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'2022 के खट्टे-मीठे अनुभवों के साथ नए साल पर मीडिया को इन चुनौतियों पर खरा उतरना होगा'

वर्ष 2022 घरेलू मीडिया की दृष्टि से मीडिया मैनेजमेंट और डिजिटल मीडिया का रहा है। डिजिटल मीडिया का अप्रत्याशित विस्तार हुआ है और न्यूज मीडिया के क्षेत्र में पत्रकारों के लिए वरदान साबित हुआ है।

समाचार4मीडिया ब्यूरो 1 year ago

सतीश के. सिंह।।

मैं मानता हूं कि वर्ष 2022 घरेलू मीडिया की दृष्टि से मीडिया मैनेजमेंट और डिजिटल मीडिया का रहा है। डिजिटल मीडिया का अप्रत्याशित विस्तार हुआ है और न्यूज मीडिया के क्षेत्र में पत्रकारों के लिए वरदान साबित हुआ है। मीडिया मैनेजमेंट को देखें तो तमाम सरकारें भी अब बिजनेस हाउस और कॉरपोरेट घरानों के ढर्रे पर चलती हुई दिखाई पड़ीं। अपनी-अपनी तरह से पब्लिसिटी और प्रोपेगंडा के लिए मीडिया का इस्तेमाल, चाहे संसाधनों या दबाव हो अथवा दोनों से भरपूर इस्तेमाल करने का प्रयास, चलन दिखा।

एक और आयाम मीडिया में ये दिख रहा है की कन्वर्जेंस (Convergence) पर विशेष फोकस है। यानी अखबार, टीवी और डिजिटल मीडिया का एक साथ उपयोग, विस्तार और प्रभुत्व पर फोकस। वर्ष 2022 में तथाकथित गोदी मीडिया, गोदी सेठ और लुटियंस, लिबरल मीडिया का डिबेट भी जोर पकड़ता रहा। कई विवाद पैदा हुए, जिनमें दो प्रमुख न्यूज चैनल्स के एंकरों पर पक्ष, विपक्ष में ‘सेनाएं’ खड़ी होती नजर आईं। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से भी कम से कम दो बड़ी सुर्खियां बटोरने वाली टिप्पणियां भी आईं।

एक नया ट्रेंड ये नजर आया कि विपक्षी पार्टियों के कई बड़े नेता राष्ट्रीय मीडिया के मालिकों, प्रमुख एंकरों व अखबारों की भूमिका पर बार-बार सवाल खड़े करते नजर आए। इतने बड़े स्तर पर पर ये कभी नहीं हुआ।

मैं ऐसा भी देखता और समझता हूं कि पत्रकारिता और इन्फॉर्मेशन एक्सप्लोजन के बीच अंतर को बनाए रखना जरूरी है। इन्फॉर्मेशन यानी सूचना और पत्रकारिता में भारी अंतर है। हाल में देखने में आया है कि इन्फॉर्मेशन एक्सप्लोजन को पत्रकारिता से कन्फ्यूज किया जा रहा है और ये सत्ता को सूट भी करती है, मगर सूचना अपने आप में पत्रकारिता नही हो सकती।

मैं अपने विचार में उदहारण से बचा हूं, मगर अपनी बात में वस्तुनिष्ठ होने का प्रयास है। वैचारिकता के अतिरेक के आगे तथ्यात्मक पत्रकारिता को भारी नुकसान पहुंचा है और इसके कई उदाहरण आपको 2022 में आसानी से देखने को मिले हैं, जो कि पत्रकारिता के मूल्यों के लिए घातक हैं।

अब बात 2023 की। ऐसा मुझे लगता है कि जो कुछ मैंने कहा है, उसी का वर्ष 2023 में विस्तार होगा। प्रोपेगंडा, पब्लिसिटी कहीं पत्रकारिता को और न निगले। चुनौती इस बात की है कि 5जी टेक्नोलॉजी के युग में लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति बनी रहे। मीडिया के बढ़ते व्यवसायीकरण में सच दबे नहीं।

सोशल मीडिया ने बहुत उम्मीद जगाई है, मगर इस मीडिया को भी तथ्यों को लेकर बेहद सचेत रहना होगा, पक्षपात से भी बचना होगा। वर्ष 2023 ने कई विधान सभा और 2024 में आम चुनाव हैं, मीडिया स्पेस तो इसी से भरा रहेगा, मगर कवरेज, लेख, प्रस्तुतिकरण को जनता, प्रजातंत्र और असली मुद्दों को आगे रखना चाहिए। बेहद मुश्किल काम है मगर मीडिया और पत्रकारिता के साख के लिए जरूरी है। अभी से ही साख पर बड़े सवाल खड़े हो चुके हैं। लेकिन उम्मीद पर दुनिया कायम है और मैं भी उम्मीद कभी नहीं छोड़ता।

(यह लेखक के निजी विचार हैं। लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और तमाम प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में प्रमुख भूमिकाएं निभा चुके हैं।)


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