाल संस्करण में खबर लगवाई। इसकी प्रति आप यहां देख सकते हैं।
इसके बाद नगर संस्करण में मय फोटो के विस्तार से समाचार छपा। उन दिनों लगभग हर अखबार में अपना डार्क रूम होता था। हमारी फिल्म इंदौर के छायाकार शरद पंडित ने धोई और प्रिंट तैयार किए। नईदुनिया ने प्रकाशित समाचार के सभी संस्करणों की प्रति प्रधानमंत्री कार्यालय भेजी थी। उत्तर में इंदिरा जी का मेरे नाम धन्यवाद पत्र भी आया था। उन्हें कवरेज अच्छा लगा था।
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