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अनजाने में होने वाले इस ‘अपराध’ की कीमत पत्रकार बिरादरी या देश चुकाता है मिस्टर मीडिया!

हालांकि इक्का-दुक्का चैनलों की बेहतर कवरेज को मैं अपवाद मानता हूं। इन चैनलों के कुछ संवाददाताओं ने जान जोखिम में डालकर अच्छी रिपोर्टिंग का नमूना पेश किया है।

राजेश बादल 2 years ago

उधर मैदान में जंग और यहां परदे पर

राजेश बादल, वरिष्ठ पत्रकार।।  

इस बार ‘मिस्टर मीडिया’ स्तंभ कुछ विलंब से आप तक पहुंच रहा है। दरअसल, मैं रूस और यूक्रेन में जंग पर अखबारों और टीवी चैनलों पर आ रही कवरेज को बारीकी से देखना चाहता था। करीब बीस-पच्चीस दिन इस कवरेज का अध्ययन करने के बाद पूरी जिम्मेदारी और होशोहवास में कह सकता हूं कि दो दशक से अधिक के अनुभवी हमारे खबरिया चैनल तथ्यपरक, निरपेक्ष, संजीदा रिपोर्टिंग और उसे परदे पर परोसने की कला से कोसों दूर हैं। इसके लिए किसे दोषी ठहराया जाए?

क्या चैनलों के ढांचे और उनकी कार्यशैली को, जिसमें गहरे शोध और अध्ययन की गुंजाइश नहीं है या फिर पत्रकारिता की डिग्रियां बेचने वाले शैक्षणिक संस्थान या सिर्फ बाजारू लोकप्रियता के मीटर पर नजर रखने वाले संपादक या फिर हम जैसे तनिक पुराने पड़ गए पहली पीढ़ी के पत्रकार, जो अपनी अगली नस्ल को पेशेवर अंदाज में तराश नहीं सके या फिर यह सारे कारण इसके पीछे हैं।

वजह कोई भी हो, मगर यह तय है कि जंग की जो कवरेज अब तक हुई है, वह दुखद है। आज वर्तमान का टीवी डॉक्यूमेंटेशन कल इतिहास बन जाएगा। यह दस्तावेजीकरण दो तरह से घातक है। एक तो यह कि अगली पीढ़ियां इस कवरेज को नजीर समझेंगी। यह ठीक वैसा ही होगा, जैसा सुप्रीम कोर्ट का फैसला होता है और वह भविष्य में होने वाले कई निर्णयों का आधार बन जाता है। दूसरा कारण यह है कि आज हर नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी से ज़्यादा समझदार और परिपक्व होती है। उसके पास तथ्यों को परखने के अनेक स्रोत होते हैं। वह इस कवरेज को देखकर पेशेवर आकलन करेगी तो इसका उपहास भी उड़ा सकती है। वह धारणा बना सकती है कि पत्रकारिता के हमारे पूर्वज कितने गैर जिम्मेदार और फूहड़ तरीके से खबरें पेश करते थे।

हालांकि इक्का-दुक्का चैनलों की बेहतर कवरेज को मैं अपवाद मानता हूं। इन चैनलों के कुछ संवाददाताओं ने जान जोखिम में डालकर अच्छी रिपोर्टिंग का नमूना पेश किया है। यकीनन, वे बधाई के पात्र हैं और उनके चैनलों को उन्हें सम्मानित भी करना चाहिए, पर बहुतायत तो अधकचरे और अंतरराष्ट्रीय समीकरण समझे बगैर परदे पर अपना कंटेंट परोसते रहे हैं। यह देश के लिए ठीक नहीं है, समाज के लिए भला नहीं है और प्रोफेशन के लिए भी अनुचित है।

क्या आप समूचे समीकरण समझे बिना किसी देश को हमलावर ठहरा सकते हैं और दूसरे छोटे मुल्क के बचकाने व्यवहार के साथ सहानुभूति रख सकते हैं? क्या भारत और रूस के ऐतिहासिक संबंधों की जानकारी के बिना आप भारतीय विदेश नीति को गलत ठहरा सकते हैं। क्या यूक्रेन और हिंदुस्तान के रिश्तों का अतीत जाने बगैर उस पर टिप्पणी कर सकते हैं। क्या विश्वयुद्ध की परिस्थितियों को समझे बिना परदे पर आए दिन ‘विश्वयुद्ध’ कराते रहेंगे। गोया विश्वयुद्ध न हुआ, दो पड़ोसियों की दैनंदिन चखचख हो गई।

मैंने इसी स्तंभ में पहले लिखा था कि हमारे मीडिया शिक्षण संस्थानों में युद्ध कवरेज नहीं पढ़ाया जाता। कई पीढ़ियां अब सेवानिवृत्त हो चुकी हैं, जिन्होंने युद्ध की रिपोर्टिंग नहीं की। युद्ध पत्रकारिता के अपने उसूल होते हैं, आचार संहिता होती है और उसका अपना एक पेशेवर ढंग होता है। क्या चैनल प्रबंधन किसी ऐसे पत्रकार को जंग कवरेज और न्यूज रूम में उसकी प्रस्तुति की जिम्मेदारी सौंप सकता है, जिसने कभी उपरोक्त अध्ययन नहीं किया हो। खेद है कि ऐसा हो रहा है और अनजाने में ही हो रहे अपराध की कीमत पूरी पत्रकार बिरादरी या कभी-कभी पूरा देश चुकाता है मिस्टर मीडिया!

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल की 'मिस्टर मीडिया' सीरीज के अन्य कॉलम्स आप नीचे दी गई हेडलाइन्स पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं-

विचार की स्वतंत्रता के खिलाफ सियासी षड्यंत्र लोकतंत्र में बर्दाश्त नहीं मिस्टर मीडिया!

हिंदी पत्रकारिता के लिए यकीनन यह अंधकार काल है मिस्टर मीडिया!

एक तरह से यह आचरण पत्रकारिता के लिए आचार संहिता बनाने पर मजबूर करने वाला है मिस्टर मीडिया!

असभ्य तंत्र नामक भेड़िए से आपको बचाने कौन आएगा मिस्टर मीडिया?


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