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भारतीय पत्रकारिता को यह तथ्य समझने की आवश्यकता है मिस्टर मीडिया!

22 बरस की दिशा रवि को दिल्ली की एक अदालत से जमानत सुखद खबर है। यह असहमति के सुरों की रक्षा के लिए सही समय पर आया सही फैसला है।

राजेश बादल 3 years ago

राजेश बादल, वरिष्ठ पत्रकार।।

22 बरस की दिशा रवि को दिल्ली की एक अदालत से जमानत सुखद खबर है। यह असहमति के सुरों की रक्षा के लिए सही समय पर आया सही फैसला है। इससे एक तरफ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संरक्षण मिलता है तो दूसरी ओर यह भी सुनिश्चित होता है कि हिंदुस्तान की जम्हूरियत का मजबूत खंभा न्यायपालिका अभी भी किसी किस्म के दबाव से मुक्त है।

कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि इस लोकतांत्रिक अंग के बारे में कुछ समय से तनिक तकलीफदेह अहसास हो रहा था। यह धारणा घर करने लगी थी कि वाकई न्यायपालिका दबाव में तो काम नहीं कर रही? असल में कई बार इनसान कुछ दबाव तो अपने हित या स्वार्थों के चलते भी ओढ़ता दिखाई देता है। अगर वह ठान ले कि किसी प्रकार के दबाव में नहीं आएगा तो फिर वाकई वह मुक्त होकर काम करता है। हो सकता है कि फौरी तौर पर उसका कुछ नुकसान भी हो जाए, लेकिन अंततः वह विजेता की शक्ल में सामने आता है। भारतीय पत्रकारिता को यह तथ्य समझने की आवश्यकता है। असहमत होना किसी भी  जिम्मेदार और सभ्य लोकतंत्र की पहली शर्त है और इसको संरक्षण मिलना ही चाहिए।

माननीय न्यायालय ने दिशा रवि के मामले में साहसिक और संवैधानिक टिप्पणियां की हैं। भारतीय संस्कृति में वेदों को सर्वोच्च प्रतिष्ठा प्राप्त है और ऋग्वेद की ऋचाओं का संदर्भ इस देश के चरित्र को स्थापित करता है। कोर्ट का यह कथन पूरी तरह सटीक है कि हुकूमत के जख्मी गुरूर पर मरहम लगाने के लिए किसी को राजद्रोह के आरोप में कारागार नहीं पहुंचाया जा सकता। इस व्यवस्था से हिंदुस्तान की पत्रकारिता पर इन दिनों मंडरा रहे अवसाद और निराशा के वे बादल भी छंट सकते हैं, जो आम अवाम को यह धारणा बनाने का अवसर देते हैं कि इन दिनों मुल्क का मीडिया अपनी साख खो रहा है। सत्ता पक्ष की चिरौरी करते रहना अथवा चौबीसों घंटे उसकी निंदा करना यकीनन स्वस्थ्य पत्रकारिता की निशानी नहीं है। ऐसी करतूतों से संतुलित और निष्पक्ष पत्रकारिता को झटके लगते हैं। संसार में कोई सभ्य समाज पत्रकारिता का अपनी राह से विचलित होना पसंद नहीं करेगा।

बीते दिनों भारत के संपादकों की प्रतिष्ठित संस्था एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने राष्ट्र के अशांत क्षेत्रों में पत्रकारिता पर एक ऑनलाइन कार्यक्रम आयोजित किया था। जाहिर सी बात थी कि उसमें सरकार के गीत तो नहीं ही गाए जाने वाले थे। लेकिन असहमति और निंदा को स्थान नहीं देने वालों ने इसमें इस कदर तकनीकी बाधा डाली कि अंततः कार्यक्रम ही रद्द करना पड़ा। इसकी व्यापक भर्त्सना की गई थी।

असल में आज ऐसे तत्वों का चारों तरफ बोलबाला दिख रहा है, जो अपनी आलोचना पसंद नहीं करते। इस प्रवृति से वे खुद को और लोकतंत्र दोनों को क्षति पहुंचाते हैं। उन्हें तात्कालिक लाभ भले ही मिल जाए, मगर वे अपने ही देशवासियों से असुरक्षित महसूस करते हैं। भारतीय लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के लिए जरूरी है कि वह इनको बेनकाब करे-ताला लगाके आप हमारी जबान को/ कैदी न रख सकेंगे जेहन की उड़ान को/असहमति के सुरों की रक्षा करना ही असली राष्ट्रीय कर्तव्य है। इस हकीकत को जान लीजिए मिस्टर मीडिया!

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल की 'मिस्टर मीडिया' सीरीज के अन्य कॉलम्स आप नीचे दी गई हेडलाइन्स पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं-

मिस्टर मीडिया: आजादी के बाद पहली बार बनी है पत्रकारिता के लिए ऐसी स्थिति

इन प्रपंचों ने भी पत्रकारों की साख को बहुत धक्का पहुंचाया है मिस्टर मीडिया!

मिस्टर मीडिया: कुछ इस तरह की चाहिए एक मीडिया काउंसिल!

यह कैसी पत्रकारिता का नमूना हम प्रस्तुत कर रहे हैं मिस्टर मीडिया!


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