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मिस्टर मीडिया: इसलिए भी डराती है लोकतंत्र के चौथे खंभे पर लटकी यह तलवार
तो आशंकाएं सच होने लगी हैं। हिन्दुस्तान की पत्रकारिता पिछले 73 साल में अपने सबसे बुरे दौर में जा पहुंची है। कमर तो पहले ही टूटी हुई थी। रही सही कसर कोरोना ने पूरी कर दी है।
राजेश बादल 4 years ago
राजेश बादल, वरिष्ठ पत्रकार।।
तो आशंकाएं सच होने लगी हैं। हिन्दुस्तान की पत्रकारिता पिछले 73 साल में अपने सबसे बुरे दौर में जा पहुंची है। कमर तो पहले ही टूटी हुई थी। रही सही कसर कोरोना ने पूरी कर दी है। इस महामारी का संक्रमण भारतीय पत्रकारिता की देह में दिनोंदिन फैलता जा रहा है। प्रिंट हो या टेलिविजन, रेडियो हो अथवा डिजिटल-सारे रूप छटपटाते दिखाई देते हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी तक छंटनी, वेतन में कटौती, नौकरी से बर्खास्तगी, पत्रकारों का मानसिक उत्पीड़न और संस्थाओं के दरवाजे पर लटके अलीगढ़ी ताले सारी व्यवस्था को चिढ़ाने लगे हैं। ख़ौफनाक यह है कि निकट भविष्य में इस खतरे से रिहाई की कोई सूरत नजर नहीं आ रही है। लोकतंत्र के चौथे खंभे पर लटकी यह तलवार इसलिए भी डराती है, क्योंकि बाकी तीन स्तंभों के माथे पर इसकी शिकन या वेदना तक नहीं है। यह आत्मघाती है। इतना ही नहीं, उनके विरोध में इन दिनों पुलिस और सरकार बदले की भावना से कार्रवाई करने पर उतारू लगती है।
बीते दिनों असम की एक महिला पत्रकार पर उस समय गाज गिरी, जब वह मां बनने की तैयारी कर रही थी। उसे स्थानीय चैनल के प्रबंधन ने लॉकडाउन अवधि में हटाया। उसे कहा गया कि संस्थान में मातृत्व अवकाश की सुविधा नहीं दी जाती, न ही उसे वेतन मिलेगा। अगले दिन ही उससे इस्तीफा ले लिया गया। महिला पत्रकार संगठनों ने इसका कड़ा विरोध किया। इस कड़ी में उत्तरप्रदेश के सीतापुर ज़िले में पत्रकार रवींद्र सक्सेना के खिलाफ पुलिस ने मामला दर्ज किया। सक्सेना ने क्वारंटाइन केंद्र में ख़राब भोजन बांटने पर रिपोर्ट-टुडे-24 में दिखाई थी। दिल्ली में एक राष्ट्रीय दैनिक के संवाददाता महेंद्र सिंह मनराल को भी दिल्ली पुलिस की ओर से उत्पीड़ित करने का मामला सामने आया था।
गुजरात में फेस ऑफ नेशन के संपादक धवल पटेल को राजद्रोह का आरोप लगाते हुए हिरासत में ले लिया गया, क्योंकि उन्होंने कोरोना महामारी से निपटने में सरकार की विफलता उजागर की थी और लिखा था कि इसके लिए जिम्मेदार नेतृत्व को बदला जा सकता है। पंजाब में रोजाना पहरेदार के एक पत्रकार मेजर सिंह पंजाबी की पुलिस ने बेरहमी से पिटाई कर दी, जब वे एक गुरुद्वारे में कवरेज के लिए गए थे। जब पत्रकार संघों ने मामला उठाया तो पुलिसकर्मियों को निलंबित किया गया। इसी राज्य में पंजाबी जागरण के पत्रकार जयसिंह छिब्बर के खिलाफ पुलिस ने प्रकरण पंजीबद्ध कर लिया, क्योंकि उन्होंने राज्य के एक मंत्री पर अंधविश्वास फैलाने का आरोप लगाया था। पिछले दिनों न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी भारत में पत्रकारों की स्थिति पर गंभीर चिंता जताई थी।
दरअसल, टूटी आर्थिक रीढ़ लेकर भारत में निष्पक्ष पत्रकारिता की बात ठीक वैसी ही है कि कोई अपने हाथ में ऐसी म्यान लेकर दुश्मन के सामने खड़ा हो ,जिसमें तलवार ही न हो या सामने दहाड़ रहे शेर को बंदूक का लाइसेंस दिखा कर बचने की कोशिश की जाए। ऐसी रीढ़ विहीन पत्रकारिता लोकतंत्र में हमेशा सत्ता प्रतिष्ठानों को पोसाती है। उसे आलोचना का भय नहीं रहता और वह वित्तीय संजीवनी देकर किसी भी मरते मीडिया संस्थान को बचाकर अपने पक्ष में खरीद लेती है। संस्थान भी मजबूरी में बिकने के लिए तैयार बैठे रहते हैं। तात्कालिक तौर पर भले ही यह प्रवृति हुकूमत कर रही पार्टी के भले में दिखाई दे मगर दूरगामी नतीजे उसी के खिलाफ जाते हैं।
आज अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने ही मुल्क में जिस आग का मुकाबला करने में असहाय नजर आ रहे हैं, उसके पीछे उनका मीडिया विरोधी स्वभाव ही है। वे कारोबारी रहे हैं और ऐसे दिमाग वाला व्यक्ति आलोचना से हमेशा डरता है। उसे आदत नहीं होती। वह समझता है कि पैसे से हर चीज खरीदी जा सकती है। पत्रकारिता भी। इस तरह वह अपना नुकसान करता है, क्योंकि जब पत्रकार निरपेक्ष आलोचना करते हैं तो वह उसे अपनी निंदा मानता है और हकीकत से आंख मूंदे रखता है। हो सकता है पत्रकारिता के कुछ प्रतिष्ठान पैसे से खरीदे जाएं, लेकिन नहीं भूलना चाहिए कि लोकतंत्र में दो चार पागल पत्रकार (आजकल उन्हें पागल ही कहा जाने लगा है) भी होते हैं, जो सरोकारों को जिंदा रखते हैं। एक देश के लिए दो-चार पागल पत्रकार ही पर्याप्त हैं। डोनाल्ड ट्रंप को यह तथ्य कभी तो समझ में आएगा। इस उदाहरण को सामने रखिए मिस्टर मीडिया!
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क्या सरकारी प्रसारणों में इन सभी बातों का ध्यान रखा जा रहा है मिस्टर मीडिया!
यह अपने अंदर झांकने का भी दौर है मिस्टर मीडिया!
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