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अपनी बिरादरी के उपहास व अपमान की इजाजत आपको भारतीय समाज नहीं देता मिस्टर मीडिया!

एक सप्ताह से चुप था। कुछ टीवी न्यूज एंकरों पर विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस' (I.N.D.I.A) ने अपनी ओर से जो पाबंदी लगाई हैं, उसका प्रबंधन और संपादकों पर असर देखना चाहता था।

राजेश बादल 1 year ago

एंकरों के शो में नहीं जाने का फैसला, यह तो होना ही था!

राजेश बादल, वरिष्ठ पत्रकार।।

एक सप्ताह से चुप था। कुछ टीवी न्यूज एंकरों पर विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस' (I.N.D.I.A) ने अपनी ओर से जो पाबंदी लगाई हैं, उसका प्रबंधन और संपादकों पर असर देखना चाहता था। अंततः पाया कि चैनलों के नियंताओं के कान पर जूं भी नहीं रेंगी। ‘इंडिया’ यानी छब्बीस पार्टियों की लोकतांत्रिक आवाज।

यह सरासर भारतीय संवैधानिक लोकतंत्र का अपमान है। चौथा स्तंभ क्या प्रतिपक्ष की इतनी उपेक्षा कर सकता है? नहीं। उसे इस मुल्क का आईन इजाजत नहीं देता। यदि वे असहमति के सुरों की रक्षा नहीं कर सकते तो फिर इस देश की जम्हूरियत को बचाने के अनुष्ठान में कैसे शामिल हो सकते हैं? पत्रकारिता का इतना क्रूर और वीभत्स रूप तो कभी नहीं देखा।

मैंने ‘मिस्टर मीडिया’ के कम से कम पचास स्तंभों में महामारी फैलाने के लिए पत्रकारिता के इस वर्ग को आगाह किया है। उसकी भी अनदेखी की गई। यही नहीं, इस मुद्दे पर टीवी मीडिया की नामीगिरामी संस्थाओं की चुप्पी परेशान करने वाली है। पत्रकारिता प्रमुखों की खामोशी दुखी करती है, प्रबंधन का रवैया आक्रोश पैदा करता है और समाज की ओर से कोई स्वर का नहीं उठना भी उद्वेलित करता है।

कुछ समय पहले मैंने अपने स्तंभ में लिखा था, ‘यदि पूर्वजों की ओर से स्थापित आचार संहिता के बुनियादी सिद्धांतों का हम पालन नहीं करते तो एक दिन वह भी आएगा, जब समाज और देश इस पत्रकारिता को खारिज कर देगा। पत्रकारिता के इतिहास में वह बेहद कलंकित अध्याय होगा। जिस पत्रकारिता ने मुल्क की आजादी के अनुष्ठान में आहुति दी हो, वह अपने आचरण से लांछित और अपमानित की जाने लगे तो यह आने वाले दिनों के लिए गंभीर चेतावनी है।’

हमने देखा है कि कोई भी सरकार हो, अपनी आलोचना पसंद नहीं करती। इसलिए, जब तब वह स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर अंकुश लगाने का काम करती है। पहले वह प्रलोभन देती है। यदि उससे बात नहीं बनती तो अनेक प्रकार से दबाव डालने का काम करती है। यदि वह काम नहीं आता तो मीडिया प्रबंधन और मालिकों पर शिकंजा कसती है और यह हथियार भी नाकाम रहता है तो वह पत्रकारिता के दमन और उत्पीड़न का अंतिम अस्त्र चलाती है। वर्तमान दौर में सारे तरीके आजमाए जा रहे हैं। हम इन तीरों को अपनी देह पर लगते देख रहे हैं।

तो अब क्या किया जाए? पत्रकारिता की अराजक धारा संतुलन के सारे बांध तोड़ चुकी है। सर्वोच्च न्यायालय कई बार आगाह कर चुका है। उसने दो दिन पहले ही नेशनल ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन और न्यूज ब्रॉडकास्टर्स फेडरेशन को सेल्फ रेगुलेशन पर जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है। फिलवक्त इस मसले पर गंभीरता नहीं दिखाई दे रही है।

‘ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन’ के अध्यक्ष सुप्रिय प्रसाद ने इस मुद्दे पर विचार के लिए आपात बैठक बुलाई थी। इस बैठक में कुछ ठोस निष्कर्ष निकलकर आया हो, ऐसा नहीं लगता। अर्थात परदे पर पत्रकारिता की अमर्यादित करतूतों पर अंकुश लगने की कोई संभावना फ़िलहाल तो नहीं है।

बीते दिनों ’एक्सिस माय इंडिया’ की रपट में पाया गया था कि भारत में टीवी मीडिया न्यूज का स्तर गिरा है। इसके अलावा ’रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ की ताजा रेटिंग में भी भारत में पत्रकारिता के हालात सुधरते हुए नहीं पाए गए हैं। इसके बाद भी यदि भारतीय पत्रकारिता के पैरोकार नहीं जागते तो वे आगे जाकर इस पवित्र पेशे का अपमान ही करेंगे। अपनी बिरादरी के उपहास और अपमान की इजाजत आपको भारतीय समाज नहीं देता मिस्टर मीडिया!

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल की 'मिस्टर मीडिया' सीरीज के अन्य कॉलम्स आप नीचे दी गई हेडलाइन्स पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं-

यदि ऐसा नहीं हुआ तो एक दिन जबान और कलम पर पहरा बिठा दिया जाएगा मिस्टर मीडिया!

पुलिस अधिकारी की इस करतूत ने पूरे पत्रकारिता जगत को करारा तमाचा मारा है मिस्टर मीडिया!

हम अपने दौर में पत्रकारिता की कलंक कथाएं रच रहे हैं मिस्टर मीडिया!

यह गैरजिम्मेदार पत्रकारिता है, परदे पर दिखाने को कोई तो मापदंड होना चाहिए मिस्टर मीडिया!


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