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विचार की स्वतंत्रता के खिलाफ सियासी षड्यंत्र लोकतंत्र में बर्दाश्त नहीं मिस्टर मीडिया!
खबर विचलित करने वाली है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के बीच में वहां का एक सर्वाधिक लोकप्रिय खबरिया समूह ‘फोर पीएम’ (4PM) का यूट्यूब चैनल अचानक परदे से विलुप्त हो गया।
राजेश बादल 2 years ago
चैनल बंदी प्रतिशोध भरी कार्रवाई है
राजेश बादल, वरिष्ठ पत्रकार।।
खबर विचलित करने वाली है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के बीच में वहां का एक सर्वाधिक लोकप्रिय खबरिया समूह ‘फोर पीएम’ (4PM) का यूट्यूब चैनल अचानक परदे से विलुप्त हो गया। तीन लाख से अधिक सबस्क्राइबर्स वाला यह चैनल अपने जन्म से ही धारदार समाचार विश्लेषण और वरिष्ठ पत्रकारों की बेबाक बयानी के लिए जाना जाता है। मौजूदा चुनाव में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और विपक्षी समाजवादी गठबंधन तथा कांग्रेस की असल स्थिति को यह चैनल बड़ी निष्पक्षता से प्रस्तुत कर रहा था। देखते ही देखते किसी शो की दर्शक संख्या लाखों को पार कर जाए तो उसकी जिम्मेदारी और परिपक्वता का अनुमान लगाया जा सकता है ।
चैनल के संपादक संजय शर्मा कहते हैं कि इसके पीछे यकीनन पेशेवर हैकर्स अथवा यूट्यूब चैनल के प्रबंधन का हाथ है। पिछले तीन चरणों के मतदान का इस चैनल का सार यह था कि समाजवादी पार्टी बढ़त बना चुकी है और बीजेपी घाटे में है। संजय के मुताबिक, उन्होंने मामले की एफआईआर करा दी है और यूट्यूब को नोटिस भेजा है। संदेह है कि कहीं इस चैनल को बंद करने के पीछे सत्तारूढ़ दल या सरकार का हाथ तो नहीं है। संपादक संजय शर्मा की ताबड़तोड़ कार्रवाई का अंजाम यह निकला कि चैनल की चरणबद्ध बहाली हो रही है। एक-एक करके पुराने शो और विश्लेषण दर्शक देखने लगे हैं। संजय शर्मा को मीडिया के तमाम वर्गों से भरपूर समर्थन मिला। जैसी कि ‘फोर पीएम’ के संपादक को आशंका है कि इस मामले में उस व्यवस्था का हाथ हो सकता है, जो उनके चैनल से प्रसन्न नहीं है।
दरअसल, चैनल बंद होने से बीजेपी और सरकार की किरकिरी हुई। चुनाव के दौरान निष्पक्ष पत्रकारिता पर आक्रमण हो और सरकार चुप्पी साधे रहे, तो अनेक संदेह जन्म लेते हैं। सवाल यह भी उठता है कि आम नागरिक की तरह पत्रकारों को मिली अभिव्यक्ति की आजादी उन्हें हासिल है या नहीं?
संचार के आधुनिक उपकरणों ने एक ओर काम में कुछ सहूलियतें प्रदान की हैं, वहीं मौलिक अधिकारों को कुचलने की साजिशों में भी उनकी मदद ली जा रही है। कारोबारी होड़ हो तो बात समझ में आती है, लेकिन विचार की स्वतंत्रता के खिलाफ सियासी षड्यंत्र सभ्य लोकतंत्र में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव भारतीय राजनीति के नजरिये से हमेशा ही बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। सरकारें इन चुनावों में अपनी स्थिति को मजबूत बनाए रखने के लिए नाना प्रकार की तिकड़में करती हैं। आशंका उपजती है कि आने वाले लोकसभा चुनावों में निष्पक्ष पत्रकारिता पर दबाव डालने की कोशिशें हो सकती हैं। चूंकि केंद्र में सरकार बनाने का रास्ता उत्तर प्रदेश होकर ही जाता है, इसलिए इस राज्य में हिंदी पत्रकारिता की चुनौतियों का आकार विकराल होगा। विडंबना है कि जिस प्रदेश ने पत्रकारिता के कई गौरवशाली अध्याय लिखे, वह आज उत्पीड़न की चपेट में है। इसे गंभीरता से लेने की जिम्मेदारी किसकी है मिस्टर मीडिया!
(यह लेखक के निजी विचार हैं)
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